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यूपी: विधानसभा चुनाव की लहर से हमेशा दूर रही आजमगढ़ का अतरौलिया की सियायत।

यूपी: विधानसभा चुनाव की लहर से हमेशा दूर रही आजमगढ़ का अतरौलिया की सियायत।


आजमगढ़। बूढ़नपुर तहसील के अतरौलिया, कोयलसा और अहरौरा ब्लाक क्षेत्र में फैला अतरौलिया विधानसभा क्षेत्र हमेशा किसी लहर के असर से दूर रहा। यहां तक की राम लहर के बाद मोदी लहर आई तब भी यहां से समाजवादियों ने जीत दर्ज की। यहां का समीकरण अगर बिगड़ा तो लोकल राजनीति में हस्तक्षेप के कारण। अन्यथा सपा का कब्जा रहता है।

वहीं अतरौलिया विधानसभा से पांच बार पिता तथा दो बार से पुत्र का रहा कब्जा, अब पिता एमएलसी तो पुत्र हैं विधायक हैं। समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्य रहे बलराम यादव इस सीट से पांच बार विधायक रहे, जबकि दो बार से उनके बेटे संग्राम यादव विधायक हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा जहां अपने गढ़ को मजबूत करने के लिए उतरेगी तो वहीं सपा के किले में सेंध लगाकर भाजपा खुद को मजबूत करना चाहेगी। बसपा ने सरोज पांडेय को प्रभारी बनाया है।

वहीं दूसरी तरफ़ अतरौलिया विधानसभा की पहचान प्रदेश स्तर पर बलराम यादव से बनी। जब पूरे प्रदेश में राम लहर चल रही थी उस समय भी अतरौलिया में इसका कोई असर नहीं रहा। 1980 में कांग्रेस के शम्भू सिंह ने विजय हासिल की। फिर 1984 में चौधरी चरण सिंह के लोकदल के टिकट पर बलराम यादव पहली बार अतरौलिया के विधायक चुने गए। 1989 में जनता दल के टिकट पर दूसरी बार बलराम यादव को विधानसभा में जाने का अवसर मिला।

वहीं इसके बाद मुलायम सिंह यादव के साथ समाजवादी पार्टी के गठन में बलराम यादव ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने पार्टी के स्थापना काल के सदस्य बनने का अवसर प्राप्त किया।समाजवादी पार्टी के टिकट पर बलराम यादव ने 1991 और 1993 में झंडा बुलंद किया, तब तक अतरौलिया को प्रदेश स्तर पर पहचान मिल चुकी थी। साइकिल की रफ्तार बसपा के विभूति निषाद ने 1996 में रोकी, लेकिन तब सपा मुखिया ने बलराम यादव को विधान परिषद सदस्य बना दिया।2002 में बलराम यादव फिर विधायक चुने गए, लेकिन 2007 में उन्हें बसपा के सुरेंद्र मिश्रा से हार का सामना करना पड़ा। 

वहीं दूसरी तरफ़ इसके बाद 2012 चुनाव में उन्होंने अपनी यह सीट छात्र राजनीति से आए बेटे संग्राम यादव को दे दी। तब से संग्राम यादव सपा के टिकट पर विधायक हैं। बेटे के राजनीतिक में आने के बाद बलराम यादव को पार्टी ने 2010 में पुनः एमएलसी बना दिया। 2012 के सपा सरकार में बलराम यादव फिर मंत्री बनाए गए। 2017 के चुनाव में मोदी लहर के बाद भी संग्राम ने सीट निकाल ली। हालांकि उन्हें भाजपा के कन्हैया निषाद से कड़ी टक्कर मिली थी। 

वहीं संग्राम यादव को 74276 तो भाजपा के कन्हैयालाल निषाद ने 71 हजार 809 वोट हासिल किया था। बहुजन समाज पार्टी के अखंड प्रताप सिंह तीसरे स्थान पर पहुंच गए। अब इस बार देखना है कि संग्राम की हैट्रिक लग पाती है या फिर किसी और को जनता अपना नेता चुनती है।