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यूपी: पूर्वांचल में एमएलसी चुनावों में सियासत और कानून, फ‍िर से एमएलसी चुनावों की शुरू हो गई तैयारी।

यूपी: पूर्वांचल में एमएलसी चुनावों में सियासत और कानून, फ‍िर से एमएलसी चुनावों की शुरू हो गई तैयारी।

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वाराणसी। एक ओर भदोही के चर्चित विधायक विजय मिश्रा की पत्‍नी रामलली मीरजापुर और सोनभद्र विधान परिषद सीट से सदस्‍य हैं तो दूसरी ओर वाराणसी के बृजेश सिंह वाराणसी-चंदौली-भदोही एमएलसी सीट से सदस्‍य रहे हैं। पूर्वांचल की इन दोनों प्रमुख सीटों के लिए दोनों ही पूर्वांचल में कानून के लिए चुनौती रह चुके हैं। 

वहीं पूर्वांचल में चुनाव के लिए राजनीति और अपराध का दौर आम रहा है। पूर्वांचल के प्रमुख एमएलसी उम्‍मीदवारों का अब तक का सफर एमएलसी चुनावों के लिए बेहतर तो रहा ही है साथ ही चर्चा के केंद्र में एमएलसी चुनाव भी रहा है। इस बार एमएलसी चुनाव की घोषणा होने के बाद से ही पूर्वांचल में एक बार दोबारा चुनाव की चर्चा शुरू हो चुकी है। 

वहीं यूपी की 36 सीटों के लिए इस बार चुनाव दो चरणों में होगा। पहले चरण में 29 क्षेत्रों की 30 सीटों के चुनाव की अधिसूचना आगामी चार फरवरी को जारी होने जा रही है तो मतदान तीन मार्च को होगा। दूसरे चरण की छह सीटों के लिए अधिसूचना आगामी 10 फरवरी को जारी होगी जबकि मतदान सात मार्च को आयोजित किया जाएगा। वहीं एमएलसी चुनाव के लिए मतगणना एक साथ 12 मार्च को आयोजित की जाएगी।

वहीं ज्ञानपुर विधानसभा सीट से चार बार के विधायक विजय मिश्र की पत्नी रामलली मिश्र समाजवादी पार्टी से दो बार जिला पंचायत अध्यक्ष रहीं हैं। जिला पंचायत सदस्य होने के कारण पहली बार 2002 और उसके बाद 2012 में निर्विरोध अध्यक्ष बनी थीं। इसके पश्चात 2016 में मीरजापुर-साेनभद्र विधान परिषद सीट से विधान परिषद सदस्य निर्वाचित हुईं हैं। वह समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ी थीं। विधानसभा चुनाव 2017 में उनके पति विजय मिश्र का टिकट कट गया था। इसी समय सपा ने विजय मिश्रा और एमएलसी रामलली को पार्टी से निष्कासित कर दिया था। फ‍िलहाल विजय मिश्रा जेल में हैं और कई मामलों में रामलली मिश्रा पर भी कानूनी शिकंजा कस रहा है। 

वहीं बीते 2012 के विधान सभा चुनाव में अस्तित्व में आई सैयदराजा विधानसभा सीट पहली बार में ही माफियाओं के नजर में बैठ गई। चंदौली सदर के सैयदराजा सीट बनने और सामान्य सीट घोषित होने के बाद इस सीट पर बृजेश सिंह ने चुनावी ताल ठोकी थी। प्रगतिशील मानव समाज पार्टी के झंडे तले सिंह ने तब अहमदाबाद जेल में रहते हुए यहां से चुनाव लड़ा था, लेकिन मनोज कुमार सिंह उर्फ डब्लू ने बतौर निर्दलीय यहां से नजदीकी मुकाबले में जीत हासिल की जिसके बाद सपा में शामिल हो गए। 

वहीं बृजेश सिंह वाराणसी के धरहरा गांव के रहने वाले हैं। उनके पिता रविंद्र सिंह की इच्छा थी कि बृजेश पढ़- लिखकर आईएएस बने। इसलिए उनका दाखिला बनारस के उदय प्रताप सिंह कॉलेज में कराया गया था। बृजेश ने 12 वीं की परीक्षा अच्छे अंकों से पास की थी, लेकिन 27 अगस्त 1984 को बृजेश के पिता की हत्या कर दी गई। इसके दो साल बाद ही इस हत्याकांड के आरोपियों की भी हत्या हो गई।

वहीं दूसरी तरफ़ नौ अप्रैल 1986 को सिकरौरा गांव में एक साथ पांच लोगों की गोलियां बरसाकर हत्या कर दी गई थी। मारे गए लोगों पर बृजेश की पिता की हत्या में शामिल होने का आरोप था। इस मामले में बृजेश की गिरफ्तारी भी हुई। लेकिन वह पुलिस हिरासत से फरार हो गए। उनकी यह फरारी करीब 22 साल तक चली। 

वहीं पुलिस हिरासत से फरार होने के बाद बृजेश देखते ही देखते चर्चा में आ गए। बाद में मिले राजनीतिक संरक्षण की वजह से बृजेश सिंह के परिवार ने राजनीति की दुनिया में कदम रखा। वाराणसी-चंदौली-भदोही एमएलसी सीट पर सबसे पहले उनके भाई उदयभान सिंह, फिर उनकी पत्नी अन्नपूर्णा सिंह और बाद में 2016 में बृजेश खुद चुने गए। इस तरह बृजेश सिंह माननीय में बदल गए। उनके भतीजे सुशील सिंह चंदौली की सैयदराजा सीट से बीजेपी के टिकट पर विधायक हैं।