
Covid-19
यूपी: वाराणसी का नाम पहला नहीं, नकली वैक्सीन की परेशानी से जूझ रहे हैं देश-दुनिया के कई देश।
वाराणसी। नकली कोरोना वैक्सीन की बड़ी खेप पकड़े जाने से पुलिस से लेकर स्वास्थ्य महकमे में हड़कंप मच गया है। नकली वैक्सीन बनारस के अलावा कहां-कहां तक पहुंची है इसकी तलाश में पूरा सरकारी महकमा जुट गया है। चिंता की बात है कि कइ लोगों को यह नकली वैक्सीन लगायी भी गयी होगी। कोरोना से जूझ रही दुनिया में नकली वैक्सीन की संभावना काफी पहले ही जतायी गयी थी। इसे देखते हुए डब्ल्यूएचओ ने बाकायदा एक रिपोर्ट भी जारी किया था। भारत सरकार ने सभी प्रदेशों को अलर्ट किया था।
वहीं पिछले साल मार्च महीने में वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन ने एक रिपोर्ट प्रकाशिक की थी। इसमें बताया गया था कि दुनिया के कई देशों के स्वास्थ्य मंत्रालयों से जानकारी मिली है कि वहां नकली वैक्सीन की खेप बरामद हुई है। रिपोर्ट में बताया गया था किनकली वैक्सीन बनाने वाले असली वैक्सीन की खाली वायल को इकट्ठा करते हैं और फिर इस काम को अंजाम देते हैं। डार्क वेब पर फाइजर, मॉडर्ना, स्पूतनिक वी, कोविशील्ड और कोवैक्सीन बेची जा रही है।
वहीं वैक्सीन की एक डोज के लिए 50 से 60 हजार रुपये तक लिए गए हैं। इजरायल ने एक रिसर्च में बताया था कि डार्क वेब पर पिछले साल जनवरी के महीने में 600 अलग -अलग माध्यमों से फेक वैक्सीन और उन वैक्सीन्स के फेक सर्टिफिकेट्स बेचे जा रहे थे। इनकी संख्या मार्च महीने में 1200 हो गई। अफ्रीका देशों में भी नकली वैक्सीन की भारी खेप खपाए जाने की जानकारी सामने आयी थी।
वहीं बीते साल 30 मई को मुंबई की एक हाउसिंग सोसायटी में वैक्सीनेशन कैम्प लगाया गया था और सोसायटी में रहने वाले 390 लोगों को कोविशील्ड वैक्सीन की पहली डोज लगाई गई थी। जानकारी मिली की नकली वैक्सीन लगा दी गयी थी। एक डोज के बदले 1260 रुपये वसूले गए थे। इस तरह के 9 कैम्प लगाए गए थे और कैम्प लगाने वालों ने लाखों रुपये कमा लिए। दिल्ली, नोएडा, गुरुग्राम, चंडीगढ़, हैदराबाद, बेंगलुरु, मुंबई, पुणे, चेन्नई और कोलकाता जैसे बड़े शहरों की हाउसिंग सोसायटीज और प्राइवेट कंपनियों के दफ्तर में वैक्सीनेशन कैम्पों का आयोजन किया गया। इन शहरों में भी लोगों ने वैक्सीनेशन और उसके सर्टिफिकेट को लेकर शिकायत की है।
बता दें कि वहीं अवैध कमाई करने वालों ने कोरोना काल को अवसर में तब्दील कर दिया। नकली दवाओं से लेकर टेस्ट और सर्टिफिकेट के बदले खूब रुपये बटोरे। भारत में जब कोरोना का सेकेंड वेब चल रहा था तब जीवन रक्षक माने जाने वाले रेमिडिसिवर की जबरदस्त कालाबाजारी हुई। इसकी शार्टेज दिखाकर जरूरतमंदों से मुंह मांगे दाम वसूले गए। यहां तक कि नकली रेमडिसिवीर भी असली बताकर खूब बेची गयी। ऐसा करने वालों को किसी की जान की परवाह नहीं रही। उनको तो सिर्फ अपना जेब भरने से मतलब रहा।