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यूपी : वाराणसी दीनदयाल हस्तकला संकुल में पुतुल की जुबानी काशी सुनेगी बलिदानियों की कहानी का 21 से 23 मार्च तक हुआ आयोजन।

यूपी : वाराणसी दीनदयाल हस्तकला संकुल में पुतुल की जुबानी काशी सुनेगी बलिदानियों की कहानी का 21 से 23 मार्च तक हुआ आयोजन।


वाराणसी। लोक के रंगों से सजी कठपुतली काशी में बलिदानियों की कहानी सुनाएगी। भरत मुनि के नाट्यशास्त्र पंचमदेव में प्रतिष्ठित पुतुल तीन दिनों तक अपने प्रकृति प्रदत्त स्वभाव और हाव-भाव से शौर्य गाथा को जीवंत करती जाएगी। 

वहीं इसके लिए संगीत नाटक अकादमी नई दिल्ली व सुबह-ए-बनारस की ओर से तीन दिवसीय पुतुल उत्सव का आयोजन 21 से 23 मार्च तक किया गया है। आजादी के अमृत महोत्सव के तहत इसका प्रदर्शन पहले दो दिन अस्सी घाट पर तो अंतिम दिन दीनदयाल हस्तकला संकुल बड़ालालपुर में किया गया है।

वहीं तीन दिनों में सात संस्थाएं आधे-आधे घंटे की प्रस्तुति देंगी। कोआर्डिनेटर जगदीश केसरी के अनुसार उत्सव का उद्देश्य देश की आजादी के लिए प्राणों को न्योछावर कर देने वाले बलिदानियों को स्मरण करना है। बिसरती कला में भी जीवन भरना है।

वहीं जगदीश बताते हैैं कि कठपुतली यानी पुतुल कला मानव के सबसे करीब है। इसकी उत्पत्ति कह सकते हैैं कि मानव की उत्पत्ति के साथ है। कैसे मनुष्य ने महसूसा और कैसे अपने भावों को अभिव्यक्ति दी। उस समय ने सांकेतिक भाषा और न ही अन्य कोई माध्यम। यही सब पुतुल भी करती है। उसने भी मानव से ही यह सब सीखा और सज संवर कर सिखाती है।

वहीं दूसरी तरफ़ वास्तव में यह पुतुल है और जब राजस्थान में जाती है और काठ के चेहरे और हाथ पाती तो कठपुतली हो जाती है। वैसे अलग-अलग जगहों पर इसके अलग-अलग नाम हैैं। पूर्वांचल के लोक में बालिकाओं को बालपन के खेल में शुमार है यह और पुतरी कही जाती है।

वहीं दूसरी तरफ़ शास्त्रीय संगीत गायकी में बड़ा नाम पद्मविभूषण गिरिजा देवी जिन्हें संगीत जगत ने ठुमरी साम्राज्ञी के नाम से जाना और संगीत की नगरी काशी ने सदा अप्पा जी माना, पुतरी उन्हें बेहद प्रिय थी। बालपन से उनसे खेलतीं। उनकी ही जुबानी, जब वह ससुराल गईं तब भी पुतरी से रिश्ता न टूटा। उनकी संदूक में तमाम पुतरियां थीं। जब कला जगत में बड़ा नाम हुआ तब भी उनके बैठक खाने के शोरूम में पुतरियों का संग्रह होता था जो आज उनके न होने के बाद भी उनकी यादों के रूप में आबाद है।   

1. 21 मार्च - शाम सात बजे स्वागत, आकार पपेट थिएटर नई दिल्ली, निर्देशक पूरन भट्ट। आखिरी सलाम: गगनिका सांस्कृतिक समिति शाहजहांपुर, निर्देशक कप्तान सिंह कर्णधार। 

2. 22 मार्च : शाम सात बजे अवध की चिंगारियां, दीपा पपेट थिएटर लखनऊ, निर्देशक दीपा मित्रा। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अनुभव पपेट थिएटर लखनऊ, निर्देशक नरेंद्र साहू। 

3. 23 मार्च : सुबह 11 बजे आजाद, सूत्रधार एकेडमी लखनऊ, निर्देशक मिलन यादव। मोहन से महात्मा क्रिएटिव पपेट थिएटर वाराणसी, निर्देशक मिथिलेश दुबे।