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यूपी: वाराणसी में भगवान श्री राम के जीवन पर शुरू हुए विश्व के पहले वर्चुअल विद्यालय स्कूल ऑफ राम का हुआ शुभारंभ।

यूपी: वाराणसी में भगवान श्री राम के जीवन पर शुरू हुए विश्व के पहले वर्चुअल विद्यालय स्कूल ऑफ राम का हुआ शुभारंभ।

                        Vinit Jaiswal City Reporter

वाराणसी। रामकथा क्या है ? शुरुआत इस बुनियादी सवाल से करें तो उत्तर के लिए उन रामकथाओं को पढ़ने की ज़रूरत नहीं जिनकी संख्या गिनाते समय रामायण शतकोटि अपारा’ या फिर ‘हरि अनंत हरिकथा अनंता’ जैसी समझावनों का सहारा लिया जाता है। रामकथा का रिश्ता सीधा लोकमानस से है, उसके सुख-दुःख,आस-निरास से है तो ‘रामकथा क्या है’ जैसे प्रश्न का उत्तर किताबों से ज्यादा लोक व्यवहारों में खोजा जाना चाहिए। 

वहीं यह मानना है भगवान श्री राम के जीवन पर शुरू हुए विश्व के पहले वर्चुअल विद्यालय स्कूल ऑफ राम का। स्कूल ऑफ राम के संस्थापक, संयोजक काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में अध्यनरत, विद्या भारती के पूर्व छात्र प्रिंस तिवारी का कहना है की ज़्यादा दिन नहीं हुए इस देश में जब लोग एक-दूसरे का अभिवादन, ‘प्रणाम’ और ‘नमस्कार’ की जगह ‘राम-रामजी’ या ‘जै रामजी की’ 'जय सियाराम' कहकर किया करते थे। एक-दूसरे से भेंट-मुलाकात होने पर कुशल-क्षेम के नाम पर दो जन अपनी-अपनी ‘रामकहानी’ सुनाने में जुट जाते थे। 

वहीं दूसरी तरफ़ अभिवादन में जै रामजी और कुशल-क्षेम के रूप में अपनी-अपनी रामकहानी कहने के इन दो व्यवहारों से एक अर्थ झांकता है। एक तो यह कि राम स्मरणीय हैं,इस हद तक कि दो जन आपस में मिलें तो मुलाकात की शुरुआत रामनाम के उच्चारण से हो। और दूसरा अर्थ यह भी है कि, राम की कोई कहानी है। ऐसी कहानी जिससे व्यक्ति की आपबीती का कोई अनोखा रिश्ता है। ऐसा रिश्ता कि राम की कहानी कहने का मतलब किसी से अपनी आपबीती कहना हो जाता है।

वहीं दूसरी तरफ़ अपनी आपबीती को कुछ इस अंदाज़ में कहना कि क्या जैसे राम या फिर रामकथा से जुड़े किसी अन्य पात्र ने सहा वैसा मैं भी सह रहा हूं और यह तौलते हुए कहना कि क्या जैसे राम या उस कथा के किसी और पात्र ने रिश्ते को निभाया उसी तरह मैं भी निभा रहा हूं। रामकथा में आपबीती होने की क्षमता है, वह इसी क्षमता के कारण लोककथा बनती और बन सकती है। प्रिंस ने कोर्स के सबंध में जानकारी देते हुए बताया कि रामायण की इन्हीं लोककथाओं को जीवन प्रबंधन का आधार बनाकर स्कूल ऑफ राम ने एक कोर्स का प्रारूप तैयार किया है। 

वहीं जिसमें प्रतिदिन रामायण से जुड़ी किसी एक प्रेरणादायक कहानी से जीवन प्रबंधन का एक गुर लोगों को सिखने को मिलेगा। इस कोर्स का हिस्सा कोई भी बन सकता है। हर उम्र के बालक-बालिका,महिला-पुरुष भी इस कोर्स का हिस्सा बन सकते हैं। यह कोर्स 101 दिन तक वर्चुअल ही संचालित होगा। ऐसा क्या है रामकथा में जो उसे आपबीती बनाकर लोककथा बनने की क्षमता देता है ? 

वहीं यह प्रश्न यों भी पूछा जा सकता है राम की आपबीती में ऐसा क्या है कि वह जगबीती बन जाती है ? एक बार फिर से लोक व्यवहारों का सहारा लें तो इस प्रश्न का सहज ही उत्तर मिल जाएगा। भोजपुरी भाषी इलाकों में कोई भोजन बनाने चले या भोजन करने बैठे तो अक्सर कुछ ना नुकुर या कुछ कहासुनी हो ही जाती है।

वहीं ऐसे समय में कोई माता सरीखी महिला अब भी सीख के तौर पर दोहरा देती है।  राम बनके जेवनार, सीता बनके रसोई। यानी भोजन करना तभी सार्थक होता है जब राम-भाव से किया जाए, रसोई बनाना तभी सार्थक है जब सीता-भाव से बनाई जाए। यहां रसोई और जेवनार (भोजन करना) परस्पर पूरक शब्द हैं और इस पारस्परिकता को ध्यान में रखकर राम-भाव और सीता-भाव का अर्थ होगा घर-गृहस्थी चलाना। रामकथा घर-गृहस्थी चलाने की कथा है। 

वहीं दूसरी तरफ़ इस अर्थ में देखें तो रामकथा एक और अनेक के स्वहित के आपसी टकराव की ही कथा है. इस टकराव के भीतर घर-गृहस्थी को आन घेरने वाले संकटों की कथा,उन संकटों से निकलने के लिए जुगत या कह लें मॉडल तलाशने की कथा है। स्कूल ऑफ राम का मानना है कि इस प्रयास के माध्यम से युवा पीढ़ी को कम शब्दों में रामकथा के ज्ञान को प्राप्त करने में मदद मिलेगी। और साथ ही रामायण के छोटे-छोटे प्रसंगों के माध्यम से जीवन प्रबंधन के बड़े-बड़े सूत्र भी सीखने को मिलेंगे। इसमें इस बात का भी ध्यान रखा जाएगा कि विद्यार्थियों को इस कोर्स में अध्ययन के दौरान रोचकता का भी भरपूर अनुभव हो।