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यूपी: वाराणसी चेतसिंह घाट पर अमृत महोत्सव में गदर बनारस नाटक का हुआ आयोजन।

यूपी: वाराणसी चेतसिंह घाट पर अमृत महोत्सव में गदर बनारस नाटक का हुआ आयोजन।

                              𝐒𝐡𝐮𝐛𝐡𝐚𝐦 𝐊𝐮𝐦𝐚𝐫 𝐆𝐮𝐩𝐭𝐚 

वाराणसी। अंतरराष्ट्रीय काशी घाटवाक विश्वविद्यालय के तत्वावधान में आजादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत बनारस के प्रसिद्ध चेतसिंह घाट पर सुपरिचित लोक कलाकार अष्टभुजा मिश्र के निर्देशन में गदर बनारस में नाम से नौटंकी शैली में एक नाटक का मंचन किया गया। चेतसिंह से शुरु होकर मंगल पांडे ,लक्ष्मीबाई, शहीद चंद्रशेखर से होता हुआ यह नाटक बनारस के पत्र 'रणभेरी' तक की यात्रा करता है जिसमें काशी में विविध समयों में हुए साम्राज्यवादी विद्रोह को दिखाया गया है।इसमें जिस समय रात के अंधेरे में चुपके से हेस्टिंग गंगा में नाव के सहारे प्रवेश करते हुए चुनार के लिए भागता है उस समय चेत सिंह की जय से पूरा घाटवाक परिसर गूंज उठा।

वहीं नौटंकी की संवाद शैली में सम्पन्न इस इस नाटक में चेत सिंह की भूमिका में निखिल,नन्हकू सिंह की भूमिका में अष्टभुजा मिश्र,मार्केहम की भूमिका में विक्रांत शर्मा ,हेस्टिंग की भूमिका में आयुष वार्ष्णेय,चंद्रशेखर की भूमिका में हर्षित सिंह,मंगल पांडे की भूमिका में शशि यादव,संपूर्णानंद की भूमिका में रवि कांत मिश्र, झांसी की रानी की भूमिका में ऋतु सिंह,भारत माता की भूमिका में गौरी मिश्र,नट नर्तक की भूमिका में मुकुन्दी लाल, सिपाही की भूमिका में संतोष निगम और नटी तथा सूत्रधार की भूमिका में नेहा वर्मा व अष्टभुजा मिश्र रहे।वादकों में हारमोनियम पर रोशन लाल,नक्कारा पर सूरज बलि, और ढोलक पर विक्रम विंद रहे।

वहीं दूसरी तरफ़ इस अवसर पर उपस्थित कलाकारों व दर्शकों को संबोधित करते हुए घाटवाक विश्वविद्यालय के संस्थापक प्रसिद्ध न्यूरो चिकित्सक प्रो. विजय नाथ मिश्र ने कहा कि आजादी के अमृत महोत्सव में अपनी सांस्कृतिक विरासत को समझने के लिए इस नाटक के मंचन का महत्व सर्वाधिक है।काशी का चेत सिंह घाट बनारस के इत्तिहास का वह स्वर्णिम पक्ष है जहां से औपनिवेशिक सत्ता के प्रति बनारस के विद्रोह का पता चलता है।

बता दें कि घाटवाक विश्वविद्यालय के मानद डीन व प्रसिद्ध साहित्यकार प्रो. श्री प्रकाश शुक्ल ने कहा कि चेत सिंह घाट पर नाटक का मंचन कर न केवल हम वारेन हेस्टिंग के पलायन को दिखा सके हैं बल्कि नई पीढ़ी को यह भी बताने में सफल हुए हैं कि बनारस पर बाद में अंग्रेजों का कब्जा यहां के कुबरा व चेतराम जैसे दगाबाजों के कारण ही संभव हुआ। चेत सिंह घाट का इत्तिहास हमें बनारस की जनता व यहाँ के नन्हकू सिंह जैसे पहलवानों की वीरता की याद दिलाता है। 

बता दें कि वहीं हमें यह घटना यह भी याद दिलाती है कि अगर बेनीराम जैसे गद्दार ने हेस्टिंग का साथ न दिया होता तो हेस्टिंग बनारस में ही मारा गया होता और तब काशी का इत्तिहास कुछ और होता। इस अवसर पर प्रो बाला लखेन्द्र, संजय सिंह, सुनीता शुक्ल, शेफाली आभा, अरुणा, डा. महेंद्र कुशवाहा, अभिषेक गुप्ता, अवनींद्र कुमार सिंह, अक्षर पाठशाला के गोविंद सिंह, कविता, जितेंद्र कुशवाहा, देवेंद्र दास, गोविंद सिंह, के साथ दर्शकों के रूप में भारी संख्या में घाटवाकर उपस्थित रहे।