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यूपी: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक सुनवाई करते हुए कहा कि प्रमाणपत्र जारी करने वाले को ही उसकी व्याख्या का अधिकार है।
प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि जिसने प्रमाणपत्र जारी किया है, उसी को उसकी व्याख्या करने का अधिकार है। इसके अलावा किसी को ये अधिकार नहीं है। कोर्ट ने कहा कि किसी पद की भर्ती विज्ञापन में अर्हता की थी गयी अंतिम तिथि तक अर्ह अभ्यर्थियों को ही आवेदन देने का अधिकार है। अंतिम तिथि के बाद अर्हता अर्जित करने वाले को भर्ती में शामिल होने का अधिकार नहीं है।
वहीं दूसरी तरफ़ कोर्ट ने आवेदन जमा करने की तिथि पर पांच वर्ष का अनुभव न रखने वाले याची का अभ्यर्थन निरस्त करने के आदेश पर हस्तक्षेप करने से इन्कार करते हुए याचिका खारिज कर दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति अजित कुमार ने संजय सिंह परिहार की याचिका पर दिया है। याचिका में चयन सूची को रद करने तथा चयनित अभ्यर्थियों की योग्यता पेश करने का समादेश जारी करने की मांग की गई थी।
वहीं याची का कहना था कि उससे कम अंक पाने वाले चयनित किए गए हैं, जबकि उसे निर्धारित अर्हता रखने के बावजूद नियुक्त नहीं किया गया है। सरकार ने हलफनामा दाखिल कर बताया कि याची पांच वर्ष का अनुभव नहीं रखता। उसने स्वयं ही आवेदन में लिखा है कि एक जुलाई 2008 से 29 जून 2013 तक एकाउंटेंट का कार्य किया है। जो पांच वर्ष पूरे नहीं होते।
वहीं राजेंद्र पटेरिया कांट्रैक्टर एवं बिल्डर ने याची के पक्ष में अनुभव प्रमाणपत्र जारी किया है, जिसमें 2008 से 2013 तक का अनुभव दिखाया गया है। माह व तारीख नहीं दी गई है। इस प्रमाणपत्र की याची को अपने मन की व्याख्या करने की इजाजत नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने कहा याची निर्धारित अनुभव अर्हता नहीं रखता। ऐसे में उसका आवेदन निरस्त कर प्राधिकारी ने कोई गलती नहीं की है।