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यूपी: वाराणसी में जन्मस्थली में रखी है संत रविदास की कठौती और चमत्कारिक पत्थर।
वाराणसी। संत शिरोमणि गुरु रविदास की जन्मस्थली सीरगोवर्द्धनपुर स्थित मंदिर में संत कठौती और चमत्कारिक पत्थर विशेष सुरक्षा के बीच रखी गई है। संत के बेगम पुरा में रखी यह कठौती जयंती के अवसर पर देश विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए आस्था और आकर्षक का केंद्र रहती है। यह कठौती और चमत्कारिक पत्थर संत रविदास की वाणी "मन चंगा तो कठौती में गंगा को चरितार्थ करती है।
वहीं मंदिर के ट्रस्टी जनरल सेक्रेटरी सतपाल विर्दी ने बताया कि वर्ष 1964 में ब्रम्हलीन संत सरवन दास ने अपने शिष्य हरिदास को मंदिर की नींव डालने के लिए जालंधर से काशी भेजा था। मंदिर के नींव की खुदाई के दौरान यह कठौती मिली थी। इसे संत रविदास की निशानी मानकर मंदिर बनने के बाद बेसमेंट में रखा गया था। बाद में सुरक्षा को देखते हुए इस कठौती को बुलेटप्रूफ कांच में बंद कर संगमरमर से जड़ दिया गया। मंदिर में दर्शन करने वाले श्रद्धालु इसका दर्शन करते हैं।
वहीं वर्ष 2016 में मंदिर के संत मनदीप दास नगवां स्थित रविदास पार्क में संत की प्रतिमा पर माल्यापर्ण करने गए थे जिसके बाद गंगा किनारे गए तो पानी में तैरता हुआ बड़ा पत्थर दिखाई दिया। संत मनदीप दास ने पत्थर को बाहर निकाला और संत रविदास की निशानी मानकर मंदिर ले आए।
वहीं मंदिर के ट्रस्टी के एल सरोये ने बताया कि इसे चमत्कारिक पत्थर मानकर मंदिर में स्वर्ण पालकी पर रखी संत रविदास की प्रतिमा के सामने बुलेटप्रूफ कांच में रखकर चारो तरफ से चैनल में बंद करके रखा गया है जिसका जयंती पर आने वाले श्रद्धालु दर्शन करते हैं।
वहीं प्रचलित कहावत के अनुसार संत रैदास अपनी झोपड़ी में बैठे प्रभु का स्मरण कर रहे थे। तभी एक राहगीर ब्राह्मण गंगा स्नान को जा रहे थे वो अपना जूता ठीक कराने आये। जिसके बाद ब्राह्मण ने एक मुद्रा दिया। रैदासजी ने कहा कि आप यह मुद्रा मेरी तरफ से मां गंगा को चढ़ा देना। ब्राह्मण जब गंगा में उस मुद्रा को डाला तभी गंगा से एक हाथ आया और उस मुद्रा को लेकर बदले में ब्राह्मण को एक सोने का कंगन दे दिया।
वहीं ब्राह्मण के मन में विचार आया कि संत रैदास को क्या पता चलेगा। मैं इस कंगन को राजा को दे देता हूं, जिसके बदले मुझे उपहार मिलेंगे।उन्होंने राजा को कंगन दिया और उपहार लेकर घर लौट गए। राजा ने वो कंगन रानी को दिया तो रानी खुश हो गई और बोली मुझे ऐसा ही एक और कंगन दूसरे हाथ के लिए चाहिए। तब राजा ने ब्राह्मण को बुलाकर वैसा ही कंगन नहीं लाने पर दंडित करने को कहा।
वहीं ब्राह्मण परेशान होकर संत रविदास के पास पहुंचा और सारी बात बताई। रैदासजी बोले कि तुमने मुझे बिना बताए राजा को कंगन भेंट कर दिया, इससे परेशान न हो। तुम्हारे प्राण बचाने के लिए मैं गंगा से दूसरे कंगन के लिए प्रार्थना करता हूं। रैदासजी ने अपनी वह कठौती उठाई, जिसमें पानी भरा था और मां गंगा का आह्वान कर अपनी कठौती से जल छिड़का, जिसके बाद कठौती में वैसा ही कंगन प्रकट हो गया। रैदासजी ने वो कंगन ब्राह्मण को दे दिया जिसे भेंट के बाद दंड से बच गया। तभी से यह कहावत प्रचलित हुई कि "मन चंगा तो कठौती में गंगा"।