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यूपी: लखनऊ में कोआपरेटिव बैंक में विलय के पक्ष में नहीं जिला सहकारी बैंक। .
लखनऊ। उत्तर प्रदेश कोआपरेटिव बैंक (यूपीसीबी) में विलय कराने के लिए जिला सहकारी बैंक सहमत नहीं है, यही वजह है कि अब तक किसी भी जिले ने प्रस्ताव पारित नहीं किया है, क्योंकि इस कदम से अलग-अलग सहकारी बैंकों का प्रबंधन होने के बजाए एक ही बैंक के नियम सभी शाखाओं पर लागू होंगे। कामकाज में पारदर्शिता आने के साथ ही बैंक कार्मिकों को भी लाभ होगा, लेकिन बैंक संचालक इसके पक्ष में नहीं हैं।
वहीं सहकारिता विभाग के अधीन प्रदेश में उत्तर प्रदेश कोआपरेटिव बैंक की एक शाखा, जबकि 50 जिलों में जिला सहकारी बैंक संचालित हैं। इन सभी 51 बैंकों को अलग-अलग प्रबंधन संचालित कर रहा है। हर माह करोड़ों रुपये खर्च हो रहे हैं साथ ही कर्मचारी भी उसी जिले में वर्षों से जमे होने से राजनीतिक गतिविधि में शामिल हो रहे हैं। बैंकों का अपेक्षित कंप्यूटरीकरण व अन्य कार्य न हो पाने से वहां पारदर्शिता का अभाव है, इसके अलावा कार्मिकों को वेतन सही से नहीं मिल पा रहा है। केंद्रीय सहकारिता मंत्री अमित शाह ने सहकार भारती के अधिवेशन में कहा था कि वे जिला सहकारी बैंकों को प्रदेश बैंक के साथ नाबार्ड से जोड़ेंगे। अब इस पर निगाहें टिकी हैं।
वहीं प्रदेश सरकार ने यूपीसीबी व जिला सहकारी बैंकों के बेहतर प्रबंधन के लिए 31 अक्टूबर 2018 को आइआइएम लखनऊ के प्रोफेसर विकास श्रीवास्तव की अगुवाई में कमेटी गठित किया। समिति ने फरवरी 2020 में सरकार को रिपोर्ट सौंपा है कि जिला सहकारी बैंकों का यूपीसीबी में विलय कर दिया जाए, इसके अलावा कई अन्य अहम सुझाव दिए गए हैं, ये प्रकरण शासन स्तर पर लंबित है।
वहीं दूसरी तरफ यूपीसीबी के मुख्य महाप्रबंधक एनके सिंह ने सभी जिला सहकारी बैंकों के सचिव व मुख्य कार्यपालक अधिकारी को 14 दिसंबर को पत्र लिखा कि वे अपने बैंक की प्रबंध समिति का यूपीसीबी में विलय कराने के संबंध में पारित प्रस्ताव व बैंक की सामान्य निकाय की बैठक में प्रस्ताव के अनुमोदन के संबंध में अवगत कराएं। साथ ही जिन बैंकों ने विलय का प्रस्ताव अब तक पारित नहीं किया है वे भी इस संबंध में उन्हें सूचित करें। सिंह का कहना है कि किसी भी जिले ने इस संबंध में प्रस्ताव पारित नहीं किया है।
वहीं को आपरेटिव बैंक इंप्लाइज यूनियन के प्रदेश महामंत्री सुधीर कुमार ङ्क्षसह का कहना है कि उनका संगठन लंबे समय से विलय की मांग कर रहा है। मजदूर संगठन कई बार प्रस्ताव पास करके मुख्यमंत्री को भेज चुके हैं। उन्होंने बताया कि विलय न होने से बैंक में पारदर्शिता नहीं है साथ ही कार्मिकों को अपेक्षित वेतन नहीं मिल रहा है। सिंह ने बताया कि बहराइच व सुलतानपुर में तीसरा, अयोध्या में चौथा, गोरखपुर व वाराणसी में पांचवां और गाजियाबाद-मेरठ में सातवां वेतन आयोग के हिसाब से वेतन मिल रहा है।