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यूपी: आजमगढ़ के रण में होगा बदले चुनावी समीकरण में पार्टी के सिपहसालार ताकत बढ़ाने में शह मात का खेल।
आजमगढ़। सरकार के गठन में एक-एक सीट की अहमियत होती है। ऐसे में 10 विधानसभा सीटों वाले आजमगढ़ का रण जीतने के लिए सियासी धुरंधर दांव-पेच लगाने में दिन-रात एक किए हैैं। सपा बसपा का गढ़ माना जाने वाला यह जिला खास इसलिए भी है कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव यहीं से सांसद भी हैं। ऐसे में एक-एक सियासी चाल पर 'चुनावी चाणक्यों के कान खड़े हो रहे हैं। उधर, बसपा के मजबूत चेहरों के पार्टी से नाता तोडऩे के बाद से विकास की नाव पर सवार भाजपा की उम्मीदों को पंख लग गए हैं।
वहीं यहां पहले से ही मजबूती का दावा करने वाली सपा कई और चेहरों को अपने साथ जोड़कर खुद को और सशक्त मान रही है, लेकिन दावेदारों की संख्या बढऩे से सबको संतुष्ट करना बड़ी चुनौती होगी। बहरहाल, नित बदल रहे राजनीतिक समीकरण में कमल खिलाने या साइकिल को रफ्तार देने के लिए धुरंधरों की प्रतिष्ठा दांव पर होगी और पूर्वांचल में चुनावी शह और मात का रोचक खेल भी यहीं दिखेगा। वहीं चुनावी दंगल में बसपा धनकुबेरों पर दांव लगाते हुए उन्हें मैदान मारने को समय का अचूक अस्त्र दे रही।
वहीं वर्ष 1993 में सपा-बसपा गठबंधन भले कुछ ही दिनों बाद टूट गया, लेकिन जिले के वोटरों की निष्ठा अभी तक इन्हीं दोनों दलों के इर्द-गिर्द है। वर्ष 2017 के चुनाव में मोदी लहर के बावजूद परिदृश्य यही दिखा। सपा को पांच, बसपा को चार तो भाजपा को सिर्फ एक सीट से संतोष करना पड़ा। भाजपा से जीते विधायक पूर्व सांसद रमाकांत यादव के पुत्र हैं। विपक्षी इस जीत का श्रेय उनके पिता को ही देते हैं। अतरौलिया, मेंहनगर, लालगंज को छोड़ सभी विधानसभा क्षेत्र पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति बहुल हैं।
वहीं दूसरी तरफ़ आजमगढ़ सदर सीट पर सपा के दुर्गा प्रसाद यादव वर्ष 1993 को छोड़ 1984 से लगातार चुनाव जीत रहे हैं। वर्ष 2017 में भाजपा के अखिलेश मिश्रा ने वोटों का रिकार्ड जरूर तोड़ा लेकिन 26,262 वोटों से हार गए थे। सवर्ण बहुल अतरौलिया विधानसभा क्षेत्र में सपा के कद्दावर नेता बलराम यादव के बेटे डा. संग्राम यादव मामूली वोटों से जीत पाए। उन्हें भाजपा के कन्हैया निषाद ने जोरदार टक्कर दी थी।
बता दें कि वहीं गोपालपुर में पिछड़ा-मुस्लिम समीकरण फिर हिट हुआ और सीट चौथी बार सपा की झोली में आ गई। सगड़ी में बसपा की बंदना सिंह को उनके पति सर्वेश सिंह सीपू की हत्या के बाद जनता की सहानुभूति मिली और जीत गईं। जबकि पटेल बहुल सीट पर सपा के जयराम पटेल हार गए थे। बुनकर बहुल मुबारकपुर में सबसे अमीर प्रत्याशी शाह आलम ने सपा के अखिलेश यादव सपा के पूर्व जिलाध्यक्ष को बारीक अंतर से हराया था, लेकिन अब उनके बसपा से अलग होने पर समीकरण बदलेंगे। सपा गठबंधन में यहां कई दावेदार होने से जीत-हार की तस्वीर धुंधली है। निजामाबाद में सपा केआलमबदी आजमी ने बसपा के चंद्रदेव राम यादव को हराया था, लेकिन अबकी सपा से टिकट मांग रहे हैं।
वहीं बीते वर्ष 2012 में अस्तित्व में आई दीदारगंज सामान्य सीट से सपा के आदिल शेख चुने गए तो दूसरी बसपा के कद्दावर नेता सुखदेव राजभर चुनाव लड़े अनुसूचित जाति और पिछड़ों का समीकरण उनके काम आ गया। सुखदेव के रहते ही उनके बेटे कमलाकांत राजभर सपा के हो गए थे। इस सीट को सपा फिर से जीतना चाहेगी तो भाजपा यहां उम्मीदें देख अंदरखाने में पूरी ताकत झोंके हुए है।
वहीं वर्ष 2017 में ही लालगंज सुरक्षित सीट पर बसपा के आजाद अरिमर्दन ने भाजपा के दारोगा सरोज को मात्र 2,227 वोट से हराए थे, जबकि वर्ष 2019 में संसदीय चुनाव में उनकी पत्नी को सपा-बसपा गठबंधन का लाभ मिला। मेंहनगर में पिछड़ा-मुस्लिम गठजोड़ सपा के कल्पनाथ पासवान काम आया तो सुभासपा-भाजपा गठबंधन की प्रत्याशी मंजू सरोज 5,412 मतों से हार गईं।
बता दें कि वहीं बीते वर्ष 2017 में भाजपा को सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सहारा था, जबकि अबकी जोश डबल इंजन का है। पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे, मंदुरी एयरपोर्ट, महाराजा सुहेलदेव के नाम से बन रहा विश्वविद्यालय, गोरखपुर लिंक एक्सप्रेस-वे समेत गरीबों को जोडऩे वाली योजनाएं को लागू कर भाजपा जनपद में खुद को वर्ष 2022 में मजबूत आंक रही है।