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यूपी: कानपुर में एकेटीयू से संबद्ध इंस्टीट्यूट की बीटेक छात्रा ने जीती मातृत्व की लड़ाई।

यूपी: कानपुर में एकेटीयू से संबद्ध इंस्टीट्यूट की बीटेक छात्रा ने जीती मातृत्व की लड़ाई।

                           
कानपुर। केशवपुर गांव की रहने वाली छात्रा सौम्या तिवारी ने 2013 में एकेटीयू से संबद्ध कानपुर स्थित कृष्णा इंस्टीट्यूट में बीटेक इलेक्ट्रानिक्स एंड कम्युनिकेशन ब्रांच में प्रवेश लिया था। उसने सभी सेमेस्टर पास किए लेकिन तृतीय सेमेस्टर के इंजीनियनिरिंग मैथमैटिक्स के द्वितीय प्रश्नपत्र व द्वितीय सेमेस्टर की परीक्षा में गर्भवती होने व बच्चे को जन्म देने के बाद की रिकवरी के कारण शामिल नहीं हो सकी। इससे उसका कोर्स पूरा नहीं हुआ। उसने अतिरिक्त अवसर देने की मांग की तो संस्थान ने नामंजूर कर दिया। उसने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर मातृत्व कारणों से परीक्षा न दे पाने के लिए अतिरिक्त अवसर देने की मांग की थी।

वहीं याचिका पर फैसला सुनाते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि विभिन्न संविधानिक अदालतों द्वारा तय किए गए कानून के तहत बच्चे को जन्म देना महिला का मौलिक अधिकार है। किसी भी महिला को उसके इस अधिकार और मातृत्व सुविधा देने से वंचित नहीं किया जा सकता। यह आदेश जस्टिस अजय भनोट की खंडपीठ ने एपीटीयू से संबद्ध संबंध कानपुर के कृष्णा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालाजी की बीटेक छात्रा सौम्या तिवारी की याचिका पर पारित किया।

वहीं हाईकोर्ट ने याची को बीटेक के द्वितीय व तृतीय सेमेस्टर के दो प्रश्नपत्रों में सम्मलित होने के लिए अतिरिक्त अवसर देने का निर्देश देते हुए कहा कि विवि याची को परीक्षा में शामिल होने के लिए अतिरिक्त अवसर दे। साथ ही कोर्ट ने छात्रा को इस संबंध में विश्वविद्यालय को अपने सभी मेडिकल दस्तावेजों के साथ प्रत्यावेदन देने का निर्देश दिया है। 

वहीं कोर्ट ने कहा है कि विश्वविद्यालय छात्राओं को मातृत्व लाभ देने से मना नहीं कर सकता है। ऐसा करना संविधान के अनुच्छेद 14, 15(3) और अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है। नियम न होने के आधार पर मातृत्व लाभ देने से मना नहीं कर सकते। वहीं, विवि के अधिवक्ता ने कहा कि विश्वविद्यालय में ऐसा कोई नियम नहीं है जिसके आधार पर अंडर ग्रेजुएट छात्रा को मातृत्व लाभ दिया जाए।

वहीं हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद शिक्षाविद् और विद्यार्थियों ने सराहना की है और कहा है कि उन छात्र-छात्राओं के लिए नजीर है, जो गर्भावस्था या बीमारी के कारण पढ़ाई नहीं कर पाते और कोर्स में पास होने की समयसीमा खत्म हो जाने के कारण शांत बैठ जाते हैं।

वहीं दूसरी तरफ़ हाई कोर्ट का फैसला बहुत अच्छा है, इससे छात्र-छात्राओं को लाभ होगा। सीएसजेएमयू पहले से ही छात्र-छात्राओं की स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों को ध्यान में रखकर उनके हित में फैसले लेता है। मातृत्व संबंधी ही नहीं, बल्कि अन्य गंभीर बीमारियों में भी छात्र-छात्राओं को विवि की ओर से परीक्षा देने की छूट दी गई है। सभी विवि यूजीसी के अधीन संचालित होते हैं, लिहाजा यूजीसी के नियमों में भी बदलाव की जरूरत है। 
वहीं सभी विवि मातृत्व संबंधी या प्रसव से पहले और बाद में स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को ध्यान में रखकर छात्राओं के हित में कदम उठाते हैं। हो सकता है कि कोर्स पूरा करने संबंधी समयसीमा काफी ज्यादा होने के कारण एकेटीयू प्रशासन ने छात्रा को रोका हो। यह विवि के विवेक पर निर्भर है कि वह ऐसे मामलों में उचित कारण देखते हुए कार्यपरिषद की बैठक में प्रस्ताव पारित कराए और परीक्षा कराए।