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यूपी : मऊ की सभी चार सीटों पर इस बार त्रिकोणीय संघर्ष के दिख रहे नेताओं के आसार।
मऊ। वर्ष 1988 मेें आजमगढ़ से अलग होकर जिला बने मऊ ने पूर्व केंद्रीय मंत्री कल्पनाथ राय के दौर में खूब विकास देखा था, लेकिन 1998 में उनके निधन के बाद यहां विकास का पहिया रुक गया था। मऊ सदर, घोसी, मुहम्मदाबाद गोहना व मधुबन विधानसभा क्षेत्र के लोगों की उम्मीदें महज सपना बनकर रह गई थीं।
वहीं इसके बाद हालिया कुछ सालों में लोगों ने जिले में विकास का रथ घूमते देखा। पहले यहां साफ-सफाई, जर्जर सड़क, जाम, बदहाल चिकित्सा व्यवस्था स्थायी समस्याएं थीं। अब सड़कों, पुलों व बिजली के क्षेत्र में हुए काम ने पिछड़ेपन के दाग को कुछ हद तक धोया है। इसलिए इस बार भी यहां विकास बड़ा मुद्दा है। मऊ की चारों चर्चित सीटों पर बनते-बिगड़ते समीकरणों की पड़ताल करती जयप्रकाश निषाद रिपोर्ट।
वहीं जनपद के विकास पुरुष कहे जाने वाले कल्पनाथ राय की कर्मभूमि पर पिछले पांच साल के हालात पर नजर डाली जाए तो यहां काफी बदलाव देखने को मिले। रेशमी साड़ी की बुनाई करने वाले बुनकरों को बिजली, कानून का राज व बेहतर व्यापार के अवसर भी मिले। जनपद से होकर गुजरे सिक्सलेन व फोरलेन इसकी गवाही दे रहा है। शहर की सड़कें चौड़ी हो गई हैं।
वहीं आजमगढ़ तिराहे से लेकर गाजीपुर तिराहा तक फोरलेन सड़क पर डिवाइडर बना। आजमगढ़ तिराहा, गाजीपुर तिराहा, भीटी तिराहा व मिर्जाहादीपुरा तिराहा का सुंदरीकरण हो रहा है। आजमगढ़ तिराहा से गाजीपुर तिराहा तक लगने वाला जाम बते दिनों की बात हो चुका है। मधुबन के धनौलीरामपुर निवासी हरिश्चंद्र राय का कहना है कि शहर को लटकते तारों से मुक्ति इसी सरकार में मिली।
वहीं दूसरी तरफ़ बिजली 22-24 घंटे तक रहती है। सहादतपुरा में चाय की दुकान लगाने वाले फागू के मुताबिक इस बार जातियों के सहारे चुनाव लडऩे वालों का भ्रम टूटेगा। चौक के कपड़ा व्यापारी राम गोपाल गुप्ता का कहना है कि व्यापारियों का वोट इस बार विकास के लिए होगा। मऊ-गाजीपुर फोरलेन पर काम हो रहा है। यहां से वाराणसी जाना आसान हो गया है। डेढ़ घंटे में वाराणसी पहुंचा जा सकता है।
वहीं गरीबों को आवास व शौचालय मिले। जिला अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ डा. सीएस साहनी कहते हैैं कि अब सबको दवा निशुल्क मिल रही है। स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर हुई हैैं। तीन-तीन आक्सीजन प्लांट लगा दिए गए हैं। राशन सबको मिल रहा है। एलईडी लाइटों से पूरा शहर रोशन हो रहा है। हजारों किसानों के कर्ज माफ हुए हैैं। हालात तो बदले हैैं।
वहीं इस सीट पर 1996 से लगातार मुख्तार अंसारी की जीत का कारवां चल रहा है। मुख्तार ने 1996 में पहली बार विधानसभा चुनाव में बसपा के उम्मीदवार के तौर पर जीत हासिल की थी। इसके बाद निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर 2002 और 2007 में चुनाव जीता। वर्ष 2012 में मुख्तार ने कौमी एकता दल का गठन किया और चुनाव में चौथी बार जीत का रिकार्ड बनाया।
वहीं 2017 के चुनाव में मुख्तार ने हाथी की सवारी की और मोदी लहर में भी 8,698 वोट से जीत दर्ज की। तब दूसरे स्थान पर सुभासपा के महेंद्र राजभर व तीसरे स्थान पर सपा के अल्ताफ अंसारी थे। इस बार मुख्तार के बेटे अब्बास अंसारी सुभासपा के टिकट से मैदान में हैैं। यहां से भाजपा ने मुख्तार के विरोधी रहे अशोक सिंह तो बसपा ने अपने प्रदेश अध्यक्ष भीम राजभर को मैदान में उतारा है। कांग्रेस ने माधवेंद्र बहादुर सिंह को मौका दिया है। यहां त्रिकोणीय संघर्ष दिख रहा है।
बता दें कि भाजपा ने इस बार अपने विधायक विजय राजभर पर भरोसा किया है। सपा ने यहां से निवर्तमान वन मंत्री दारासिंह चौहान, बसपा ने वसीम इकबाल व कांग्रेस ने प्रियंका यादव को मैदान में उतारा है। वर्ष 2017 में भाजपा के फागू चौहान ने छठवीं जीत के साथ ही एक अन्य कीर्तिमान भी स्थापित किया था। 36.72 फीसदी मतदाताओं की पसंद बनने के साथ ही 88,298 मतों के पहाड़ पर चढ़े थे।
वहीं वर्ष 2017 में बसपा प्रत्याशी अब्बास अंसारी 81,295 मत पाकर फागू चौहान से हार गए थे। फागू चौहान के बिहार के राज्यपाल पद पर नियुक्त होने के बाद वर्ष 2019 में हुए उपचुनाव में भाजपा के विजय राजभर ने निर्दल सुधाकर सिंह को 1,773 मतों से हराया था। विजय राजभर को 68,371 व सुधाकर को 66598 मत मिला था।
वहीं अब यहां सपा ने भाजपा छोड़कर आए दारासिंह चौहान पर भरोसा जताया है। ऐसे में यहां भाजपा, सपा व बसपा में त्रिकोणीय संघर्ष दिख रहा है। कांग्रेस की प्रियंका यादव भी मैदान में हैैं। हालांकि सुधाकर सिंह के बगावती तेवर से सपा का नुकसान हो सकता है।
वहीं इस सीट पर 2017 के चुनाव में भाजपा से दारासिंह चौहान ने 86,238 मत पाकर कांग्रेस के अमरेशचंद्र पांडेय को 29,415 वोटों से हराया था। बसपा के उमेश पांडेय तीसरे स्थान पर रहे थे। यहां से दारा सिंह चौहान पाला बदलकर घोसी से सपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसे में भाजपा ने यहां से बिहार के राज्यपाल फागू चौहान के पुत्र रामविलास चौहान को मैदान में उतारा है।
वहीं सपा ने उमेश चंद्र पांडेय पर भरोसा जताया है जबकि बसपा ने नीलम सिंह कुशवाहा और कांग्रेस ने अमरेश चंद्र पांडेय को मैदान में उतारा है। यहां लड़ाई रोमांचक है। भाजपा में रहे भरत सिंह विकासशील इंसान पार्टी से चुनाव लड़ रहे हैं। यहां भाजपा में भितरघात की वजह से समीकरण रोज बन-बिगड़ रहे हैं। यहां भी मुकाबला त्रिकोणीय नजर आ रहा है।