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वाराणसी: मणिकर्णिका व सिंधिया घाट के मध्य स्थित रत्नेश्वर महादेव मंदिर का टूटा शिखर नहीं देख रहा पुरातत्व विभाग।
वाराणसी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जिस शिद्दत से अपने संसदीय क्षेत्र काशी को निहारते हैं, यहां के ऐतिहासिक महत्व के स्थलों और छोटे-बड़े मंदिरों को याद रखते हैैं, उसकी आधी तन्मयता भी संबंधित विभाग के अफसर नहीं दिखा पाते। इसका उदाहरण मणिकर्णिका व सिंधिया घाट के मध्य स्थित रत्नेश्वर महादेव मंदिर है।
वहीं इस ऐतिहासिक मंदिर के शिखर में दरारें पड़ गई हैं और वक्त के साथ यह बढ़ रही हैं। पिछले वर्ष यह मंदिर तब चर्चा में आया जब प्रधानमंत्री ने एक ट्विटर चैलेंज में इसे पहचानकर रीट्वीट किया था। नागर शैली में बने इस मंदिर के स्थापत्य से विस्मित पीएम ने पहले भी इसकी तस्वीर ट्वीट की थी।
वहीं मंदिर की दीवारें दरक रही हैं। शिखर के पत्थर खोखले हो रहे हैं। कुछ वर्ष पहले इसका शिखर बिजली गिरने से क्षतिग्रस्त भी हो गया था। मंदिर के नीचे का आधे से अधिक हिस्सा बाढ़ में आई मिट्टी में दबा है। इसके बाद भी इस पुरातात्विक विरासत की साज-संभाल को लेकर कोई पहल नहीं दिखाई दे रही है। वल्र्ड हेरिटेज में शामिल 54 मीटर ऊंची इटली की पीसा की मीनार अपनी नींव से चार डिग्री झुकी है।
वहीं अपनी नींव पर नौ डिग्री झुका करीब 40 फीट ऊंचा रत्नेश्वर महादेव मंदिर वास्तुकला का शानदार नमूना होने के बावजूद उपेक्षित है। काशी में गंगा किनारे यह अकेला मंदिर है जो घाट के नीचे बना है और छह से आठ महीने पानी में डूबा रहता है। महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने काशी में कई मंदिरों और कुंडों का निर्माण कराया।
वहीं उनकी एक दासी रत्ना बाई ने मणिकर्णिका कुंड के सामने शिव मंदिर निर्माण की इच्छा जताई और यह मंदिर बनवाया। कहते हैैं बनने के कुछ समय बाद ही मंदिर टेढ़ा हो गया था। मंदिर के साथ पूरा घाट ही झुक गया था। राज्यपाल मोतीलाल वोरा की पहल पर घाट फिर से बनवाया गया, लेकिन मंदिर सीधा नहीं किया जा सका।
वहीं मंदिर का ढांचा भारी भरकम है और यह नीचे की ओर बना है। महीनों पानी में डूबा रहता है। मंदिर जिला प्रशासन द्वारा संरक्षित है। आकाशीय बिजली गिरने से शिखर क्षतिग्रस्त हुआ है। उस समय कई लोगों ने इसे ठीक कराने की पहल की, लेकिन कोई आगे नहीं आया। चुनाव पूरा होने के बाद क्षतिग्रस्त शिखर को दुरुस्त कराया जाएगा।