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यूपी: विधानसभा चुनाव वाराणसी की अड़ी पर छूट रही फुलझड़ी, नेहा राठौर के गाने का हो गया पोस्टमार्टम।
वाराणसी। मनोज की भट्ठी पर अभी पहले घान की चाय भी नहीं खौैली है कि भीगे-भीगे मौसम की सात पुश्तों को गरियाते असि की अड़ी पर अवतरित हो जाते हैं मम्मा रमाशंकर तिवारी। यूपी में का बा... गाकर इंटरनेट मीडिया पर स्वीप कर गई नेहा राठौर के गीत की ऐसी हवा बनाते हैैं मानो कोई चलताऊ गीत न हुआ, गीता की वाणी हो गई।
वहीं शुरू होती है विरुदावली... का गउले बिया बठरिया...। योगी जी के कुड़ुक धुस हो गइल। चुनाव में एगो अलगै बयार बन गइल। पिंगल के इस पहले वार को हाजिर जवाबी की मजबूत ढाल पर झेलते हैैं राजेंदर भइया भारत कला भवन वाले। उनकी ओर से पहला पाशुपतेय (भगवान शिव का त्रिशूल) चलता है, इसके साथ ही सुनहरी चाय की पहली किस्त के साथ अड़ी का माहौल बदलता है।
वहीं दूसरी ओर अरे ए रमाशंकर तिवारी, बेचारी के नाहीं पता हौ कि यूपी में का बा त तोहहीं काहे नाहीं बता देत हउवा बाबा कि यूपी में काशी अविनाशी ह, मथुरा का जर्रा-जर्रा श्रीकृष्ण विलासी ह, अयोध्या में रामलला क आसन ह, विंध्यधाम में माई क सिंहासन ह, प्रयागराज में कुंभ क अमृत छलकेला, भृगुनगरी में तप क सागर ढलकेला। तब्बो अगर नेहाजी के ज्ञान चक्षु न खुले त भाई तोहरे मतिन नगीना यूपीय में ह साफ-साफ बतला द। बबुनी से कह द कि बिहारी चश्मा से यूपी में का बा ई ओनके समझ में न आई। इहो जरूर पूछ ला कि अगर इहां कुछ हइअ नाहीं ह त महामना क बगिया में आप काहें करत हउ ज्ञान क गोड़ाई...।
वहीं दूसरी तरफ़ चाय की पहली चुस्की के साथ मैैं अड़ी का माहौल भांपने की गरज से चारो तरफ नजर घुमाता हूं तो कल तलक चौदहवीं के चांद की तरह चमक रहे मास्टर साहब के मुखड़े को दूज के चांद की तरह टिमटिमाता हुआ पाता हूं। पूछगच्छ में पता चलता है कि गुरुजी चमकते चेहरे के चक्रव्यूही चपत के मारे हैैं। कल तक जो सटे आ रहे थे, बीएचयू वाले तिवारी जी के नजदीक वे बेहद उदास और बेंच के किनारे हैैं। बेचारे की समस्या बड़ी कठिन है।
वहीं बहुत मुश्किलों के बाद राजनेताओं के रूखे-सूखे थोबड़ों की भीड़ में एक अदद सुघ्घर चेहरा खयालों में मुख्यमंत्री पद की शपथ लेता नजर आया था। पर, हाय रे दुर्दैव... चौबीस घंटे भी नहीं बीत पाए कि वह सलोनी सूरत खुद ही अपने बयान से पलट गई। बेचारे मास्टर साहब की नइया घाट किनारे ही उलट गई। हालांकि गुरुदेव अब भी हताश नहीं हैैं। उन्हें पूरी उम्मीद है कि वह चेहरा अगर तसव्वुर में भी बना रहा तो शायद चुनाव परिणाम बदल जदाए। भुतहे चेहरों से छुटकारा मिले। विधान भवन में अरसे बाद हैलोजन जल जाए।
इधर, कांग्रेस के बारहमासी प्रचारक बीएचयू वाले तिवारी जी पार्टी की खस्ताहाली से बेखबर बस यह सोचकर सब्जबाग हैैं कि भले उनकी पार्टी का पुरसाहाल न हो, कम से कम समाजवादी पार्टी तो भाजपा को पलीता लगाए हुए है। चार सौ पार का नारा देकर सत्तारूढ़ दल को इधर से उधर डोलाए हुए हैै। सो तिवारी महाराज इसी अचीवमेंट पर इन दिनों मकनाए हुए हैैं। आन की बरही का ढोलक गले में डालकर बतासो बुआ की तरह सोहर की तानें उठाए हुए हैैं। कहते हैैं राजेश त्रिपाठी आपन छोड़ के आन के जलसा में ढोलकी पीटना भी कोरोना क एक नया वैरिएंट है। बिना बूस्टर डोज लगउले ई काबू में न आई। चुनाव में अब देरी नाहीं ह। एकरे पहिले कि बीमारी लाइलाज हो जाए केहू एनके तीसरी डोज लगवा दे भाई।