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यूपी : वाराणसी में पानी घटते ही गंगा में उभर आए रेत के टीले, वहीं इस बार मार्च में ही दिखने लगी समस्या।

यूपी : वाराणसी में पानी घटते ही गंगा में उभर आए रेत के टीले, वहीं इस बार मार्च में ही दिखने लगी समस्या।

                          Vinit Jaishwal City Reporter

वाराणसी। पड़ रही भीषण गर्मी और पारिस्थितिकी तंत्र में बदलाव का नतीजा सामने आने लगा है। हाल यह कि गंगा में पानी अभी से कम हो चला है और बहार मद्धिम पड़ने लगा है। यही कारण है कि प्राय: अप्रैल-मई में दिखने वाले रेत के टीले अभी मार्च में ही नजर आना शुरू हाे गए हैं। शहर के दक्षिणी छोर पर रविदास घाट से सामनेघाट के बीच अभी से उभरते रेत के टीले देख लोग हैरान हैं।

वहीं हाल यह कि अभी से निकल आए इस रेत के टीले पर मछुआरे नाव से पहुंचकर जाल और कटिया लगाकर मछली पकड़ रहे हैं। हाल यह कि गंगा अपनी रेत घाटों पर जमा कर रही है। गंगा वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों का कहना है कि प्रवाह कम होने के चलते रेत अबकी पश्चिम के बजाय पूरब की तरफ आने लगी है।

वहीं प्रख्यात पर्यावरणविद व गंगा विशेषज्ञ प्रो. बीडी त्रिपाठी कहते हैं कि सिल्टराइजेशन यह बताता है कि गंगा में पानी का प्रवाह कम हो गया है। यह कोई आकस्मिक घटना नहीं है बल्कि चल रही सतत प्रक्रिया का नकारात्मक परिणाम है। उत्तराखंड में तमाम हाइड्रोपावर परियोजनाओं के लिए बनाए गए बांधों ने जहां पानी को स्वतंत्र बहने से रोक रखा है, वहीं पूरे गंगा बेसिन में किनारे-किनारे बनीं लिफ्ट कैनाल से अनियंत्रित जलदोहन प्रकृति के इस उपहार का अपव्यय किया जा रहा है। बहरहाल यह स्थिति चिंताजनक है।

वहीं पानी कम होने से जल में घुलित आक्सीजन की मात्रा घटेगी, बायोलाजिकल आक्सीजन डिमांड बढ़ेगी, इससे जलीय जंतुओं को श्वांस की समस्या होगी। उनके जीवन के लिए खतरा बढ़ जाएगा। साथ ही पानी कम होने से बाहर से भले ही प्रदूषण न बढ़े, लेकिन पर्यावरणीय कारणों से जल में प्रदूषण की मात्रा बढ़ जाएगी। पानी का बहाव कम होने से उनमें नील-हरित शैवाल उगने लगेंगे, काई जमेगी, इससे पानी का रंग बदल जाएगा।

वहीं प्रो. त्रिपाठी कहते हैं कि गंगा को साफ करने के उपाय तो किए ही जा रहे हैं, जरूरत इस बात की है कि गंगा को बचाने की बात हो। नदी के जल प्रवाह को मुक्त किया जाय, जल के अपव्यय को राेका जाय। इसके लिए सरकार को जल-नीति बनानी चाहिए। वर्षा जल संग्रहण और भूगर्भ जल भरण के उपायों पर ध्यान दिया जाना चाहिए। पानी का अपव्यय करने वाली सिंचाई तकनीक में परिवर्तन होना चाहिए, तब नदियों को बचाया जा सकेगा।