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यूपी: वाराणसी काशी विश्वनाथ मंदिर में अब काशी विद्वत परिषद संचालित करेगा पुजारी प्रशिक्षण केंद्र।

यूपी: वाराणसी काशी विश्वनाथ मंदिर में अब काशी विद्वत परिषद संचालित करेगा पुजारी प्रशिक्षण केंद्र।

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वाराणसी। देवालयों को पूरी तरह आत्म निर्भर बनाने के उद्देश्य से अब पुजारी मंदिर प्रबंधन का पाठ पढ़ेंगे। देव स्थानों को सरकारी शिकंजे से मुक्त कराने और मंदिर आधारित अर्थ व्यवस्था की सोच को जमीन पर लाने के उद्देश्य से अखिल भारतीय संत समिति ने इसकी पहल की है। इसके तहत श्रीकाशी विद्वत परिषद पुजारी प्रशिक्षण केंद्र चलाएगा। 

वहीं इसमेंं त्रैमासिक सर्टिफिकेट (प्रमाण पत्र) व एक वर्षीय डिप्लोमा कोर्स चलाया जाएगा। इसमें कर्मकांड, शुद्ध मंत्रोच्चार, पूजन- अर्चन से लेकर भोग-आरती समेत समस्त विधि-विधान तो सिखाए ही जाएंगे, मंदिर की व्यवस्था सुचारू रूप से संचालित करने का प्रशिक्षण भी दिया जाएगा।

वहीं अखिल भारतीय संत समिति व श्रीकाशी विद्वत परिषद के मार्गदर्शन में गंगा महासभा व दैनिक जागरण की ओर से आयोजित में आयोजित संस्कृति संसद में मंदिर स्वतंत्रता का मुद्दा उठा था। इसे मूर्त रूप देने के लिए पुजारियों को मंदिर प्रबंधन में दक्ष बनाने का खाका खींचा गया। इस अनूठी परियोजना पर आने वाला खर्च अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद उठाएगा। परिषद के अध्यक्ष व श्रीपंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी के महासचिव श्रीमहंत रवींद्र पुरी ने इसके लिए खुद प्रस्ताव किया है।

बता दें कि वहीं अखिल भारतीय संत समिति व गंगा महासभा के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जीतेन्द्रानन्द सरस्वती ने बताया कि प्रथम चरण में काशी में पुजारी प्रशिक्षण केंद्र शुरू किया जा रहा है। यह संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से संबद्ध होगा। खरमास के ठीक बाद इसका संचालन शुरू कर दिया जाएगा। आगे चल कर देश के विभिन्न हिस्सों में भी इसे विस्तार दिया जाएगा। यह देवालय आधारित अर्थ व्यवस्था का मार्ग प्रशस्त करेगा। उपेक्षित मंदिरों में पूजा- आरती व पुजारियों का खर्च उठाने की संत समिति पहले ही घोषणा कर चुकी है।

वहीं संत समिति व अखाड़ा परिषद का मानना है कि ब्यूरोक्रेट्स या सरकारी व्यवस्था में श्रद्धा-आस्था का समुचित संरक्षण नहीं हो सकता। इसके लिए पुजारियों को प्रबंधन में दक्ष कर उनके हाथ व्यवस्था देनी होगी। इसी सोच के तहत तमिलनाडु में विश्व हिंदू परिषद पांच हजार पुजारियों को प्रशिक्षित कर चुका है। तीन माह के प्रशिक्षण में जाति -पाति के बंधन दरकिनार कर पुजारियों को दक्ष बनाया गया। 

वहीं दूसरी तरफ़ स्वामी जीतेन्द्रानन्द बताते हैैं कि पुजारियों का प्रशिक्षण सनातन धर्म को मजबूती देगा और आस्था को बलवती करेगा। उदाहरण के तौर पर पहले सिर्फ काशी व हरिद्वार में गंगा आरती होती थी। इसे देख जहां-कहीं जरूरत होती काशी से बटुक ले जाए जाते थे। अब स्थानीय लोगों को प्रशिक्षित कर दिए जाने से गंगा तटवर्ती प्रत्येक नगरों में आरती शुरू हो गई। इसी तरह संत समिति चेतना जागृत करेगी। वातावरण का निर्माण करेगी ताकि लोग अपनी चीजों को सहेजने के लिए खुद आगे आएं। आस्था केंद्रों को आत्म निर्भर बनाएं।