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यूपी: वाराणसी श्री काशी विश्वनाथ धाम पर शोध करेगी काशी सेंटर आफ एक्सीलेंस के तहत विश्वविद्यालयों से मांगा प्रस्ताव।
वाराणसी। श्री काशी विश्वनाथ धाम से लगायत काशी में तमाम तमाम विकास कार्य हुए हैं और लगातार हो भी रहा है। इसके बावजूद एक काम अब भी छूटा हुआ है उसकी कमी काशी ही नहीं दुनिया के इतिहासकार लंबे समय से महसूस कर रहे हैं। उस कार्य का पूरा करने का बीड़ा अब काशी के उच्च शैक्षिक संस्थानों ने उठाया है। वह है श्रीकाशी विश्वनाथ धाम पर शोध।
वहीं श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के गौरवशाली इतिहास पर महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के गांधी अध्ययनपीठ के सभागार में रविवार को आयोजित इतिहासकारों के सम्मेलन का यह निष्कर्ष रहा। सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए उच्च शिक्षा की मुख्य अपर सचिव मोनिका एस. गर्ग ने कहा कि वास्तव में काशी पर बहुत काम हुआ है लेकिन श्रीकाशी विश्वनाथ धाम पर काम करने की आवश्यकता है।
वहीं दूसरी तरफ़ उन्होंने मंच पर बैठे काशी विद्यापीठ, जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालयव संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति से श्री काशी विश्वनाथ धाम पर शोध करने के लिए बड़े प्रोजेक्ट बनाने का अनुरोध किया ताकि सेंटर आफ एक्सीलेंस के तहत शासन न केवल इसे मंजूरी दे सके, बल्कि प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए वित्तीय सहायता भी मुहैया करा सके। प्रोजेक्ट के माध्यम से अपने इतिहास सही रूप से अध्ययन कर सके और फिर लिख सके।
बता दें कि काशी विश्वनाथ मंदिर पर जहां हम बात कर रहे है कि उसका अध्ययन किया जाय। 11 से 17वीं सदी के मध्य श्री काशी विश्वनाथ मंदिर को बार-बार तोड़े जाने के बाद भी इसका पुर्ननिर्माण हुआ और आज इसका भव्य स्वरूप देकर मन पुलकित हो रहा है। आज वाराणसी में विकास की गंगा बह रही है। काशी की महिमा का बखान करते हुए उन्होंने कहा कि वाराणसी सदैव से शैक्षणिक सांस्कृतिक, साहित्यक गतिविधियों का केंद्र रहा है।
वहीं प्रधानमंत्री के आशीर्वाद व मुख्यमंत्री के निर्देशन में जो विकास हो रहा है उसे अक्षुण्य बनाने रखने के लिए हम सभी का योगदान आवश्यक है। काशी को स्वच्छ बनाने रखने में इसकी सांस्कृतिक, शैक्षिक को अक्षुण्य बनाए रखने में यदि हर काशीवासी व प्रदेशवासी अपना योगदान देगा तो मुझे विश्वास है जिसका इतिहास गौरवशाली रहा है वहां इसका भविष्य और भी गौरवशाली होगा।
वहीं बनारस एक नगर ही नहीं है बनारस एक इतिहास है। यह ईंट पत्थर का शहर ही नहीं है। यह एक संस्कृति है। यह कोई भारतीय परंपराओं, मान्यताओं व पूजा-निष्ठा का शहर है। इसे देखना आसान है लेकिन पहचाना मुश्किल है। इसे छूना आसान है इसे पकड़ पाना मुश्किल है। इसे चित्रों में उतारना आसान है परंतु इसे आत्मसात करना मुश्किल है। इसे देखने व पहचाने के लिए दृष्टि ही नहीं अंतर दृष्टि चाहिए। इसे समझने व पकड़ने के लिए अनुक्ति नहीं विरक्ति चाहिए।
वहीं इसे आत्मसात करने के लिए कामना पर्याप्त नहीं है। साधना भी चाहिए। इससे परिचित होने के लिए यात्रा पर्याप्त नहीं है। अंतयात्रा ज्यादा जरूरी है। यही अतीत का शास्वत है। इसका व्यक्तित्व है। बाबा की यह नगरी कभी रूकती नहीं है। कभी थकती नहीं है। कभी थमती नहीं है। काशी अविरल है। काशी पावन है। काशी पूर्ण है। संपूर्ण तीर्थ है। आनंदवन, अविमुक्त है। काशी काशी है।सम्मेलन के मुख्य वक्ता अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना नई दिल्ली के राष्ट्रीय संगठन सचिव डा. बाल मुकुंद पांडेय ने कहा कि वर्तमान में काशी पर सैकड़ों ग्रंथ मौजूद है लेकिन काशी विश्वनाथ पर एक भी नहीं है।
वहीं सभी ग्रंथों में श्रीकाशी विश्वनाथ को समाहित कर दिया गया है। ऐसे में श्रीकाशी विश्वनाथ पर शोध ग्रंथ प्रकाशित करने की जरूरत है। इसमें इसका सही इतिहास व भूगोल भी दर्शाने की आवश्कता है। काशी शिव के त्रिशुल पर टिकी हुई है। वास्तव में सृष्टि की उत्पत्ति काशी से ही हुई है। उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य की बात यह है कि देश में 98 मंदिर को तोड़ कर मस्जिद बनाया गया था। काशी विश्वनाथ को देखें, नंदी का मुंह किधर था। कहा कि भारतीय संस्कृति के अनुरूप इतिहास लेखन में युवाओं का सहयोग लेने की आवश्यकता है।
बता दें कि मुख्य वक्ता लोक सेवा आयोग प्रयागराज के सदस्य प्रो. आरएन त्रिपाठी ने कहा कि काशी सामान्य नहीं है। इतिहास से भी प्रचीनतम से प्राचीन है काशी। उन्होंने नए भारत के निर्माण के लिए भारतीय संस्कृति पर आधारित इतिहास लेखन करने का सुझाव दिया। अध्यक्षता करते हुए विद्यापीठ के कुलपति प्रो. आनंद कुमार त्यागी ने कहा कि काशी विश्वनाथ का इतिहास लेखन में वैज्ञानिक दृष्टि बेहद जरूरी है।
वहीं दो सत्रों के सम्मेलन में पद्मविभूषण पं. छन्नू लाल मिश्र, संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. हरेराम त्रिपाठी,बीएचयू के प्रो. राणा पीबी सिंह, जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. कल्पलता पांडेय, पूर्व कुलपति प्रो. योगेंद्र सिंह, क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारी डा. ज्ञान प्रकाश वर्मा, सहित अन्य लोगों ने विचार व्यक्त किया। स्वागत कुलसचिव डा. सुनीता पांडेय, संचालन डा. रचना व धन्यवाद ज्ञापन डा. केके सिंह ने किया।