Headlines
Loading...
यूपी: वोटिंग में वाराणसी का शहरी विधानसभा क्षेत्र सबसे रहा पीछे।

यूपी: वोटिंग में वाराणसी का शहरी विधानसभा क्षेत्र सबसे रहा पीछे।

                                 𝕊.𝕂. 𝔾𝕦𝕡𝕥𝕒 ℝ𝕖𝕡𝕠𝕣𝕥𝕖𝕣 

वाराणसी। विधानसभा चुनाव की तारीख तय हो चुकी है। राजनीतिक दल चुनाव में जीत के लिए ताना बाना बुन रहे हैं। सत्ता पक्ष से जुड़े कुछ लोग जातीय समीकरण साधने में जुटे हैं तो कुछ विकास के मुद्दे लहरा रहे है वहीं विपक्ष इसमें से खोट निकालने में लगा है। सभी अपने अपने ढंग से मतदाताओं को समझाने में जुटे हैं, वहीं लोकतंत्र में महादान में अपने मतदान की आहुति देने वाला हीरो खामोशी से सबकी सुन रहा है। गुन रहा है। पैमाने पर तौल रहा है। किसको वोट देगा, किसी को पता नहीं।

वहीं वोटिंग की बात करे तो लंबे अरसे से शहर पीछे व गांव आगे रहा है। हालांकि पहले की तुलना में बहुत बदलाव भी हुआ है लेकिन विधानसभा 2017 की बात करे तो शहरी क्षेत्र के कुछ विधानसभा क्षेत्र की उदासी प्रत्याशियों के लिए ही नहीं सरकारी अफसरों के लिए भी चिंता का सबब है। शहरी क्षेत्र के विधानसभा उत्तरी की बात करें तो पिछले चुनाव में भी यहां मात्र 59.06 फीसद वोटिंग हुई थी। 

वहीं इसमे 212679 पुरुष व 171840 महिलाएं शामिल रहीं। जबकि यह विधानसभा पूरी तरह शहरी आबादी से आच्छादित है। इससे भी खराब स्थिति कैंटोमेंट विधानसभा क्षेत्र का रही। इस विधानसभा क्षेत्र में मात्र 55.01 फीसद ही वोटिंग हुई थी। इसमे पुरुष वोटर दो लाख 29 हजार770 तो महिलाओं की भागीदारी एक लाख 82 हज़ार 503 रही।

वहीं दूसरी तरफ़ यह आंकड़े शहरी वोटरों को झकझोरने वाले हैं तो विशेषज्ञ व राजनीतिक दल के लिए चिंता करने वाली बात है। अजगरा व शिवपुर विधानसभा सबसे आगे रहे थे। अजगरा में 65.11 तो शिवपुर में रिकार्ड 66.88 फीसद वोटिंग हुई थी। हालांकि इन दोनों विधानसभा क्षेत्र में भी शहरी क्षेत्र के कुछ वार्ड है लेकिन यहां हुई कम वोटिंग को गांव के बूथ से पूर्ति हो जाती है। 
वहीं पिडरा विधानसभा क्षेत्र भी 60 फीसद का आंकड़ा नही स्पर्श कर पाया था। रोहनिया, दक्षिणी, सेवापुरी विधानसभा क्षेत्र 60 फीसद के आंकड़े को पार करने में सफल रहा था। यह आंकड़े उस समय के हैं जब केंद्र में स्थिर सरकार थी, सपा के हाथ मे राज्य की चाबी थी। अबकी वोट बढ़ेंगे की नहीं, इसके लिए इंतजार करना पड़ेगा। फिलहाल चुनाव पर महामारी कोविड हावी है। प्रदेश में चुनाव की नहीं बल्कि कोविड की तीसरी लहर चल रही है। जब तक यह शांत नहीं होगी वोटरों की खामोशी नहीं टूटेगी।