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यूपी: अब विदेश में चमक बिखेरेंगे भदोही के इको फ्रेंडली कालीन।
भदोही। बदलते परिवेश में उत्पादों की गुणवत्ता में जहां आमूलचूल परिवर्तन देखने को मिल रहा है, वहीं ग्राहकों को रिझाने के लिए उद्यमी नए-नए प्रयोग कर रहे हैं। अब कालीन उद्योग केमिकल रहित प्राकृतिक रा-मैटेरियल इको फ्रेंडली कच्चा माल यानी प्लास्टिक कचरे से बने पैट यार्न से बनने वाले कालीन के उपयोग की दिशा में कदम बढ़ा रहा है।
वहीं अमेरिका सहित विश्व के प्रमुख देशों के आयातक इको फ्रेंडली कालीन उत्पादों की मांग करने लगे हैं। यही कारण है कि जनपद के प्रमुख कालीन उत्पादकों ने ग्राहकों की मांग के अनुसार उत्पादन शुरू कर दिया है। आलम यह है कि काती-रंगाई से लेकर कालीन की धुलाई तक केमिकल का कम से कम उपयोग किया जा रहा है।
बता दें कि पश्चिमी देशों में पैट यार्न यानी प्लास्टिक के धागों से तैयार कालीन की मांग तेजी से बढ़ी है। भारत के परंपरागत कालीन उद्योग पर इसका असर देखा जा सकता है। प्लास्टिक कचरे से बने पैट यार्न से बनने वाले इन आधुनिक कालीनों को ईको फ्रेंडली भी बताया जा रहा है। लागत कम और मांग अधिक होना भी कारोबारियों के लिए फायदे का सौदा साबित हुआ है।
वहीं दूसरी तरफ़ भदोही और मीरजापुर परिक्षेत्र के कई कालीन निर्यातक पैट यार्न से कालीन बनाकर निर्यात करने लगे हैं। कारोबारी इससे नई उम्मीद बांधे हुए हैं, लिहाजा इसे प्रमोट भी खूब किया जा रहा है। दरी जैसी इन कालीनों की डिमांड यूरोप और अमेरिका में बहुत है। वस्त्र मंत्रालय और कालीन निर्यात संवर्धन परिषद ने भी इसे हाथों हाथ लिया है। बनारस, मीरजापुर व भदोही को केंद्र बिंदु बनाया गया है। गोपीगंज की ओवरसीज ग्लोबल कंपनी इसका उत्पादन पिछले चार वर्ष से कर रही है।
वहीं दूसरी तरफ़ इसके मालिक संजय कुमार गुप्ता ने बताया कि कई देशों में इसकी मांग को देखते हुए अब वह बड़े पैमाने पर काम कर रहे हैं। निर्यात में पैट यार्न से तैयार कालीनों की भागीदारी 10 फीसद है, इसमें लगातार बढ़ोतरी हो रही है। पैट यार्न से तैयार कालीनों को विदेश में आउटडोर कारपेट कहते हैं। इसके खरीदार लान, छत, बरामदे व पार्क में इसका उपयोग करते हैं। पानी का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। कम लागत में तैयार होने वाली कालीन जल्दी खराब भी नहीं होती।