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यूपी: आजमगढ़ का मुबारकपुर सीट की परिस्थितियाें में उलझा चुनावी समीकरण, बड़े चेहरे भी उम्मीदवारी की जुगाड़ में जुटे।

यूपी: आजमगढ़ का मुबारकपुर सीट की परिस्थितियाें में उलझा चुनावी समीकरण, बड़े चेहरे भी उम्मीदवारी की जुगाड़ में जुटे।


आजमगढ़। तमसा किनारे बसे और रेशमी नगरी के नाम से विख्यात मुबारकपुर विधानसभा का समीकरण अबकी चुनाव में उलझता दिख रहा है।सपा के टिकट पर दो बार रनर रहे अखिलेश यादव अपनी दावेदारी छोड़ेंगे नहीं, तो वहीं प्रसपा से गठबंधन के बाद पूर्व विधायक रामदर्शन यादव भी अपनी दावेदारी पेश कर सकते हैं। बसपा छोड़कर सपा में आए पूर्व मंत्री चंद्रदेव राम यादव करैली भी सपा से टिकट मांग सकते हैं।अब सपा अगर पुराने चेहरे पर दांव लगाती है तो दो की नाराजगी जाहिर सी बात होगी।दो बार बसपा से विधायक रह चुके शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली के बारे में कयास लगाए जा रहे हैं कि वह भी सपा का दामन थाम सकते हैं।

वहीं चुनाव का एलान होने के बाद मुबारकपुर विधानसभा में राजनीति का पारा फिलहाल चढ़ा दिख रहा है।बुनकर बाहुल्य कस्बा वाले इस सीट पर पिछले कई कार्यकाल से लगातार बहुजन समाज पार्टी का कब्जा रहा हैै। कभी चंद्रदेव तो कभी गुड्डू जमाली ने चुनाव जीता। समाजवादी पार्टी में गुटबाजी होने के कारण हर बार हार का सामना करना पड़ता है।

वहीं दूसरी तरफ़ पिछली बार समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी अखिलेश यादव की हार काफी कम मतों से रही। ऐसे में 2022 समाजवादी पार्टी अपनी गलतियों को दोहराएगी या सुधार करके बसपा से सीट छीनेगी, अभी स्पष्ट रूप से कुछ कहा नहीं जा सकता।भाजपा तो जीत से हमेशा दूर ही रही है। यहां चुनाव में जातिगत आधार पर वोट का भी प्रभाव पड़ता है। सपा से टिकट की लाइन में लगे पूर्व मंत्री चंद्रदेव राम यादव करैली, पूर्व जिलाध्यक्ष अखिलेश यादव व प्रसपा से रामदर्शन यादव के अलावा अन्य कई लोग लगे हैं। 

वहीं बसपा से अकेले पूर्व विधायक अब्दुस्सलाम क्षेत्र में घूमकर अपना प्रचार करने में जुटे हैं। भाजपा से टिकट की लाइन में लगने वालों में दुर्गविजय यादव, लक्ष्मण मौर्या, हरेंद्र सिंह, श्यामसुंदर चौहान आदि का नाम चर्चा में है। कांग्रेस के दावेदारों में हाजी इफ्तेखार, जावेद मंदे, सबिया अंसारी तथा राम अवध यादव का नाम लिया जा रहा है। वर्ष 1991 में जनता दल से अब्दुस्सलाम ने जीत दर्ज कराई थी, लेकिन 1993 के मध्यावधि चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन में रामर्दशन यादव ने जीत का परचम लहराया था। 

लेकिन 1996 बसपा के टिकट पर यशवंत सिंह ने जीत दर्ज की। तब से प्रत्याशी भले कोई रहा, लेकिन सीट बसपा की झोली में जाती रही है। इस प्रकार 25 वर्षों से यह सीट बसपा की होकर रह गई।दो ब्लाक, एक नगर पंचायत व एक नगरपालिका परिषद क्षेत्र में फैले विधानसभा क्षेत्र में लगभग 95 हजार मुस्लिम वोटर, 78 हजार अनुसूचित जाति और 90 हजार यादव मतदाता हैं।यानी निर्णायक की भूमिका में सभी दिखते हैं।