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Editorial : ईश्वर की धरती पर सर्वोत्कृष्ट कृति है मां

Editorial : ईश्वर की धरती पर सर्वोत्कृष्ट कृति है मां

विशेष लेख : मां से बढ़कर कोई नहीं। सभी विषय मां के समक्ष तुच्छ हैं। मां है तो सब कुछ है। मां नहीं तो कुछ भी नहीं। मां से अलग जीवन अधूरा है, रिक्त है। यह सभी लोग अनुभव करते हैं। भगवान से पूछा गया कि उनकी सवरेत्कृष्ट उत्पत्ति क्या है तो उन्होंने कहा-मां। 

शास्त्रों ने ईश्वर की तो व्याख्या की है, लेकिन मां की व्याख्या में वे भी समर्थ नहीं। मां की पूजा, मां की सेवा, मां की भक्ति का सौभाग्य जिसे मिला, वह पृथ्वी पर सबसे धनवान है। मां के आशीर्वाद और शुभेच्छाओं से ऊपर कुछ शेष नहीं बचता। ईश्वर भी मां के सामने बौना है। भगवान राम और कृष्ण मां के वात्सल्य में डूब ही गए। अभी तक कोई भी प्राणी उत्पन्न नहीं हुआ, जो मां के आंचल की छांव में अभिभूत न हुआ हो। 

वस्तुत: मां के स्नेह और प्रेम कणों से शिशु का जन्म होता है। संपूर्ण प्रकृति भी मां स्वरूपा है, जो सृजनात्मकता का प्रवाह बन कर लोकों में व्याप्त है। रचनात्मक प्रवृत्तियां संसार की मातृशक्ति हैं। पृथ्वी पर विकास और विश्व की शांति का स्नेत मातृशक्ति ही माना गया है।


राम और कृष्ण के अवतार ही मां के सुख की अनुभूति के प्रमाण हैं। कृष्ण ने मां की परिभाषा को अपनी लीला में समेट लिया, जिसे देखने सभी देवता नंद बाबा के द्वार पर आते थे। देवों के देव महादेव भी माता से सहमे प्रभु की बाल लीला के दृश्यों का रसपान करने का लोभ संवरण नहीं कर सके। मां के स्नेह से सिंचित भावमय अवसरों पर परमपिता ब्रह्मदेव ने आकाश से ही पुष्प वृष्टि की थी। इस ब्रह्माण्ड में प्रकृति भी मां रूप में जीव मात्र को संरक्षण प्रदान कर रही है। 

हजारों रोगों को प्रकृति स्वत: शमन करती है। यह मां की भांति जीवन की रक्षा के लिए निशिदिन रक्षारत है। यह मां ही है, जो जन्मदात्री और पालनकर्ता है। योगमाया जन-जन की माता है, जो सिद्धदात्री शक्तिस्वरूपा है। मां के ध्यान से एक सुरक्षा कवच सक्रिय हो जाता है। ‘मां’ एक महामंत्र है।