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यूपी: लखनऊ राजनीति में पिछड़ गए 'पिछड़े मुस्लिम', 70 प्रतिशत आबादी के बावजूद मात्र 4 से 5 प्रतिशत ही मिली भागीदारी।

यूपी: लखनऊ राजनीति में पिछड़ गए 'पिछड़े मुस्लिम', 70 प्रतिशत आबादी के बावजूद मात्र 4 से 5 प्रतिशत ही मिली भागीदारी।


लखनऊ। मुस्लिमों की कुल आबादी में 70 प्रतिशत भागीदारी के बावजूद महज चार-पांच प्रतिशत पिछड़े (ओबीसी) मुस्लिमों को ही राजनीति में प्रतिनिधित्व मिल सका है। इसके लिए पिछड़ा वर्ग खुद जिम्मेदार है, क्योंकि वह जातियों में बंटा है। 

वहीं सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर है, जबकि राजनीतिक दल सिर्फ जिताऊ और मजबूत चेहरा देखते हैं। यदि पिछड़े मुस्लिम एकजुट न हुए तो यूं ही पिछड़ते जाएंगे।' यह पीड़ा सेवानिवृत्त आइएएस अधिकारी अनीस अंसारी की है, जो कि अपने समाज के पिछड़ों की आवाज को बुलंद करते रहे हैं।

वहीं उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में सभी राजनीतिक दल पिछड़ों पर मजबूत दांव लगा रहे हैं। टिकट भी उसी अनुपात में दिए गए हैं, सिवाए मुस्लिम वर्ग के। मुस्लिमों में भी पिछड़ा वर्ग का ही अनुपात ज्यादा है और तमाम राजनीतिक दल इस वर्ग को वोटबैंक बनाकर अपनी सत्ता का सफर आसान करते रहे हैं, लेकिन राजनीति में प्रतिनिधित्व के मामले में वह पिछड़े ही रह गए।

वहीं दूसरी तरफ़ नेशनल सैंपल सर्वे आर्गनाइजेशन (एनएसएसओ) के आंकड़ों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश की कुल आबादी में पिछड़े मुस्लिम 12.9 प्रतिशत हैं। वहीं, प्रदेश की कुल ओबीसी आबादी की बात करें तो उसमें मुस्लिम 23.68 प्रतिशत हैं। आबादी के इन आंकड़ों की तुलना राजनीतिक प्रतिनिधित्व से करते हुए अनीस अंसारी मायूसी जताते हैं। 

वहीं कहते हैं कि मुस्लिम आबादी में पिछड़े लगभग 70 प्रतिशत हैं, लेकिन राजनीतिक दल हिस्सेदारी मात्र 4-5 प्रतिशत ही दे सके हैं। कांग्रेस के बौद्धिक विभाग के पूर्वी उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष तारिक सिद्दीकी इसी बात को आगे बढ़ाते हैं।

वहीं वह कहते हैं हमने पूरा प्रयास किया कि पिछड़े मुस्लिमों को भी पर्याप्त हिस्सेदारी दी जाए, लेकिन इस वर्ग के पास नेतृत्व का अभाव है। इनके पास वोटर तो है, लेकिन लीडर नहीं है। कमजोर और अपरिचित चेहरे पर कोई पार्टी दांव नहीं लगाना चाहती।' वह मानते हैं कि पार्टियों को ओबीसी मुस्लिमों में बड़े चेहरे तलाशने की बजाए तराशने पड़ेंगे, ताकि यह पिछड़ा वर्ग भी आगे आ सके।

वहीं मोमिन अंसार सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अकरम अंसारी स्पष्ट आरोप लगाते हैं कि राजनीतिक दलों ने हमारी लीडरशिप को कभी आगे बढ़ने नहीं दिया। कांग्रेस में रहते हुए मांग उठाई थी कि 15 प्रतिशत टिकट पिछड़े मुस्लिमों की दिए जाएं, लेकिन वहां नजरअंदाज कर दिया गया। अब समाजवादी पार्टी में उम्मीद लेकर आए हैं। 

हालांकि, वह भी मानते हैं कि अभी जितने भी दलों ने मुस्लिमों को टिकट दिए हैं, उनमें ओबीसी 4-5 प्रतिशत ही हैं। साथ ही अपने समाज को अंसारी ने पैगाम दिया कि सबसे पहले देखें कि पिछड़ा वर्ग से मुस्लिम प्रत्याशी खड़ा हो तो उसे वोट दें। उसके बाद पार्टी के आधार पर मतदान करें।

वहीं उत्तर प्रदेश की राजनीति में मुस्लिम आबादी के असर का इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि दूसरे चरण के लिए सोमवार को 55 सीटों पर मतदान होने जा रहा है। इन पर कुल 568 प्रत्याशी मैदान में हैं, जिसमें से 78 मुस्लिम वर्ग से हैं। 

वहीं रामपुर और मुरादाबाद में मुस्लिम मतदाता पचास प्रतिशत से अधिक है, जबकि बांदा और शाहजहांपुर को छोड़कर बाकी पर तीस प्रतिशत या उससे ऊपर। माना जाता है कि इनमें से लगभग चालीस सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में रहता है।