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यूपी: वाराणसी में संकट मोचन मंदिर में लता मंगेशकर करना चाहती थीं प्रस्तुति, एक डर से नहीं आईं दोबारा बनारस।
वाराणसी। मेरे ख्वाबों में आएं मुझे छेड़ जाए".. जैसे गीत हो या फिर "आज फिर जीने की तमन्ना है,आज फिर मरने का इरादा हैं" जैसे गीत हम युवा अपने ज़िन्दगी से जोड़ कर देखते हैं। "रहे न रहे हम महका करेंगे बन के कली बनके सबा"...ये अमर गीत गाने वाली स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर भले ही इस दुनिया से रुखसत हो गईं लेकिन उनके द्वारा गाये गए हजारों सदाबहार बहार गीत सदैव अमर रहेंगे।
वहीं बातचीत में लता मंगेशकर के ज्योतिष सलाहकार बनारस के स्वामी ओमा अक बताते हैं कि उनकी सबसे पहले 2012 में फोन पर बात हुई थी। उस दौरान भी उनकी तबियत ठीक नहीं थी। संकट मोचन मंदिर से उनका अथाह लगाव था। उनकी इच्छा थी कि यहां आकर गाना गायें लेकिन, 1952 में बीएचयू में एक कार्यक्रम के बाद हरिश्चंद्र घाट के पास किसी कोठी में उनके ठहरने के दौरान की घटना ने डरा दिया था। श्मसान के बगल में शव जलते रहते थे। एक बार लता को ऐसा लगा कि एक मुर्दा लकड़ियों से उठ गया। यह देखकर लता जी इतना डर गईं कि फिर कभी वह मुड़कर बनारस आने की हिम्मत नहीं जुटा पाईं।
वहीं दूसरी तरफ़ ओमा अक् बनारस के वरुणा पुल के पास कैंटोनमेंट में रहते हैं। उनका कहना है कि लता जी से 10 दिन पहले बातचीत हुई थी। वह कह रही थीं कि स्वामी जी मेरी तबीयत खराब लग रही है। क्या मैं फिर से गाना गा सकूंगी। उमा का कहना है कि 93 साल की उम्र में भी गायन के प्रति उनका समर्पण कम नहीं हुआ था।
बता दें कि लता मंगेशकर को गीता और गालिब के शेर बहुत पसंद थे। इसे लेकर वाराणसी में हर साल एक चिराग-ए-लहर सम्मान की शुरुआत की गई, जिसे पद्माश्रीश देव, उषा मंगेशकर और हृदयनाथ मंगेशकर ने स्वीकार किया। वहीं, इस बार यह सम्मान ग्रहण करने आशा भोसले आने वाली थीं। 2016 में उषा मंगेशकर और 2018 में हृदय नाथ मंगेशकर यह सम्मान लेने बनारस आए थे। जबकि लता जी लाइव जुड़ती थीं। 2014 में लता जी के जीवन पर एक डॉक्यूमेंट्री तैयार की गई, जो कि बनारस में ही पूरी तरह से बनी थी। वहीं, लता जी के ऊपर नज्म का राजेश्वर आचार्य ने पाठ किया था।
वहीं दूसरी तरफ ओमा अक् ने कहा कि पुलवामा के दौरान जब उनका जन्मदिन बनारस में मनाने की तैयारी हो रही थी, उस समय लता जी ने कहा कि सारा सम्मान सैनिकों को दिया जाए। वाराणसी के वरिष्ठ ज्योतिषाचार्य प्रोफेसर चंद्रमौलि उपाध्याय का कहना है कि ऐसे व्यक्तित्व कई सदियों में आते हैं। उनका बनारस न आना भी खलता है। उनका जाना पूरे संगीत जगत की क्षति है।
वहीं बड़े भाई गोपाल उपध्य्याय ने बताया कि बचपन से लताजी के गीतों को सुनकर बड़े हुए। कभी सोचा भी नहीं था कि कभी उनसेसे मुलाकात हो पायेगी परन्तु सौभाग्य से मुलाकात हुई। मेरे अनुज आध्यात्म मूर्ति स्वामी ओमा दअक् के कार्यक्रम में लताजी की छोटी बहन ऊषा मंगेशकर जी आयीं थीं। लताजी अस्वस्थ होने के कारण नहीं आ सकीं थीं। उसके बाद मैं परिवार सहित लता मंगेशकर जी से मिलने उनके मुम्बई स्थित आवास पर गया।
वहीं जब लता जी हमारे सामने आयीं तो मुझे ऐसा लगा मानो कोई देवी मेरे सामने हैं और मैं उनकी चरणों में बैठ गया। शायद मेरे जीवन का सौभाग्यशाली क्षण मैंने उनसे कहा, मेरी बच्चियाँ बहुत भाग्यवान हैं जो इन्हे आपका आशीर्वाद मिला। उनहोंने तुरंत कहा नहीं भाग्यशाली तो मैं हूँ जो मुझे तीनों देवियों के दर्शन प्राप्त हुए।
वहीं उनहोंने मेरी बच्चियों को स्कूल बैग देकर ज्ञान प्राप्ति का आशीर्वाद दिया और मेरी और मेरी पत्नी की विदाई महाराष्ट्रीय परंपरा से बेटे-बहू के समान किया और काशी विश्वनाथ का प्रसाद लेकर सभी काशीवासियों को आभार भेजा और वाराणसी आने की इच्छा प्रकट की, लेकिन ये इच्छा उनकी अधूरी रह गई।
वहीं एक कार्यक्रम में यूं हुई चर्चा...जिसके गुनगुनाते थे गीत...थी वही लता जी : स्वामी के अजीज साकिब भारत बताते हैं कि जब भी जब कोई बहुत अच्छा गीत कानो की गूंजता है तो अधिकतर वो सुरीली आवाज़ लता दीदी की ही ही होती है। हर रंग में हर ढंग में ढल जाती वो आवाज़ कभी छोटे बच्चों से लेकर बड़े- बूढ़े तक की यानी जैसे फरमाइशों का भंडारा हो ठीक वैसी पेशकश, जब मैं छोटा बच्चा था तब भी लता दीदी के आवाज़ में गीत सुनता और आज भी सुनता रहता हूँ यह कोई बड़ी बात तो नहीं मेरे जैसे करोड़ो नौजवानों के दिल में रोज़मर्रा की ज़िंदगी मे लता दीदी की आवाज़ न सुनाई दे ऐसा हो ही नही सकता।
वहीं दूसरी तरफ आज भले ही नौजवान साथी दीदी की आवाज़ को कई बार नाम से न पहचान पाते हों.. जैसे मैं लता दीदी के बोल हमेशा गुनगुनाता लेकिन मैं तब नही जानता था कि ये भारत रत्न लता दीदी हैं, जब मैं एक टीवी-टॉक में स्वामी ओमा द अक् जी के साथ वार्ता में था... तब मुझसे पूछा गया..."लता मंगेशकर के बारे में अपने ख़्याल बताइये ?
