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यूपी में 35 साल पुराना रिकॉर्ड तोड़ेंगे CM योगी, 6 माह पहले कहा था करूंगा वापसी...
लखनऊ: चुनाव से बहुत पहले ही सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दावा किया था कि 2022 के विधानसभा चुनाव में वो प्रदेश की सियासत से जुड़े 35 साल पुराने एक रिकॉर्ड को तोड़ेंगे. जिसे आज से पहले कोई भी नहीं तोड़ सका था. दरअसल, मुख्यमंत्री ने कहा था- 'उत्तर प्रदेश के चुनावी इतिहास में कोई भी मुख्यमंत्री लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री नहीं चुना गया. लेकिन वो वापसी करेंगे.' लेकिन तब सपा अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कुछ कारणों को गिनाते हुए दावा किया था कि आने वाले चुनावों में वो सत्ता से बेदखल होंगे.
लेकिन तब भले ही सीएम योगी के बयान सूबे की सियासी इतिहास से पृथक रहे हो, लेकिन आज उनकी कथनी हकीकत में तब्दील होने जा रही है. वहीं अगर यूपी सरकार की वेबसाइट पर मौजूद पूर्व मुख्यमंत्रियों की सूची को देखे तो पाएंगे कि राज्य में कोई भी मुख्यमंत्री दो बार लगातार सीएम की कुर्सी पर बैठने में कामयाब नहीं हो सका है. हालांकि एक ही पार्टी एक से ज्यादा बार या फिर लगातार चुनावों में जीत दर्ज कर सरकार बनाने में कामयाब रही है. लेकिन हर बार मुख्यमंत्री बदले गए. साल 1950 में राज्य को पहला मुख्यमंत्री मिला था. तब से लेकर आज तक कुल 20 लोगों के नाम के आगे उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री रहने का तमगा लग चुका है.
आजादी के बाद राज्यों का पुनर्गठन हुआ और यूपी को अपना पहला मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत के रूप में 1950 में मिला था. लेकिन वह आजादी के पहले से ही राज्य का कार्यभार संभाल रहे थे. उस वक्त उनका चयन फ्रान्सिस वर्नर वाईली ने किया था, जो 1945 से लेकर 1947 तक संयुक्त प्रांत के राज्यपाल थे. 1950 के बाद पंत, चार साल और 355 दिनों तक मुख्यमंत्री के पद पर काबिज रहे थे. 1950 से 1967 तक राज्य की सत्ता पर कांग्रेस का दबदबा था. खैर, इन 17 सालों में कांग्रेस सत्ता तक पहुंचने में तो कामयाब रही, लेकिन मुख्यमंत्री हर बार बदला गया.
गोविंद बल्लभ पंत के बाद 1954 से 1960 तक संपूर्णानंद मुख्यमंत्री रहे तो 1960 से 1963 तक चंद्रभानु गुप्ता और 1963 में यह जिम्मेदारी कांग्रेस की सुचेता कृपलानी के कंधों पर आई. वह राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं, जिनका ताल्लुक बंगाली परिवार से था और 1967 तक इस पद पर बनी रहीं थीं. इसके उपरांत 19 दिनों के लिए फिर यह जिम्मेदारी चंद्रभानु गुप्ता को सौंपी गई. इसके बाद सूबे की सियासत में चौधरी चरण की जोरदार एंट्री हुई और वो साल 1967 से लेकर 1968 तक मुख्यमंत्री रहे. यह पहला मौका था जब राज्य की जिम्मेदारी किसी गैर कांग्रेसी के कंधों पर गई थी.
वहीं, 1968 के बाद एक साल, एक दिन के लिए राज्य में राष्ट्रीय शासन लागू रहा. 1969 के चुनावों में फिर कांग्रेस की वापसी हुई और सीएम की जिम्मेदारी दो बार राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके चंद्रभानु गुप्ता के कंधों पर दी गई. इस तरह वो पहले ऐसे नेता बने, जो तीन बार सूबे के मुख्यमंत्री बने थे. 1970 में फिर चौधरी चरण सिंह की वापसी हुई, इस बार उनकी सरकार 225 दिनों तक चली. कांग्रेस के त्रिभुवन नारायण सिंह 1970 से लेकर 1971 तक, कमलापति त्रिपाठी 1971 से लेकर 1973 तक मुख्यमंत्री रहे.