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यूपी: वाराणसी आइआइटी बीएचयू के विज्ञानियों ने मनुष्य को कैंसर और रक्षा उपकरणों को दुश्मन से बचाने वाली उपयोगिता।
वाराणसी। एक्स-रे व माइक्रोवेव किरणों से स्कैनिंग से होने वाले कैंसर के खतरे को समाप्त किया जा सकता है। इन किरणों की जगह टेरा हट् र्ज तरंगों का प्रयोग किया जा सकता है। सिर्फ यही नहीं अपने रक्षा उपकरणों, मिसाइलों, एयरक्राफ्ट आदि को भी दुश्मन की नजरों से बचाया जा सकता है, इन तरंगों की कोटिंग करके। टेरा हट्र्ज तरंगों की इन महत्वपूर्ण उपयोगिताओं को खोज निकाला है आइआइटी बीएचयू के विज्ञानियों ने।
वहीं आइआइटी बीएचयू के इलेक्ट्रानिक्स इंजीनियरिंग विभाग में टेरा- हट्र्ज विकिरण पर शोध कर रहे प्रो. सोमेक भट्टाचार्य बताते हैं कि दरअसल, एक वर्ष में पांच बार से ज्यादा एक्स-रे किसी को कराना पड़ा तो इन किरणों से कैंसर होने की आशंका प्रबल होती है। क्योंकि जिन एक्स-रे किरणों से शरीर के अंगों की स्कैनिंग होती है, उसकी आवृत्ति इतनी तीव्र होती है कि वह सीधे शरीर की कोशिकाओं और उतकों को नुकसान पहुंचाती हैं।
वहीं इसी तरह रेलवे, मेट्रो स्टेशनों, एयरपोर्टों और अन्य महत्वूपर्ण स्थानों पर माइक्रो तरंगों से सामानों या यात्रियों की होने वाली स्कैनिंग भी नुकसान पहुंचाती है, लेकिन यदि इनकी जगह टेरा हट् र्ज तरंगों का प्रयोग किया जाए तो यह खतरा निर्मूल हो जाता है क्योंकि टेरा हट् र्ज तरंगों की आवृत्ति और ऊर्जा एक्स-रे से काफी कम होती है।
वहीं दूसरी तरफ़ प्रो. भट्टाचार्य अपने शोध छात्र नीलोत्पल के साथ में टेरा- हट्र्ज को बायो मेडिकल, रक्षा और सार्वजनिक उपयोगिता से जोडऩे पर काम कर रहे हैं। वह बताते हैं कि शोध में पाया गया है कि इस विकिरण (रेडिएशन) से सीने या शरीर के किसी हिस्से की स्कैनिंग करने पर कैंसर या किसी दूसरे रोग का खतरा नहीं रहता है।
वहीं शोध छात्र नीलोत्पल बताते हैं कि खास बात यह है कि एयरपोर्ट, माल और रेलवे स्टेशनों पर स्कैनर के रूप में भी इसका किया जा सकता है। अभी तक माइक्रोवेव फ्रीक्वेंसी से लगेज चेक करते हैं। यह पालीथिन या फोम के परतों में दबी वस्तुओं को स्कैन नहीं कर पाता। जबकि टेरा- हट्र्ज हर छिपी वस्तु की आकृति को स्क्रीन पर दिखा सकता है। इसका प्रयोग कई जगह पर किया भी जा चुका है।
बता दें कि नीलोत्पल ने टेरा- हट्र्ज की तरंगों को अवशोषित करने के लिए एक डिवाइस भी तैयार किया है। इसकी खासियत यह है कि यदि किसी ने टेरा- हट्र्ज रेडिएशन उनके आसपास भेजा तो यह डिवाइस उसे अवशोषित कर लेगा। यानी कि उनके डिवाइस की सूचना रेडिएशन भेजने वाले तक नहीं पहुंच पाएगी। यह तकनीक रक्षा क्षेत्र में बड़े बदलाव कर सकती है। एयरक्राफ्ट या मिसाइल के बाहरी परत पर इस वेव की कोटिंग कर देंगे तो कोई भी दुश्मन देश कम से कम टेरा-हट् र्ज रेडिएशन भेजकर हमारे डिवाइस को लोकेट नहीं कर सकेगा।
वहीं दूसरी तरफ़ नीलोत्पल ने बताया कि माइक्रोवेव और विजिबल किरणों के बीच में एक टेरा- हट्र्ज फ्रीक्वेंसी होती है। माइक्रोवेव को गीगा हट्र्ज डिवाइस में मापते हैं। वहीं, इसके ऊपर इंफ्रारेड किरणें आती हैं। इन दोनों के बीच में एक अंतर 0.3 से 30 टेरा हट्र्ज का है, जहां अब तक कोई रिसर्च हुआ ही नहीं है। माइक्रोवेव से ऊपर टेरा हट्र्ज उससे ज्यादा आप्टिकल फाइबर का स्थान आता है। सोलर लाइट इसी आप्टिकल रेडिएशन पर काम करती है। वहीं माइक्रो ओवन माइक्रोवेव पर काम करता है।