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यूपी: वाराणसी बीएचयू के जीन विज्ञानी बोले देश में तीसरी लहर शुरू, ओमिक्रान संग डेल्टा वैरिएंट फिर मचा सकता है कहर।
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वाराणसी। किसी भ्रम में रहने की आवश्यकता नहीं है, तीसरी लहर शुरू हो चुकी है। इसे सिर्फ ओमिक्रान का संक्रमण न मानें, दूसरी लहर में खतरनाक साबित हो चुका डेल्टा वैरियंट भी इसके साथ-साथ चल रहा है। अभी वाराणसी में ही आए संक्रमण के सभी मामलों में डेल्टा ही सामने आया है। इसलिए तनिक भी लापरवाही खतरनाक हो सकती है।
वहीं मास्क लगाएं व समुचित दूरी बनाएं, भीड़भाड़ वाले स्थानों पर जाने से बचें, यही इससे बचने का सबसे सुरक्षित उपाय है। यह कहना है काशी हिंदू विश्वविद्यालय के जंतु विज्ञान विभाग के जीन विज्ञानी प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे का। वह सोमवार को जागरण कार्यालय में पाक्षिक अकादमिक बैठक में बोल रहे थे।
वहीं उन्होंने कहा कि यह सही है कि ओमिक्रान जानलेवा नहीं है लेकिन इसकी प्रसार क्षमता डेल्टा वैरियंट से 70 गुना अधिक है। ऐसे में अधिक से अधिक लोग संक्रमित होंगे, लोग बीमार पड़ेंगे तो अस्पतालों में फिर भीड़ बढ़ेगी, ऐसे में एक बार फिर समस्याएं खड़ी होंगी और कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले पूर्व से बीमार की मौत हो सकती है।
वहीं दूसरी तरफ़ प्रो. चौबे बताते हैं कि हर वैरियंट का अलग-अलग लोगों पर उनकी जीन क्षमता के आधार पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है। डेल्टा वैरियंट अभी गया नहीं है, हम लोगों की लापरवाहियां उसे पुन: खतरनाक स्तर पर सक्रिय कर रही हैं। अभी ओमिक्रान के खतरे के बीच यदि एक बार फिर डेल्टा वैरियंट फैला तो स्थिति पहले से ज्यादा खराब हो सकती है।
वहीं उन्होंने कहा कि अभी अमरीका में छह लाख मामले सामने आए हैं। हालांकि मौतें नहीं हुईं हैं लेकिन एक स्वस्थ व्यक्ति भी संक्रमण का वाहक बन सकता है। कोरोना का कोई वैरियंट किसी के लिए खतरनाक भी हो सकता है।
वहीं दूसरी तरफ़ प्रो. चौबे ने बताया कि आरएनए आधारित काेरोना की वैक्सीन अवश्य लगवाएं। इसके लगवाने के बाद तीन महीने तक किसी तरह के संक्रमण के खतरे से मुक्त रहेंगे। शरीर पूरी तरह एंटीबाडी से भरपूर होता है। तीन महीने बाद एंटीबाडी कम होना शुरू होती है तो संक्रमण हो सकता है लेकिन वह किसी तरह के खतरे से मुक्त रखता है।
वहीं दूसरी तरफ़ संवाहक जरूर बना देता है। इसलिए टीका लगवाने के बाद भी इस भ्रम में रहना कि हमें कुछ नहीं होगा, दूसरों के लिए खतरा बन सकता है। अत: मास्क का प्रयोग जरूर करें ताकि अपने घर-परिवार, समाज और दूसरे संपर्क में आने वाले लोगों के लिए सुरक्षित रहें।
बता दें कि वहीं प्रो. चौबे ने बताया कि डेल्टा वैरियंट जहां फेफड़े को संक्रमित करके व्यक्ति को कमजोर बना देता है, वहीं ओमिक्रान गले के उतकों में ज्यादा समय तक रहता है और उन्हें नुकसान पहुंचाता है। फेफड़े पर डेल्टा की अपेक्षा 10 गुना कम है इसका प्रभाव। इससे प्रभावित व्यक्ति पांच दिनों में ठीक भी हो जाता है।
वहीं प्रो. चौबे ने बताया कि यह जरूर डेल्टा से कम खतरनाक है, लेकिन डेल्टा की अपेक्षा इसके प्रसार की गति 70 गुना अधिक है। ऐसे में इसकी लहर में बीमारों की संख्या बढ़ेगी। हर तरफ लोग खांसी, बुखार, नाक बहने, थकान और दर्द से पीड़ित होंगे। ऐसी दशा में अस्पतालों में भीड़ काफी बढ़ जाएगी। जिनकी हालत ज्यादा गंभीर हुई उन्हें फिर बेड, चिकित्सक, दवाओं की समस्या का सामना करना पड़ सकता है।
बता दें कि वहीं यह कहना कि अफ्रीका में मौतें नहीं हुईं, इसलिए ऐसा मान लेना ठीक नहीं है। अफ्रीका के लोगों की इम्युनिटी पूरे विश्व में सबसे ज्यादा है। ऐसे में कहीं हमारे आसपास का कमजोर प्रतिरक्षण प्रणाली का बीमार, बुजुर्ग या बच्चा संपर्क में आया तो खतरा बढ़ सकता है। तेज बुखार होते रहना। नाक का बहना। खांसी आना। बहुत तेज थकान महसूस होना।