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यूपी: वाराणसी में सुबह ए बनारस प्रभात संगीत के मंच पर प्रो. गीता ने साधे प्रभात राग के सुर से श्रोता हुए मंत्र मुग्ध।
वाराणसी। कोहरे की चादर में ढंकी काशी में रविवार को पर्यटकों का उत्साह देखने लायक था। असि घाट पर सुबह-ए-बनारस के तत्वावधान में सात बटुकों ने मां गंगा की भव्य आरती की। इसके बाद वैदिक ऋचाओं की गूंज से घाट जगमग हो उठा। मातृ चेतना की प्रतीक ऋषिकन्याओं ने कुमारी संजीवनी के मार्गदर्शन में वैदिक मंत्रोच्चार का सस्वर पाठ किया। इसके बाद मां गंगा को पुष्पांजली अर्पित की गई।
वहीं आयोजन के दौरान सुबह मौजूद श्रोताओं ने सुर साधना को गौर से सुना और मन से बुना। इस दौरान स्वर साधना और सुबह ए बनारस का संगम कुछ ऐसा लगा मानो काशी में सुबह ही राग और तार सप्तक धरती को सुर लय और ताल की त्रिवेणी नजर आने लगी।
वहीं दूसरी तरफ़ काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के चिकित्सा विज्ञान संस्थान के हृदयरोग विभाग की पूर्व अध्यक्षा प्रो. गीता सुब्रमण्यम ने दक्षिण भारतीय संगीत शैली में प्रभाती राग के सुर साधे। उन्होंने गायन का आरंभ दक्षिणी शैली के प्रभाती राग रेवती से किया। जो उत्तरी भारतीय संगीत शैली के राग बैरागी भैरव के समतुल्य है। इस निबद्ध रचना के बोल भो शम्भो शिव शंभु स्वयंभू थे।
वहीं इसके बाद उन्होंने श्री गणेश पंचरत्न की भावपूर्ण प्रस्तुति से भक्ति धारा को प्रवाहित किया। श्रीकृष्णा मुकुंदा से श्रीकृष्ण की मनोहारी छवि की आराधना को स्वरमय अभिव्यक्ति प्रदान किया। अंतिम प्रस्तुति उन्होंने आदि शंकराचार्य की प्रसिद्ध भगवती वंदना को स्वर दिया। जिसके बोल अई गिरी नंदनी जय जय महिषासुर मर्दिनी। यह रचना विविध रागों में स्वरबद्ध है।
वहीं दूसरी तरफ़ तबला पर डा. अमित ईश्वर, संवादिनी पर मधुर स्वर संवाद साकार किया युवा वादक कुमार विक्की ने। पूर्व कुलपति किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय लखनऊ पद्मश्री प्रो सरोज चुड़ामणि गोपाल ने कलाकारों को प्रमाणपत्र प्रदान देकर सम्मानित किया।
वहीं दूसरी तरफ़ योगगुरु पं. विजयप्रकाश मिश्र ने प्रो. गीता सुब्रमण्यम की सराहना करते हुए उन्हें सच्चा काशी अनुरागी व्यक्तित्व बताया। उसके बाद उन्होंने योगाभ्यास कराया। संचालन डा. प्रीतेश आचार्य, धन्यवाद रत्नेश वर्मा ने दिया।