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यूपी: जौनपुर का मल्हनी विधानसभा सीट पर इस बार कांटे की टक्कर का दिख रहा आसार।

यूपी: जौनपुर का मल्हनी विधानसभा सीट पर इस बार कांटे की टक्कर का दिख रहा आसार।


जौनपुर। नवसृजित मल्हनी विधानसभा सीट को सपा का गढ़ कहा जाता है। यहां हुए तीन चुनावों में जीतकर सपा ने अपना परचम लहराते हुए जीत की हैट्रिक बना ली है। अब तक हुए तीनों चुनाव में सपा का मुकाबला निर्दल प्रत्याशी पूर्व सांसद धनंजय सिंह से ही रहा है। 

वहीं 2020 में हुए उपचुनाव में भाजपा ने एड़ी-चोटी का जोर लगाया, फिर भी पार्टी प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रहे। हालांकि 2022 में होने वाले चुनाव में यहां कांटे की टक्कर के आसार है। सपा-भाजपा के साथ धनंजय के परिवार के लोग भी तैयारी में लगे हैं।

वहीं दूसरी ओर यादव बाहुल्य यह सीट सपा के लिए सबसे सुरक्षित मानी जाती है। वर्ष 2012 में रारी के बाद परिवर्तन में नवसृजित मल्हनी विधानसभा के पहले ही चुनाव में सपा के पारसनाथ यादव ने निर्दल धनंजय सिंह को हराकर जीत दर्ज किया। 2017 में जब पूरे प्रदेश में प्रचंड मोदी लहर चल रही थी और बड़े-बड़े दिग्गजों के किले धराशायी हो गए। इस लहर में भी भाजपा यहां सेंध नहीं लगा पाई। 

वहीं सपा के कद्दावर नेता मिनी मुख्यमंत्री कहे जाने वाले पारसनाथ यादव ने निषाद पार्टी के प्रत्याशी धनंजय सिंह को 21 हजार से अधिक मतों से हराकर नवसृजित मल्हनी विधानसभा सीट पर लगातार दुबारा कब्जा कर लिया। बीच में ही पारसनाथ यादव के निधन के बाद 2020 में हुए उपचुनाव को आगामी होने वाले विधानसभा सभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा था। 

वहीं मल्हनी विधानसभा के उपचुनाव में पिता की विरासत व पार्टी का किला बचाने में सपा प्रत्याशी लकी यादव कामयाब होकर पार्टी के लिए जीत की हैट्रिक बना दी। लकी यादव ने कांटे की टक्कर में निर्दल प्रत्याशी धनंजय सिंह को 4,604 से हराया। उपचुनाव में मुख्यमंत्री की दो सभाएं होने के बावजूद भी सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा प्रत्याशी मनोज सिंह व बसपा प्रत्याशी जय प्रकाश दुबे, कांग्रेस के राकेश मिश्र सहित अन्य पार्टियों की जमानत जब्त हो गई। 

वहीं कांग्रेस प्रत्याशी को तीन हजार से भी कम मत मिले। आगामी विधानसभा चुनाव में अपनी-अपनी जीत का दावेदारी कर रही भाजपा, बसपा, कांग्रेस व अन्य पार्टियों ने अभी से पूरा जोर लगा दिया है। उक्त विधानसभा सीट का परिणाम किस पार्टी के पक्ष में होगा यह तो जनता ही तय करेगी। अब देखना यह है कि सपा के इस किला को तोड़ने के लिए भाजपा क्या रणनीति अपनाती है।

बता दें कि वहीं वर्ष 1951 में यह सीट जौनपुर दक्षिण के नाम से रही। अगले ही चुनाव में वर्ष 1957 में यह सीट रारी के नाम से सृजित हुई। फिर 2012 में मल्हनी विधानसभा नाम दिया गया। यहां पर लगभग सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की है तो दो बार निर्दलीयों ने भी अपना विजय पताका फहराया है। 1951 में कांग्रेस पार्टी के दीप नारायण वर्मा विधायक चुने गए थे। 

वहीं 1957 में अस्तित्व में आई रारी विधानसभा क्षेत्र से पहले विधायक कांग्रेस पार्टी के राम लखन सिंह रहे। 1962 में जनसंघ के कुंवर श्रीपाल सिंह ने विजय दर्ज की। इसके बाद 1967 में राज बहादुर यादव ने निर्दल प्रत्याशी के रूप में जीत दर्ज की। 1969 में कांग्रेस ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सूर्यनाथ उपाध्याय को चुनाव मैदान में उतारा तो उन्होंने जीत दर्ज की। 1974 में राज बहादुर यादव ने भारतीय क्रांति दल का दामन थामा तो रारी की जनता ने उन पर विश्वास जताकर विधानसभा भेजा।

वहीं दूसरी तरफ़ इसके बाद पुन: राज बहादुर यादव ने जनता पार्टी के टिकट पर 1977 में जीत दर्ज की। 1978 में रारी में उपचुनाव हुआ तो कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में पुन: सूर्यनाथ उपाध्याय विजयी हुए। 1980 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी तेज बहादुर सिंह विधायक चुने गए। 1985 के विधानसभा चुनाव में लोकदल से अर्जुन यादव ने जीत दर्ज की। 1989 के चुनाव में कांग्रेस ने अरुण कुमार सिंह मुन्ना पर दांव खेला और वह चुनाव जीते। 1991 में मिर्जा जावेद रजा को जनता दल के प्रत्याशी के तौर पर जीत मिली तो 1993 में सपा व बसपा के गठबंधन में बसपा के प्रत्याशी लालजी यादव जोगी विजयी हुए। 

वहीं 1996 में सपा के श्रीराम यादव जीते तो वर्ष 2002 के चुनाव में निर्दल प्रत्याशी के तौर पर धनंजय सिंह जीते। जो 2007 में भी पुन: कायम रहे, हालांकि इस बार वह जदयू व भाजपा के संयुक्त प्रत्याशी थे। 2009 में धनंजय सिंह के सांसद चुने जाने पर यह सीट खाली हुई है तो उन्होंने अपने पिता राजदेव सिंह को बसपा से टिकट दिलाया और उन्होंने जीत दर्ज की। इसके बाद 2012 में सीट का परिसीमन बदलने पर यह सीट मल्हनी विधानसभा हो गई।