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यूपी: वाराणसी के बीएचयू में एक वर्ष बाद भारत कला भवन नए रूप में होगा दर्शकों के सामने।
वाराणसी। सर्वाधिक विविधतायुक्त व देश के समृद्धतम संग्रहालयों में से एक भारत कला भवन कोविड-19 के चलते पिछले एक वर्ष से अधिक समय से आमजन के लिए बंद है। अब इस संग्रहालय के एक वर्ष बाद ही दर्शकों के लिए पूरी तरह से खुलने की उम्मीद है। कारण कि इस बंद अवधि का लाभ उठाते हुए बीएचयू प्रशासन उसके जीर्णोद्धार एवं आधुनिक स्वरूप देने की योजना पर काम कर रहा है।
वहीं 1950 से काशी हिंदू विश्वविद्यालय परिसर में स्थापित पूरे प्राचीन भारत का लघु रूप सजाए इस विशाल संग्रहालय के जर्जर हो चुके भवन की मरम्मत कराई जा रही है। जीर्णोद्धार का कार्य पूरा होते ही सभी वीथिकाओं को उनकी विशेषता और संग्रह की थीम के आधार पर वैसा ही स्वरूप प्रदान किया जाना है।
वहीं इसका मतलब यह कि एक वर्ष बाद जब संग्रहालय खुलेगा तो दर्शकों के समक्ष इसका बिल्कुल नूतन और भव्य स्वरूप होगा। फिर तो देश की यह महत्वपूर्ण धरोहर पर्यटकों के आकर्षण का और भी महत्वपूर्ण केंद्र बनकर काशी के पर्यटन उद्याेग में अपना स्थान और भी विशिष्ट बना लेगी।
वहीं भारत कला भवन, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रांगण में स्थित सर्वाधिक विविधतायुक्त संग्रहालय है। देश और दुनिया में अधिकांश संग्रहालय किसी विशेष वस्तु या विषय से संंबंधित होते हैं किंतु यह संग्रहालय पूरे भारत की प्राचीन और अर्वाचीन सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, सामाजिक, साहित्यिक व आर्थिक विरासत का इतिहास समेटे हुए हैं।
वहीं खास यह कि किसी विश्वविद्यालय परिसर में स्थित यह एशिया का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय संग्रहालय है। इसमें अलग-अलग विषयों से संबंधित कुल 14 वीथिकाएं हैं। इनमें पुरातात्विक सामग्री (मृण्मूर्ति एवं मृदभांड), पेंटिंग्स, कपड़े और पोशाकें, सजावटी कला, चित्रकला, काष्ठ कला, व्यक्तित्व संग्रह, भारतीय दार्शनिक, साहित्यिक पांडुलिपियां, डाक टिकट और अभिलेखीय सामग्री आदि उपलब्ध हैं।
वहीं दूसरी तरफ़ भारत कला भवन में ईसा पूर्व चार हजार वर्ष से लगायत पहली से 15वीं शताब्दी की कलाकृतियों, बौद्ध और हिंदू मूर्तियों, चित्रों, पांडुलिपियों , मुगल लघुचित्रों, पेंटिंग्स, ब्रोकेड वस्त्रों, समकालीन कला रूपों और कांस्य प्रतिमाओं का संग्रह है। संग्रहालय में मिट्टी के बर्तन, मानसिक शिल्प, हाथी दांत के सामान, आभूषण, टेराकोटा के मोती और गुजराती, राजस्थानी और पहाड़ी लघु चित्रों का दुर्लभ संग्रह भी प्रदर्शित है।
वहीं यहां कुल होल्डिंग 104,376 हैं। वीथिका में प्रदर्शित चित्रों का क्रम गोविन्द पाल के शासन के चतुर्थ वर्ष (12वीं शती) में चित्रित बौद्ध ग्रंथ प्रज्ञापारमिता से प्रारंभ होता है। लघुचित्रों की विकास गाथा पूर्वी भारत में चित्रित पोथी चित्रों से आरंभ होती है, जिनमें अजंता-भित्ति चित्रों की उत्कृष्ट परम्परा तथा मध्यकालीन कला विशिष्टताओं का अद्भुत समन्वय है।
वहीं दूसरी तरफ़ सहायक संग्रहाध्यक्ष विनोद कुमार बताते हैं कि इसके लिए संग्रहालय में स्थापित सभी 14 गैलरियों को करोड़ों रुपये खर्च कर नया व आकर्षक रूप दिया जाएगा। इसके लिए धरोहरों के रखने के आधार, शो-केस, डिजाइन आदि सब कुछ आकर्षक व नवीन रूप में होंगे। इनका स्वरूप ठीक प्रकार से उभरे इसके लिए इन पर विशेष प्रकार की एलईडी लाइटों के प्रकाश का इंतजाम किया जाएगा। बताया कि सितंबर माह से ही काम शुरू है, अभी इसमें एक वर्ष का समय लग सकता है। इसके बाद ही संग्रहालय पूरी तरह से आमनज के लिए खोला जा सकेगा।