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यूपी : वाराणसी समेत अन्य जिलों में 61 सीटों में सात सीटें बचाने में बसपा को करनी पड़ रही कड़ी मशक्कत।

यूपी : वाराणसी समेत अन्य जिलों में 61 सीटों में सात सीटें बचाने में बसपा को करनी पड़ रही कड़ी मशक्कत।


वाराणसी। पिछले विधानसभा चुनाव में पूर्वांचल के आजमगढ़, वाराणसी और मीरजापुर मंडल की 61 सीटों में से बहुजन समाज पार्टी ने मात्र सात सीटों पर जीत हासिल की थी। इन सीटों को 2022 में दोबारा जीतने के लिए बसपा को कई चुनौतियों से जूझना पड़ रहा है। पार्टी और प्रत्याशी को कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है।

वहीं बसपा के सामने चुनौती का कारण है कि 2017 में बसपा से जीते तीन विधायक पार्टी छोड़कर विरोधी दल में शामिल हो गए हैं। आजमगढ़ के सगड़ी क्षेत्र से वंदना सिंह अबकी भाजपा प्रत्याशी हैं। मुबारकपुर से विधायक और विधानसभा में पार्टी के नेता रहे शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली ने पहले विधायकी से इस्तीफा दिया फिर पार्टी छोड़ दी।

वहीं मुबारकपुर से एआइएमआइएम से प्रत्याशी हैं। आजमगढ़ के दीदारगंज से 2017 में विधायक चुने गए बसपा के कद्दावर नेता सुखदेव राजभर का निधन हो गया है और इस बार उनके बेटे कमलाकांत राजभर इसी सीट पर सपा के प्रत्याशी हैं। जौनपुर के मुंगराबादशाहपुर की विधायक सुषमा पटेल ने भी बसपा का दामन छोड़ अबकी मछलीशहर से सपा के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैैं। 

वहीं मऊ सदर से बसपा विधायक माफिया मुख्तार अंसारी ने भी इस बार खुद चुनाव लडऩे से परहेज किया और अपने बेटे अब्बास अंसारी को सुभासपा के टिकट पर मैदान मऊ सदर से मैदान में उतारा है। अब्बास के सामने बसपा ने भीम राजभर को उतारा है और भाजपा ने अशोक सिंह को टिकट दिया है जो मुख्तार के खिलाफ मुखर रहे हैं। इस प्रकार सीट त्रिकोणीय लड़ाई में फंस गई है।

वहीं जो विधायक बसपा के साथ बने हैं, उनकी भी चुनौती कम नहीं है। लालगंज से विधायक आजाद अरिमर्दन एक बार फिर प्रत्याशी हैं। हालांकि वह पिछली बार मात्र 2,227 से मतों से विजयी हुए थे। इस बार उनके सामने भाजपा की मजबूत प्रत्याशी नीलम सोनकर हैं। ऐसे में जीत दोहराना आसान नहीं है। 

वहीं बलिया की रसड़ा सीट पर बसपा विधायक उमाशंकर सिंह एक बार फिर प्रत्याशी हैं। वह मोदी लहर में भी 33,858 मतों से जीते थे। अबकी उनके सामने भाजपा ने पूर्व सांसद बब्बन राजभर को मैदान में उतारा है। इसलिए उन्हें भी टक्कर मिल रही है।

वहीं बसपा ने 2017 के चुनाव में 13 सीटों पर कड़ी टक्कर दी थी और दूसरे नंबर पर रही। इसमें फूलपुर पवई, निजामाबाद, घोसी, मोहम्मदाबाद गोहना, फेफना, बदलापुर, जहूराबाद, मोहम्मदाबाद गोहना, जमानियां, सैयदराजा, चकिया, पिंडरा और दुद्धी शामिल हैं। हालांकि इस बार भी यहां जीत की राह आसान नहीं है।

वहीं पिछले विधानसभा चुनाव में पूर्वांचल के आजमगढ़, वाराणसी और मीरजापुर मंडल की 61 सीटों में से बहुजन समाज पार्टी ने मात्र सात सीटों पर जीत हासिल की थी। इन सीटों को 2022 में दोबारा जीतने के लिए बसपा को कई चुनौतियों से जूझना पड़ रहा है। पार्टी और प्रत्याशी को कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है।

वहीं बसपा के सामने चुनौती का कारण है कि 2017 में बसपा से जीते तीन विधायक पार्टी छोड़कर विरोधी दल में शामिल हो गए हैं। आजमगढ़ के सगड़ी क्षेत्र से वंदना सिंह अबकी भाजपा प्रत्याशी हैं। मुबारकपुर से विधायक और विधानसभा में पार्टी के नेता रहे शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली ने पहले विधायकी से इस्तीफा दिया फिर पार्टी छोड़ दी। वह मुबारकपुर से एआइएमआइएम से प्रत्याशी हैं। 

वहीं आजमगढ़ के दीदारगंज से 2017 में विधायक चुने गए बसपा के कद्दावर नेता सुखदेव राजभर का निधन हो गया है और इस बार उनके बेटे कमलाकांत राजभर इसी सीट पर सपा के प्रत्याशी हैं। जौनपुर के मुंगराबादशाहपुर की विधायक सुषमा पटेल ने भी बसपा का दामन छोड़ अबकी मछलीशहर से सपा के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैैं। 

वहीं मऊ सदर से बसपा विधायक माफिया मुख्तार अंसारी ने भी इस बार खुद चुनाव लडऩे से परहेज किया और अपने बेटे अब्बास अंसारी को सुभासपा के टिकट पर मैदान मऊ सदर से मैदान में उतारा है। अब्बास के सामने बसपा ने भीम राजभर को उतारा है और भाजपा ने अशोक सिंह को टिकट दिया है जो मुख्तार के खिलाफ मुखर रहे हैं। इस प्रकार सीट त्रिकोणीय लड़ाई में फंस गई है।