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यूपी: पहली बार काशी क्षेत्र में बुनी जाएगी पश्मीना शाल, बनारस और गाजीपुर की संस्थाओं ने शुरू कर दिया काम।

यूपी: पहली बार काशी क्षेत्र में बुनी जाएगी पश्मीना शाल, बनारस और गाजीपुर की संस्थाओं ने शुरू कर दिया काम।


वाराणसी। काशी क्षेत्र के गांवों की आधी आबादी अपने हाथों से पहली बार पश्मीना शाल की बुनाई करेगी। इसके लिए खादी ग्रामोद्योग आयोग ने लेह से लेकर काशी तक की पूरी रूपरेखा तैयार कर दी है। सबकुछ ठीक रहा तो नए साल जनवरी माह के अंतिम दिनों तक शाल की बुनाई शुरू कर दी जाएगी। 

वहीं इसमें बनारस की एक कृषक विकास ग्रामोद्योग संस्थान समेत गाजीपुर की तीन संस्थाएं क्रमश: ग्राम सेवा आश्रम, श्री महादेव खादी ग्रामोद्योग संस्थान व खादी कंबल उद्योग द्वारा काम शुरू कर दिया गया है। ये संस्थाएं लेह के चार गांवों में पश्मीना प्रजाति की बकरियों के बाल से ऊन बनाने का काम शुरू कर दी हैं। लेह में बने सूत से बनारस में शाल बुनी जाएंगी। इस प्रयास में लेह से लेकर काशी क्षेत्र के बीच इस साल हजारों महिलाओं को रोजगार से जोड़ने की तैयारी है।

वहीं लेह के चार गांव कसबोल, लेह, निखिर और शक्ति में सैकड़ों महिलाएं पश्मीना ऊन से सूत काटने का काम कर रही हैं। खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग की ओर से महिलाओं को चरखे दिए गए हैं। वास्तव में, ये महिलाएं साल के छह महीने कोई काम नहीं करती हैं ऐसे में आयोग ने पहल करते हुए लेह से काशी के बीच रोजगार का सेतु निर्मित कर मजबूत भविष्य का निर्माण करने की योजना बनाई है।

वहीं दूसरी तरफ़ संस्था से जुड़े पदाधिकारी बताते हैं कि उत्पादन में ट्रांसपोर्टेशन ही खर्च अतिरिक्त है। यह अधिकतम 100 रुपये प्रति शाल होगा। बाकी सभी कच्चे सामान की कीमत समान होगी। सबसे कम कीमत की साल छह से सात हजार से शुरू होगी। यह शाल पश्मीना के नाम से ही जानी जाएगी। देश-विदेश के बाजारों में कश्मीर की पश्मीना शाल से पहचान मिलेगी।

बता दें कि वहीं लेह से काशी के बीच की आयोग की सभी संस्थाएं क्षेत्र में कार्यशील हजारों महिलाओं के हाथ मजबूत करने पर बल दे रही हैं। हुनरमंद महिलाओं को चिन्हित किया जा रहा है। मातृशक्ति के जरिये समाज के हर सदस्य को सशक्त करने की दिशा में काम किया जा रहा है।

वहीं चूंकि यह पूरी कवायद खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग की है ऐसे में जीआई उत्पादन को लेकर कोई दुविधा नहीं है। लद्दाख हिल औटोनोमस डेवलपमेंट काउंसिल (एलएचएडीसी) द्वारा सरकार से मिलकर इस प्रकार के कामों को बढ़ावा दिया जा रहा है। ये संस्थाएं लेह से काशी तक कच्चा माल का आदान प्रदान करेंगी और पश्मीना शाल का उत्पादन भी।