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भदोही : अनोखा यह शिव मंदिर, जहां भक्तों का लगाता तांता , सरकारी सुविधाओं से हैं वंचित

भदोही : अनोखा यह शिव मंदिर, जहां भक्तों का लगाता तांता , सरकारी सुविधाओं से हैं वंचित

भदोही । देश भर में ऐसे कई शिवालय हैं जो बहुत अद्भुत हैं और उनकी मान्यता भी है। ऐसा ही एक शिवलिंग काशी-प्रयाग के मध्य गंगा किनारे भदोही जिले में स्थित है जो भगवान भोलेनाथ के त्रिशूल और भगवान कृष्ण के सुदर्शन से हुई टक्कर से निकली रोशनी से स्थापित हुआ और इसे सेमराधनाथ के नाम से जाना जाता है। यहां सावन के साथ पूरे साल दर्शन के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है।


इस अनोखे शिवमन्दिर के पुजारी मनराज गिरी ने  धीरज चौबे ( सहयोगी संवाददाता ) को बताया कि इस बाबा भोलेनाथ मन्दिर का इतिहास सदियों पुरानी है । लेकिन प्रदेश की सरकारों ने इस जनपद स्तर पर प्रमुख मंदिर को कभी - भी पर्यटक एवं सांस्कृतिक विरासत स्थल का दर्जा नहीं दिया। यह माता गंगा की तट से भी करीब होने के साथ माघ मास में कल्पवासी भी यहां रुका करते हैं।  इस मन्दिर का संचालन निजी कमेटियों और लोगों द्वारा संचालित किया जा रहा है। इसको अब सरकारी सुविधाओं के दायरे में लाने की जरूरत है। 

वहीं इस मन्दिर की इतिहास पर नजर डालें तो यह शिव मंदिर अपने आप में बेहद ही धार्मिक स्थल है। बता दें कि द्वापर युग में काशी की तरफ पुण्डरीक नाम का एक राक्षस था और उसने खुद को भगवान कृष्ण घोषित कर रखा था इसके साथ ही उसने प्रजा से खुद की पूजा करने का आदेश दे रखा था। आदेश न मानने पर वह लोगों को प्रताड़ित करता। यह जानकर भगवान कृष्ण ने पुण्डरीक को समझाया लेकिन जब वह नहीं माना और भगवान कृष्ण को ललकारने लगा। इस पर क्रोधित होकर भगवान कृष्ण ने अपना सुदर्शन चक्र पुण्डरीक पर छोड़ दिया और वह मारा गया। यहां सुदर्शन चक्र से पूरी काशी प्रभावित हो गई और धूं-धूं कर जलने लगी। इस पर भगवान भोलेनाथ ने कृष्ण से कहा कि प्रभु काशी जल रही है अब मैं कहा जाऊं इसे लेकर सभी देवताओं ने एक प्रस्ताव रखा जिसके तहत प्रयागराज से भगवान कृष्ण ने अपना सुदर्शन और काशी से भगवान भोलेनाथ ने अपना त्रिशूल छोड़ा। त्रिशूल और सुदर्शन काशी-प्रयाग के मध्य टकराये और उससे उत्पन्न एक अलौकिक रोशनी से गंगा किनारे शिवलिंग की स्थापना हो गई।


धीरज चौबे से पुजारी ने बताया कि दर्शनार्थी पहले मंदिर में प्रवेश करते हैं फिर सीढ़ियों से मौजूद गहराई में उतरकर दर्शन करते हैं। मान्यता है कि यहां दर्शन करने से मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। दूर दूर से भक्त दर्शन के लिए यहां आते हैं। इस स्थान को छोटी काशी के नाम से भी जाना जाता है। जब प्रयाग में गंगा किनारे देश भर से श्रद्धालु आकर टेंट में कल्पवास करते हैं तो यहां भी काफी संख्या में श्रद्धालु यहां की अलग मान्यता को देखते हुए कल्पवास करते हैं।

यह शिवलिंग जमीन के अंदर था। यहां शिवलिंग के पता लगने और मंदिर बनाये जाने के पीछे भी एक अद्भुद मान्यता यह है कि उस युग में एक व्यापारी गंगा के रास्ते नाव से जा रहा था। यहां वह व्यापारी विश्राम के लिए रुका। उसे सपने में खुद भगवान भोलेनाथ ने बताया कि यहीं जमीन के अंदर वो व्यापारी को दर्शन देंगे। इसके बाद व्यापारी ने वहां खुदाई शुरू कराई और शिवलिंग के दर्शन के बाद उसके मन मे विचार आया कि क्यों न वह शिवलिंग को अपने साथ ले चले। इसके लिए जब वह और खुदाई कराने लगा तो शिवलिंग जमीन के अंदर जाने लगा। व्यापारी को यह बात समझ मे आ गयी और उसने यहीं मंदिर का निर्माण करवाया। आज भी यह शिवलिंग कुएं जैसी गहराई में स्थापित है।