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उत्तराखंड: नैनीताल में पहाड़ी शैली में संवर रहा शहर, लोक कला को बढ़ावा के साथ ही पर्यटक भी होंगे आकर्षित।

उत्तराखंड: नैनीताल में पहाड़ी शैली में संवर रहा शहर, लोक कला को बढ़ावा के साथ ही पर्यटक भी होंगे आकर्षित।


नैनीताल। सूचना क्रांति के दौर में दुनिया एक ग्लोबल विलेज के रूप में होती जा रही है। जहां इसके बहुत सारे फायदे हैं वहीं सबसे बड़ा नुकसान स्थानीय परंपरा की विलुप्ती का है। स्थानीय खानपान, वेश-भूषा व लोक कला का क्षरण शुरू हो जाता है और हमें पता ही नहीं चल पाता है। सबसे अच्छा विकास वही होता है।

वहीं जिसमें हम अपनी जड़ों से जुड़कर आसमान की बुलंदी को छुएं। यही काम हो रहा है विश्व प्रसिद्ध पर्यटन नगरी नैनीताल में। डीएम का प्रयास अब शहर में नजर भी आने लगा है। आइए जानते हैं उस बदलाव को जिसमें लोक कला को संरक्षण के साथ ही शहर को खूबसूरत बनाया जा रहा है।

वहीं जिले का दायित्व संभालने के तुरंत बाद डीएम धीराज गब्र्याल ने शहर के भवनों और बाजारों को पहाड़ी शैली में संवारने की पहल शुरू की। पर्यटन विभाग ने रिक्शा स्टैंड, बड़ा बाजार मल्लीता, तल्लीताल बाजार, बीएम साह ओपन थियेटर का प्रोजेक्ट बनाकर जिला प्रशासन को सौंपा। 

वहीं बीते वर्ष फरवरी में डीएम ने रिक्शा स्टैंड जीर्णोद्धार के लिए जिला योजना से 30 लाख की धनराशि स्वीकृत कर निर्माण कार्य शुरू कराया। मल्लीताल रिक्शा स्टैंड का कार्य अब पूरा हो चुका है। तल्लीताल रिक्शा स्टैंड का कार्य भी लगभग अंतिम चरण में है। यह पर्यटन सीजन की शुरुआत तक पूरा हो जाएगा। 

वहीं शहर के मल्लीताल रिक्शा स्टैंड को पहाड़ी शैली में जीर्णोद्धार करने के लिए पत्थर और नक्काशीदार लकड़ी प्रयोग में लायी गयी है। इसके लिए पत्थर अल्मोड़ा से मंगाया गया। पत्थरों को अल्मोड़ा से पहुंचे कारीगरों ने तराश कर रिक्शा स्टैंड का जीर्णोद्धार किया। 

वहीं शहर की सैर पर पहुंचने वाले पर्यटक अब तक नैनी झील की सुंदरता से ही प्रभावित होते थे। मगर अब पर्यटकों को पहाड़ की पारंपरिक भवन निर्माण शैली से भी रूबरू होने का मौका मिलेगा। डीएम ने बताया रिक्शा स्टैंड के साथ ही शहर के बाजार क्षेत्र को संवारने के लिए हैरिटेज स्ट्रीट प्रोजेक्ट बनाया गया है। 

वहीं दूसरी तरफ़ जिसके तहत मल्लीताल खड़ी बाजार में कार्य कराया जा रहा है। साथ ही बीएम साह ओपन थियेटर को भी पहाड़ी शैली में विकसित किया जा रहा है। आगामी पर्यटन सीजन तक सभी कार्य पूरे करा लिए जाएंगे। इससे पहाड़ी वास्तुकला के संरक्षण का संदेश तो मिलेगा ही यह पर्यटकों के लिए भी विशेष आकर्षण रहेगा।