![यूपी: आजमगढ़ में स्कूल जा रहे बच्चों की नाव नदी में पलटी तो शकील ने जनसहयोग से बनवा दिए चार पुल।](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhVwelY5XHlyzIsaHpWEeqsRr2p6l9gCH88VwIv-PIYRyu7P9JWkweAI26WDRE5Gr4IZt82la1tdOnK16Yo5ZXTic5X9s4dq9O_12MWnwKff0wAMSTuMBDPub099fpxkXJiI0y6d0RG02Q/w700/1644592636461897-0.png)
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यूपी: आजमगढ़ में स्कूल जा रहे बच्चों की नाव नदी में पलटी तो शकील ने जनसहयोग से बनवा दिए चार पुल।
आजमगढ़। पांचवीं तक पढ़े एक शख्स ने जज्बे और जुनून के दम पर जनसहयोग से चार पुल बनवा दिए ताकि छोटे बच्चे अपना जीवन खतरे में डाले बगैर पढ़ने के लिए स्कूल जा सकें और दिनभर कड़ी मेहनत के बाद गांव वालों की घर लौटने की राह थोड़ी आसान हो जाए। आजमगढ़ के मिर्जापुर ब्लाक के तोवा गांव के रहने वाले शकील 'पुल वाले' ने शासन-प्रशासन की सहायता के बिना जनसहयोग से यह काम कर दिखाया है।
वहीं शकील के इस असाधारण सफर की शुरुआत 1980 में एक हादसे से हुई थी। पढऩे के लिए मदरसा जा रहे दस बच्चों से भरी एक नाव तोवा गांव के समीप तमसा (टोंस) नदी में डूब गई। हादसे में दस वर्षीय सैफुल्ला की मौत ने शकील को झकझोर कर रख दिया। नदी पर पुल बनाने की जो जिम्मेदारी तीन दशक पहले उठाई थी, उसे आज भी कंधे पर लिए शकील बढ़ते जा रहे हैैं। फिलहाल तमसा और कुंवर नदी पर एक साथ दो सेतु बनाने के दायित्व निर्वहन को संकल्पबद्ध शकील के बनाए पुल दो लाख से ज्यादा लोगों का आवागमन सुगम करते हैं।
वहीं 1982 में शकील ने जनसहयोग से पहला पुल बनवाया था। जब वह चंदा मांगने जाते तो लोग उन्हें शक की निगाह से देखते। मदद के लिए वह मुंबई, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा से लेकर दुबई तक गए, जहां बड़ी संख्या में आजमगढ़ के लोग कामकाज करते हैं। इसी बीच गुजरात के वापी में उनकी मुलाकात आजमगढ़ के रहने वाले हाजी इसरारुल से हुई। शकील से नाव दुर्घटना की कहानी सुनकर इसरारुल ने 35 लाख की मदद देकर हौसला बढ़ाया और पुल का शिलान्यास भी किया। गांव वाले भी हरसंभव मदद करने लगे। और कुछ नहीं तो श्रमदान ही करते।
वहीं दूसरी ओर लगभग एक साल में 42 मीटर लंबा यह पुल बनकर तैयार हो गया। इसका उद्घाटन तत्कालीन पुलिस उपमहानिरीक्षक विजय कुमार ने किया। जब उन्हें पुल के निर्माण की कहानी पता चली तो हैरान रह गए। 80 हजार रुपये का सहयोग भी दिया। विजय कुमार ने उन्हें शकील 'पुल वाले' नाम दिया। शकील के परिवार में पत्नी इसरतजहां और दो पुत्र समीर व सरफराज हैं।
वहीं दोनों बेटे कपड़े की फेरी लगाकर जीविकोपार्जन करते हैैं। शकील ने बताया कि पहला पुल बनाने की अनुमति तो नहीं ली थी, लेकिन इसके बारे में तत्कालीन जिलाधिकारी को बताया था। जब पुल बन रहा था, तत्कालीन जिलाधिकारी अन्य अधिकारियों के साथ निरीक्षण के लिए आए थे। पुल बन जाने पर उन्होंने ट्रक चलावाकर इसकी मजबूती भी परखी थी। दो और पुल के शिलान्यास से पूर्व तत्कालीन डीएम एनपी सिंह के संज्ञान में डाला था।
1. 1982 में तोवा में तमसा नदी पर 1.85 करोड़ की लागत से छह पिलर का पुल।
2. 1985 में तमसा नदी पर शिवराजपुर में 1.65 करोड़ की लागत से पांच पिलर का पुल।
3. 1990 में दुर्वासा धाम पर मंजूषा व तमसा नदी के संगम पर 1.62 करोड़ की लागत से चार पिलर का पुल।
4. 2020 में कौडिय़ा में बड़ी नहर पर सात लाख में दो पिलर का पुल।
वहीं इंजीनियर संजय श्रीवास्तव और श्रम विभाग में कार्यरत अनिल सिंह के सहयोग के बिना मैं यह नहीं कर सकता था। संजय सेतु की डिजाइन एवं उसकी गुणवत्ता के मामले में हौसला नहीं टूटने देते।