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यूपी: जौनपुर शहर कोतवाली क्षेत्र में तहसीलदार को बनना पड़ा अनाथ तीन बच्चों का अभिभावक, बीमा की धनराशि देने के लिए हुई व्यवस्था।
जौनपुर। शहर कोतवाली क्षेत्र के बड़ी मस्जिद के पीछे गत 21 अक्टूबर को मकान गिरने से पांच लोगों की मौत हो गई थी। इसमें एक परिवार के माता-पिता समेत चार की भी मौत हो गई थी, लिहाजा जब आश्रितों को आर्थिक सहायता देने की बात आई तो प्रशासन के सामने चुनौती खड़ी हो गई। वजह कि बच्चे नाबालिग हैं और उनका बैंकों में खाता भी नहीं है। बैंक पहुंचे तो उन बच्चों के अंगूठे भी जल गए थे, फिर भी किसी तरह से खाता खोला गया। जब उनके बालिग न होने व नामिनी बनाने की बात आई तो एसडीएम ने बच्चों का अभिभावक तहसीलदार को बना दिया। जिससे उनका भविष्य सुरक्षित रह सके।
वहीं रौजा अर्जन में करीब सात दशक पुरानी ईंट व मिट्टी के गारे से बना पुश्तैनी जर्जर मकान था। 21 अक्टूबर की मध्य रात्रि में मकान अचानक भरभराकर गिर गया। जिसमें उस मकान में रह रहे पांच सदस्यों की मौत हो गई। घटना में तीन बच्चों के माता-पिता संजीदा व जमालुद्दीन दोनों की मौत हो गई। साथ ही इसी परिवार के दो अन्य सदस्यों की भी मौत हो गई थी। इससे नाबालिग वजीहुद्दीन उर्फ मोहम्मद वजी, स्नेहा, हेरा के सिर से माता-पिता का साया भी उठ गया। ऐसे में दैवीय आपदा के तहत मृत परिवार के आश्रितों को चार लाख रुपये की प्रति व्यक्ति आर्थिक सहायता दी जाती है।
वहीं दूसरी तरफ़ इसका भुगतान करते समय परिवार के अन्य लोग बच्चों के अभिभावक बनने की बात करने लगे, जिस पर एसडीएम हिमांशु नागपाल के नेतृत्व में अधिकारियों ने यह निर्णय लिया कि अगर परिवार के लोग बाद में बदल गए तो बच्चों का भविष्य खराब हो जाएगा। ऐसे सदर तहसीलदार को उनका अभिभावक बना दिया गया। जिससे परिवार के चार मृत सदस्यों के हिसाब से 16 लाख रुपये व दो मृत बकरी 12 हजार, गृह अनुदान के रूप में 95 हजार, कपड़े व बर्तन को 3800 रुपये दिए गए।
वहीं कुल मिलाकर 17 लाख 4900 रुपये ड्राफ्ट तैयार कर बच्चों के खाते में डाला गया। जिसका नामिनी सदर तहसीलदार को बनाया गया। इससे कोई भी इस पद पर तैनात अधिकारी ही भविष्य में बच्चों के बालिग होने तक पढ़ाई व शादी के समय निकालकर दे सकेगा। जिससे इनका पैसा सुरक्षित रहे।
बता दें कि वहीं रौजा अर्जन में बीते 21 अक्टूबर को मकान गिरने से तीन नाबालिग अनाथ हो गए थे। इसमें माता-पिता के साथ परिवार के कुल चार सदस्यों की मौत हो गई थी। इससे कुल चार लाख रुपये के हिसाब से 16 लाख व अन्य सहायता की राशि बच्चों के खाते में डाला गया। जिसका नामिनी तहसीलदार को बनाया गया। जिससे भविष्य में कोई भी इस पद पर अधिकारी रहेगा वह बच्चों के भविष्य में जरूरत के हिसाब से पैसा निकालकर देगा। निजी रिश्तेदारों पर भरोसा करके रिस्क नहीं लेना चाहते थे।