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यूपी: देश में आइएसबी से आल इंडिया रेडियो और आकाशवाणी बनने तक की कहानी, पढ़े अंदर पूरी कहानी।

यूपी: देश में आइएसबी से आल इंडिया रेडियो और आकाशवाणी बनने तक की कहानी, पढ़े अंदर पूरी कहानी।


लखनऊ। शायद बहुत ही कम लोग जानते होंगे कि इंडियन स्टेट ब्राॅडकास्टिंग सर्विस से आल इंडिया रेडियो और आकाशवाणी कैसे हो गया। इसके पीछे की वजह क्या थी। कैसे देश में रेडियो के लोग दीवाने होते गए। विश्व रेडियो दिवस के मौके पर सीनियर ब्राडकास्टर कमलेश श्रीवास्तव बताते हैं कि 30 अगस्त 1935 को लियोनिल फील्डेन भारत के पहले कंट्रोलर आफ ब्राडकास्टिंग बने। वह बीबीसी से आए थे। 

वहीं तब देश में रेडियो को इंडिन स्टेट ब्राडकास्टिंग के नाम से जाना जाता था। मगर फील्डन ने ‘इंडियन स्टेट ब्राॅडकास्टिंग सर्विस’ का नाम बदलने का मन बना लिया। आठ जून 1936 को उन्होंने इसका नाम इंडियन स्टेट ब्राॅडकास्टिंग सर्विस से बदल कर आल इंडिया रेडियो कर दिया। उसके बाद तीन अक्तूबर 1957 को आल इंडिया रेडियो का नाम भी बदल दिया गया।

वहीं फिर इसे आकाशवाणी रखा गया। 20 अगस्त 2020 को लखनऊ में एफएम की शुरुआत हुई, जिसने प्रसारण का कायाकल्प किया। लखनऊ स्टेशन 1938 में शुरू हुआ। रेडियो के विशेष श्रोता कार्यक्रम बहुत पसंद किए गए। समय के साथ प्रारूप बदला पर रेडियो का क्रेज बना रहा।

वहीं क्या रेडियो से किसी की जिंदगी बदल सकती है? जवाब है हां, बिल्कुल बदल सकती है। भारतीय रेडियो श्रोता संघ के अध्यक्ष प्रमोद कुमार श्रीवास्तव इसका प्रमाण हैं। प्रमोद कुमार श्रीवास्तव पर आकाशवाणी की कार्यक्रम प्रमुख मीनू खरे ने रूपक ''''कैथनपुरवा में रेडियो थेरेपी भी बनाया, जिसे आकाशवाणी का राष्ट्रीय पुरस्कार (2005) मिला। प्रमोद अब तक आकाशवाणी के विभिन्न केंद्रों, रेडियो की अन्य सेवाओं में लगभग 50 हजार पत्र भेज चुके हैं। 

वहीं प्रमोद कुमार श्रीवास्तव बताते हैं, 1988 से आकाशवाणी के कार्यक्रम सुनना शुरू किया था। उस समय उम्र करीब 12 साल रही होगी।1991 में अचानक बहुत तेज बुखार आया, इसका असर पैरों पर पड़ा और दिव्यांग हो गए। लगातार दो साल बेड पर रहे। उस मुश्किल समय में रेडियो काम आया। प्रमोद कुमार के अनुसार हम बिस्तर पर पड़े होते और बगल में रेडियो बजता रहता था। रेडियो सुनते-सुनते नींद भी आने लगी। लेटे-लेटे आकाशवाणी को पत्र लिखते थे, जिसे पिताजी पोस्ट आफिस के लेटर बाक्स में डाल आते थे। 

वहीं प्रमोद कुमार के अनुसार हम वायस आफ अमेरिका और रेडियो डायचे वैले द वायस आफ जर्मनी की हिंदी सेवा को भी रेडियो पर सुनते थे। जहां पत्रों का कार्यक्रम आता था। वहां रेडियो श्रोता संघ के पत्र शामिल होते थे, वहां से हमें रेडियो श्रोता संघ बनाने की प्रेरणा मिली। 1995 में भारतीय रेडियो श्रोता संघ का गठन किया। भारतीय रेडियो श्रोता संघ के पदाधिकारी सदस्यों की सूची डाक से रेडियो डायचे वैले द वायस आफ जर्मनी और वायस आफ अमेरिका को भेजी। 

वहीं जहां क्लब का पंजीकरण हुआ। भारतीय रेडियो श्रोता संघ को रेडियो डायचे वैले द वायस आफ जर्मनी की रेडियो की हिंदी सेवा से सर्वश्रेष्ठ श्रोता क्लब का पुरस्कार मिला। हमें आकाशवाणी से भी सर्वश्रेष्ठ श्रोता का पुरस्कार मिला। वर्तमान में भारतीय रेडियो श्रोता संघ से देश भर से करीब एक हजार रेडियो प्रेमी जुड़े हैं।

वहीं प्रमोद कुमार ने रेडियो को साथी बनाते हुए इंटर, स्नातक, परास्नातक, इग्नू से बीएड तक की पढ़ाई की। आकाशवाणी से विद्यार्थियों के लिए कार्यक्रम आता था, जिसमें विशेषज्ञ अध्यापक आते थे।वह विषय वार रेडियो से शिक्षण देते थे। ज्ञानवाणी का प्रसारण होता था, इससे भी पढ़ाई में काफी मदद मिली।

वहीं दूसरी तरफ़ आकाशवाणी का एक एप है। न्यूज आन एआइआर एप। इस एप से आकाशवाणी के राष्ट्रीय नेटवर्क पर उपलब्ध सभी स्टेशनों को पूरी दुनिया में कहीं भी सुना जा सकता है। न सिर्फ रेडियो, बल्कि दूरदर्शन के भी सभी चैनलों को दुनिया भर में इसके माध्यम से देख सकते हैं। डीटीएच डिश के जरिए भी रेडियो को सुन सकते हैं। एप और डीटीएच से रेडियो ने वैश्विक रूप ले लिया।