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भारत-चीन सीमा विवाद पर अमेरिका ने बीजिंग को किया आगाह, क्या कहा?

भारत-चीन सीमा विवाद पर अमेरिका ने बीजिंग को किया आगाह, क्या कहा?

नई दिल्ली । भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में बीते करीब डेढ़ साल से ज़्यादा वक़्त से तनाव की स्थिति बनी हुई है. दिक्कतों को दूर करने के लिए दोनों देशों के बीच सैन्य स्तर की बातचीत के कई दौर हो चुके है लेकिन अब तक समाधान हासिल नहीं हुआ है.

अमेरिका का ताज़ा बयान ऐसे वक्त आया है जब भारत और चीन के बीच सैन्य स्तर की बातचीत का 14वां दौर शुरू होने को है.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक कोर कमांडर स्तर की ये बातचीत बुधवार (12 जनवरी) को हो सकती है.

भारत के अलावा चीन के ताइवान के साथ रिश्तों में भी ऐतिहासिक गिरावट देखने को मिली है. चीन ताइवान को अपना प्रांत बताता है जबकि ताइवान ख़ुद को संप्रभु देश मानता है. दक्षिणी चीन सागर को लेकर भी चीन का अपने कई पड़ोसी देशों के साथ विवाद जारी है. वहीं, पूर्वी चीन सागर में चीन का जापान के साथ विवाद है.


इस बीच कई जानकार ये भी दावा करते रहे हैं कि चीन ताइवान पर अपने दावों को मज़बूत करने के लिए भारत के साथ अपने टकराव का फ़ायदा उठा सकता है.

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उन्होंने कहा, "इस इलाक़े और पूरी दुनिया में बीजिंग के बर्ताव को हम कैसे देखते हैं इसे लेकर हमारा रुख साफ़ है. हम मानते हैं कि ये हालात को अस्थिर कर सकता है और हम पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना की पड़ोसियों को धमकी देने की कोशिश को लेकर चिंतित हैं."

जेन साकी ने कहा, "इस मामले में हम अपने साझेदारों के साथ खड़े रहेंगे."


भारत और चीन के बीच सैन्य स्तर की बातचीत के जरिए पूर्वी लद्दाख के विवादित मुद्दों को सुलझाने की कोशिश जारी है.

बीते साल 10 अक्टूबर को दोनों देशों के बीच 13वें दौर की बातचीत हुई थी. हालांकि, इसमें गतिरोध बना रहा और कोई समाधान नहीं मिला.

बातचीत के दौरान दोनों ही पक्ष कोई प्रगति हासिल करने में कामयाब नहीं हुए.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक बातचीत के बाद भारतीय सैन्य अधिकारियों ने बताया कि उनकी ओर से जो 'सकारात्मक सुझाव' दिए गए थे, उन्हें चीनी पक्ष ने मंजूर नहीं किया. वहीं चीन की ओर से ऐसे कोई प्रस्ताव नहीं दिए गए जिससे मामला 'आगे बढ़ सके.'

भारत और चीन के बीच 18 नवंबर को कूटनीतिक स्तर पर वर्चुअल बातचीत हुई थी. इसी दौरान सैन्य स्तर की बातचीत के 14वें दौर के आयोजन पर सहमति बनी थी ताकि पूर्वी लद्दाख के जिन इलाक़ों को लेकर विवाद है, वहां डिसइनगेजमेंट प्रक्रिया को पूरा किया जा सके.


भारत और अमेरिका समेत दुनिया के कई देश हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बढ़ते चीन के सैन्य दबदबे के बीच इस इलाक़े में आज़ादी और खुलेपन के साथ आवाजाही तय करने की हिमायत करते रहे हैं.

चीन दक्षिणी चीन सागर के विवादित इलाके पर अधिकार का दावा करता है. जबकि ताइवान, फिलीपीन्स, ब्रूनेई, मलेशिया और वियतनाम भी इस पर अपना दावा जताते हैं.

चीन ने पड़ोसी देशों की दावेदारी को दरकिनार करते हुए दक्षिणी चीन सागर में कृत्रिम द्वीप और सैन्य ठिकाने बना लिए हैं. ईस्ट चाइना सी में चीन और जापान के बीच विवाद है.

अमेरिका इस इलाके में अपने क्षेत्रीय सहयोगियों का समर्थन करता रहा है. अमेरिका यहां अपनी नौ सेना और वायु सेना के विमानों को भी भेजता रहा है. अमेरिका अपने कदम को चीन सागर में मुक्त आवाजाही तय करने की कोशिश से जोड़ता रहा है.

अमेरिका का कहना है कि वो शांति और स्थिरता बनाए रखना चाहता है. उसकी कोशिश अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के मुताबिक समुद्रों की आज़ादी बरकरार रखने की है और वो किसी विवाद के ताक़त के साथ हल किए जाने का विरोध करता है.

पड़ोसियों से जुड़े बयानों को लेकर अमेरिका और चीन के बीच तनाव की स्थिति भी बनती रही है.



पूर्वी लद्दाख इलाके में भारत और चीन की सेनाओं के बीच विवाद की शुरुआत 5 मई 2020 को हुई थी. उसके बाद

15 जून को गलवान घाटी में एक बार फिर दोनों देशों के सैनिकों के बीच झड़प हुई. इसमें दोनों तरफ़ के कई सैनिकों की मौत हुई थी.

गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद दोनों देशों के प्रतिनिधियों के बीच कई दौर की बातचीत हुई.

दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में हुई सहमति के बाद फ़रवरी 2021 में डिसइंगेजमेंट की प्रक्रिया शुरू की गई.

सैन्य और कूटनीतिक स्तर की कई दौर की बातचीत के बाद दोनों पक्षों ने पैंगोंग लेक के उत्तर और दक्षिणी तटों और गोगरा क्षेत्र से सैनिकों को पूरी तरह से हटाने (डिसइंगेजमेंट) प्रक्रिया पूरी कर ली. एक अनुमान के मुताबिक फिलहाल एलएसी (वास्तविक नियंत्रण रेखा) के संवेदनशील सेक्टर में दोनों देशों के 50 से 60 हज़ार सैनिक तैनात हैं.

चीन का पहले से ही लद्दाख के पूर्वी इलाक़े अक्साई चिन पर नियंत्रण है.

चीन लगातार यह कहता आया है कि मौजूदा हालात के लिए लद्दाख को लेकर भारत सरकार की आक्रामक नीति ज़िम्मेदार है जबकि भारत का कहना है कि उसने एलएसी पर एकतरफ़ा कार्रवाई करते हुए यथास्थिति बदल दी है.

भारत और चीन के बीच लगभग 3,440 किलोमीटर लंबी सीमा है. मगर,1962 की जंग के बाद से ही इस सरहद का अधिकतर हिस्सा स्पष्ट नहीं है और दोनों ही देश इसे लेकर अलग-अलग दावे करते हैं.