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यूपी: चंदौली ज़िले के पीपीडीयू नगर के अंतर्गत दुल्हीपुर में जरी-जरदोजी के लिए चयनित बुनकरों की दशा हुईं दयनीय।
चंदौली। पीडीडीयू नगर के दुलहीपुर में प्रदेश सरकार की ओर से वर्ष 2018 में एक जिला-एक उत्पाद योजना के तहत प्रत्येक जनपद के लिए कुछ उद्योगों का चयन किया गया था। इसके तहत चंदौली का चयन जरी-जरदोजी के लिए हुआ था। योजना के आरंभ में तो इस दिशा में कुछ कार्य किया गया पर समय बीतने के बाद इसपर ध्यान देना कम कर दिया गया। इससे जिले के बुनकरों की दशा में विशेष सुधार नहीं हुआ है। जिले में करीब 35 हजार बुनकर जरी-जरदोजी के व्यवसाय से जुड़े हैं। इनमें पुरुषों के साथ महिलाएं व बच्चे भी शामिल हैं।
वहीं जनपद को जरी-जरदोजी के उत्पाद का ब्रांड बनाया जाना था। साथ ही एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन व सरकारी भवनों में जरी उत्पादों की बिक्री के लिए स्टोर खोले जाने थे। वहीं उत्पादों की ब्रांडिंग और प्रचार-प्रसार के लिए सरकारी खर्च पर जगह-जगह ग्लोसाइन बोर्ड भी लगाए जाने थे। इसके लिए आवेदन भी मांगे गए थे पर चार वर्ष बीत जाने के बाद कोई खास कार्य नहीं हो सका है। इससे स्थानीय कारोबारियों व कामगारों में उत्साह की कमी देखी जा रही है।
वहीं कामगारों का कहना है कि एक बनारसी साड़ी बनाने के बदले उन्हें 100 से 40 हजार रुपये तक की मजदूरी मिलती है। इस समय रेशम के दाम बढ़ जाने से जरी भी महंगा हो गया है। इसका कारोबार पर सबसे अधिक असर देखा जा रहा है। योजना आरंभ होने के दो माह तक तो कार्य ठीक चला पर बाद में लोगों को मजदूरी भी नहीं मिल पा रही है। बनारस के साड़ी व्यवसायी आर्डर कम मिलने के कारण परेशान हैं। इसका भी बुनकरों पर असर दिख रहा है। सहालग (लगन) के समय भी आर्डर नहीं मिल रहा है।
वहीं सतपोखरी के बाबू हाजी कहना है कि कलस्टर में काम तो मिल रहा है पर काम के हिसाब से मजदूरी नहीं मिल रहा है। जनपद में सबसे अधिक बुनकर सतपोखरी में हैं। अगर इनको समय से काम मिल जाए दो वक्त की अनाज के लिए परेशान नहीं होना पड़ेगा। अमीनुद्दीन ने कहा कि कार्य न मिलने के कारण जनपद के अधिकांश बुनकर क्षेत्र को छोड़कर विभिन्न राज्यों में चले गए हैं। वे परिवार सहित गुजरात, महाराष्ट्र व चेन्नई आदि राज्यों में काम कर रहे हैं। यहां काम नहीं मिलने से इनको जनपद छोड़ना पड़ा है।
वहीं दूसरी तरफ़ अबरार अहमद का कहना है कि क्षेत्र में लेडिज सूट का भी कारोबार जोरो से हो रहा है। सूट पर जरी-जरदोजी का काम हो रहा है। क्षेत्र की महिलाएं व बच्चियां कढ़ाई कर रही हैं जिससे उनके घर का खर्च चल रहा है। अमीर हमजा ने कहा कि योजना के आरंभ होने के बाद बुनकरों में कार्य मिलने की उम्मीद जगी थी। आरंभ में तो कार्य मिला पर पर्याप्त सरकारी सहायता जारी न रहने से कारोबार पर असर पड़ा है। रेशम खरीदने के लिए अभी जो सरकारी धन मिल रहा है उसकी अपेक्षा रेशम काफी महंगा हो चुका है।