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वाराणसी: यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में पूर्वांचल से भाजपा ने रोकी फिर साइकिल की रफ्तार।
वाराणसी। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की यह पंक्तियां भारतीय जनमानस को प्रेरित करती हैं। राजनीति से विरत रहने के बजाय उस पर नजर रखने और सच कहने का बल भरती हैं। वस्तुत: वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में प्रजातंत्र में प्रजा ने मताधिकार से प्रयोग से अपनी बात कही और नतीजा चौंकाने वाला रहा।
वहीं जनता ने सरकार बदल दी और लोकतंत्र की ताकत का अहसास कराया। बदलाव की बयार कुछ ऐसी बही कि वर्ष 2012 की तुलना में 2017 में प्रदेश का समूचा राजनीतिक परिदृश्य ही बदल गया। जनादेश की बदौलत ही भाजपा ने पूर्वांचल में सपा की साइकिल की रफ्तार रोकी और सरकार की बागडोर योगी आदित्यनाथ ने संभाली, जबकि 2012 के चुनाव में कई जिलों में भाजपा की झोली खाली ही रह गई थी।
वहीं बीते वर्ष 2012 के चुनाव में पूर्वांचल के दस जिलों की 61 सीटों में से 41 पर अकेल दम पर जीत हासिल करने वाली समाजवादी पार्टी पिछले चुनाव में महज 12 सीटों पर ही सिमट गई। कांग्रेस का तो पूरे पूर्वांचल में खाता तक न खुल सका। जबकि वर्ष 2012 में कांग्रेस ने वाराणसी, जौनपुर और मीरजापुर में तीन सीटें हासिल की थीं। कांग्रेस से गठबंधन के बावजूद सर्वाधिक नुकसान सपा को उठाना पड़ा। भाजपा ने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) और अपना दल (एस) के साथ गठबंधन किया और इस गठबंधन को 61 में से 41 सीटें हासिल हुईं।
वहीं दूसरी तरफ़ वाराणसी में भाजपा को यहां 2012 के चुनाव में कुल आठ सीटों में से मात्र तीन पर ही संतोष करना पड़ा था, जबकि 2017 के चुनाव में सभी सीटोंं पर भाजपा गठबंधन को जीत हासिल हुई। हालांकि सुभासपा से अब भाजपा का नाता टूट चुका है, लेकिन 2017 के चुनाव में सुभासपा अपने नाम मात्र तीन सीटें ही कर पाई थी। इसी तरह सपा का गढ़ माने जाते रहे आजमगढ़ में सपा ने 2012 में कुल 10 में से नौ सीटों पर विजय पताका लहराई थी जबकि पिछले चुनाव में उसे पांच सीटें ही हासिल हो सकीं।