वहीं दूसरी तरफ तब मैंने झट से कहा- "कौन लता मंगेशकर?"... क्योंकि तबतक मैं सच मे नही जानता था कि हम जिस आवाज़ के इतने सारे गीत गुनगुनाते हैं वो वास्तव में लता दीदी के ही आवाज़ में होते हैं... ठीक वैसे ही करोड़ से ज्यादा लोग सुनते है वो आवाज़ और गुनगुनाते हैं मेरे ख्वाबों में आएं मुझे छेड़ जाए जैसे गीत हो या फिर आज फिर जीने की तमन्ना है,आज फिर मरने का इरादा हैं जैसे गीत हम युवा अपने ज़िन्दगी से जोड़ कर देखते हैं।
बता दें कि वहीं रहे न रहे हम महका करेंगे बन के कली बनके सबा".... हां लता जी आज हमारे बीच नही है, लेकिन उनकी आवाज़ की खुशबू उनका जादू हमेशा रहेगा और क्यों न हो 2017 में जब हमारी मुलाकात लता दीदी से हुई ... मैं उनके घर मुम्बई उनको मिलने पहुंचा था ... "हम भारत हैं अभियान" के साथ... तब जैसे ही दीदी को मालूम हुआ कि एक ऐसा अभियान बनारस के स्वामी ओमा जी द्वारा शुरू किया गया है..
वहीं जिसका उद्देश्य भारत मे आपसी प्रेम को बढ़ावा देना जाति-मज़हब से ऊपर उठना है, लता दीदी ने फौरन एक सेकंड भी नही लगया और कहा-" कि आज से हम भी भारत हैं और मेरा समर्थन हैं"... उनके साथ बिताए हरपल को ताउम्र याद कर मैं हर एक से कहता रहूँगा कि कोई महान इंसान इस तरह महान नही बनता उनके अपने कर्म, चरित्र उनके दैवीगुण होते है।
वहीं जो उन्हें महान से महानतम की ओर ले जाते हैं, लता दीदी जो दुनिया भर की चहेती हैं और जिन्हें किसी चीज़ की कोई कमी न हो... ऐसा व्यक्तित्व इतना साधारण इतना सरल कैसे हो सकता हैं, ये मैंने खुद देखा और सीखा पैसे से शोहरत से इंसान अपना नाम तो बड़ा कर सकता है पर चरित्र को नही वह तो जन्मजात ही होता है, ऐसी महान चरित्र हैं महान सुरकोकिला लता दीदी जो बहुत ही साधारण से फ्लैट में रहती रहीं।
बता दें कि साधारण सा भोजन करती बहुत ही सीधी बातें करती सबसे बड़ी बात देश की इतनी फ़िक़्र करती जैसे कि देश का हर दर्द लता दीदी ने अपने हृदय में महसूस किया। कोई बिना दर्द के इतने झकजोर देने वाले गीत ऐसे नही गा सकता जब तक उसका झुकाव न हों देश के लिए.. देश के जवानों के लिए... दिल की हर बात इतनी सरल भाषा मे कोई लता जी जैसा तो बयां नही कर सकता ...लता दीदी ने बहुत ही सुदरता से देश के वीर जवानों की पीड़ा, दर्द, साहस और बलिदान को देश के सामने रखा--"ए मेरे वतन के लोगों ज़रा आँख में भर लो पानी, जो शहीद हुए है।
वहीं उनकी ज़रा याद करो कुर्बान इस महान संजीदा गीत को गाकर हर एक देशवासी के रगों में देश भक्ति,देश की फ़िक़्र व जवानों की कुर्बानी के लिए लोगों के मन मे भाव लाने वाली वो लता दीदी थी जिसने कश्मीर से लेकर कन्या कुमारी तक देश को अपने सुरों में बांध कर मजबूती के साथ ऊर्जा भरने की आवाज़ लगाई । आज लता मंगेश्कर दीदी हमारे बीच सशरीर नही रहीं पर आपकी आत्मीय आवाज़ आपकी ऊर्जा आपकी देश-भक्ति और आपकी मुस्कान सदा हमारे साथ रहेगी सदा यह कहते हुए --
"नाम गुम जाएगा
चेहरा बदल जायेगा
मेरी आवाज़ ही पहचान है"
आज बस यही कहता हूं एक देवी थीं जो इंसान के बीच मेम रहती हम आज भी उन्हें महसूस कर सकते हैं।।