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पंजाब: चंडीगढ़ मध्य मार्ग सेक्टर-7 और 26 के शोरूम की बैक साइड अवैध नाइट क्लब और बार की शिकायत एमएचए और सीबीआइ को नोटिस।
पंजाब। चंडीगढ़ मध्य मार्ग सेक्टर-7 और 26 के शोरूम की बैक साइड अवैध नाइट क्लब और बार का मामला होम मिनिस्ट्री तक पहुंच गया है। शहर की एक संस्था और आरटीआइ एक्टिविस्ट ने इसकी शिकायत होम मिनिस्ट्री और सीबीआइ को की है। शिकायत में शहर में चल रहे इस खेल में अफसरों की मिलीभगत की जांच करने को कहा है। इसके साथ ही यह मांग भी की गई है कि प्रशासन के विभिन्न विभागों के अफसरों की जिम्मेदारी भी तय हो, जिनके चलते अवैध डिस्क बार और रेस्टोरेंट्स खुल गए हैं।
वहीं शिकायत में कहा गया है कि संपदा विभाग, बिल्डिग ब्रांच तथा एक्साइज डिपार्टमेंट के अफसरों के मिलीभगत से इन नाइट क्लब बार तथा रेस्टोरेंट्स को चलाने की अनुमति दी गई, जबकि नियमों के अनुसार यहां केवल गोदाम खुल सकते हैं। नियमों के अनुसार लाला यहां का बिल्डिग प्लान अप्रूव हो सकता है और ना ही फायर के एनओसी मिल सकती है। यही नहीं टेंपरेरी स्ट्रक्चर में बार का लाइसेंस भी नहीं दिया जा सकता। बिना कन्वर्जन करोड़ों का नुकसान
वहीं शिकायत में यह भी कहा गया है कि बिना कन्वर्जन के नाइट क्लब बार तथा रेस्टोरेंट्स चलाने से प्रशासन को करोड़ों रुपए का रेवन्यू लॉस हुआ है। नियमों के अनुसार बिना कन्वर्जन के यहां गोदाम के अतिरिक्त कोई अन्य एक्टिविटी नहीं की जा सकती। इंडस्ट्रियल एरिया में प्रशासन ने होटल बार तथा रेस्टोरेंट्स बनाने के लिए 30 हजार रुपये प्रति वर्ग गज के हिसाब से कन्वर्जन फीस ली थी।
वहीं दूसरी तरफ़ इन अवैध क्लब को एनओसी देने के लिए इस्टेट आफिस बिल्डिग ब्रांच के अफसर बिना साइट विजिट किए ही अपनी कार्रवाई कर देते हैं। यहां तक की फाइल में इस अवैध निर्माण को छिपाने के लिए आर्किटेक्ट से फर्जी बिल्डिग प्लान तक अप्रूव कर लगवा देते हैं। ताकि अफसरों के पास अगर यह फाइल जाए तो उसमें अवैध निर्माण का कोई जिक्र न हो। इस अवैध निर्माण को बिल्डिग प्लान या नक्शा में छिपाने के लिए क्लब मालिकों से मोटी रकम वसूल की जाती है।
वहीं अगर कोई उद्योगपति या आम नागरिक अपनी जरुरत के अनुसार कोई निर्माण कर लेता है, उसे नोटिस भेजकर फौरन तोड़ दिया जाता है। मध्यमार्ग पर शोरूम के पिछले हिस्से को तोड़कर अगर वहां अवैध क्लब बनाए जा सकते हैं, तो हाउसिग बोर्ड और इस्टेट आफिस के पास आम जनता और उद्योगपतियों के जो लंबित मुद्दे हैं। उनको प्रशासन क्यों नहीं सुलझा देता या उनसे मिसयूज और बिल्डिग वॉयलेशन के नाम पर भारी जुर्माना वसूलना क्यों बंद नहीं करता है। अगर इन क्लब मालिकों को रियायत दी जा सकती है तो उद्योगपतियों और आम नागरिकों को क्यों नहीं।
वहीं सुरेंद्र शर्मा, वाइस चेयरमैन, क्राफ्ड। समय के अनुसार मास्टर प्लान और बिल्डिग बायलॉज में संशोधन होना चाहिए। अगर प्रशासन मध्यमार्ग के शोरूम के बैकसाइड में बड़े-बड़े क्लब खोलने की अनुमति दे सकता है, तो आम जनता को उनके घर में जरूरत के अनुसार बदलाव या निर्माण को मंजूरी क्यों नहीं दे सकता। कोई आम व्यक्ति अगर अपने घर में एक ईंट भी फालतू जोड़ देता है, तो प्रशासन उसे तोड़ देता है, तो इन अवैध क्लब पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं या फिर रुल्स में संशोधन क्यों नहीं किया जाता।