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यूपी : वाराणसी में अबकी चैत्रं नवरात्रि कलश स्थापन के लिए मिल रहे सिर्फ सुबह के ढाई घंटे।
वाराणसी। शक्ति की अधिष्ठात्री भगवती दुर्गा व गौरी की उपासना-आराधना का महापर्व वासंतिक नवरात्र भारतीय नववर्ष के प्रथम दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा एक अप्रैल को सुबह 11:29 बजे लग रही है, जो दो अप्रैल को सुबह 11:29 बजे तक रहेगी।
वहीं अत: उदयातिथि अनुसार वासंतिक नवरात्र दो अप्रैल से शुरू होकर 10 अप्रैल महानवमी व रामनवमी तक चलेगा। इस बार नवरात्र में पूरे नौ दिन मिल रहे, लेकिन घट स्थापन को सूर्योदय के बाद केवल ढाई घंटे ही मिल रहे हैैं।
वहीं ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार घट स्थापन के लिए प्रात:काल का समय विशेष शुभ होता है। इस बार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा पर दो अप्रैल को प्रात: 8:22 बजे के बाद वैधृति योग आ रहा है। शास्त्रों में कहा गया है कि 'वैधृति पुत्र नाशिनी अर्थात वैधृति योग में घट स्थापन नहीं करना चाहिए। अत: घट स्थापन का शुभ मुहूर्त सूर्योदय के बाद प्रात: 5:52 से 8:22 बजे तक शुभद रहेगा।
वहीं दूसरी तरफ़ शास्त्र अनुसार महानिशा पूजन सप्तमी युक्त अष्टमी में किया जाता है। इसके लिए मध्य रात्रि में निशीथ व्यापिनी अष्टमी योग आठ अप्रैल को मिल रहा। इसमें महानिशा पूजन, बलिदान आदि किया जाएगा। महाअष्टमी व्रत नौ अप्रैल को रखा जाएगा। महानवमी या रामनवमी व्रत 10 अप्रैल को होगा और प्रभु श्रीराम का जन्मोत्सव मनाया जाएगा। महाअष्टमी व्रत का पारन नवमी तिथि में 10 अप्रैल को और नौ दिनी व्रत का पारन 11 अप्रैल को किया जाएगा।
वहीं वासंतिक नवरात्र में परांबा का आगमन इस बार अश्व पर हो रहा तो गमन महिष पर हो रहा है। ऐसे में माता का आवागमन शुभ नहीं है। इसका फल देश पर विपत्ति, बड़े राजनेताओं का निधन, प्राकृतिक आपदा, दुर्घटना आदि हो सकता है।
वहीं नवरात्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की प्रात: नित्य क्रिया से निवृत्त हो तैलाभ्यंग स्नान और फिर ब्रह्मा पूजन करना चाहिए। पंचांग श्रवण, नवसंत्सर के राजा-मंत्री आदि का फल श्रवण के साथ निवास स्थान ध्वजा -पताका, तोरण-वंदनवार से सुशोभित कर नवरात्र व्रत का संकल्प लेना चाहिए। गणपति व मातृका पूजन कर नौदेवी या सिंह वाहिनी नव दुर्गा की प्रतिमा लकड़ी के पटरे पर विराजमान कराना चाहिए।
वहीं दूसरी ओर पीली मिट्टी की डली पर कलावा लपेट कर गणपति रूप में कलश पर विराजित कराएं। जौ का पात्र रख कर वरुण पूजन, षोडश मातृका स्थापना और फिर मां परांबा का पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। आराधना में दुर्गा सप्तशती, दुर्गा चालीसा, नवाह्न मंत्र, दुर्गा मंत्र के साथ यथा शक्ति जप-पाठ करना चाहिए। वहीं वासंतिक नवरात्र में तिथि अनुसार देवियों के साथ नौ गौरी के दर्शन-पूजन का भी विधान है।
1. दो अप्रैल-मुख निर्मालिका गौरी व शैलपुत्री देवी।
2. तीन अप्रैल-ज्येष्ठा गौरी व ब्रह्मïचारिणी।
3. चार अप्रैल - सौभाग्य गौरी व चंद्रघंटा।
4. पांच अप्रैल - श्रृंगार गौरी व कुष्मांडा।
5. छह अप्रैल - विशालाक्षी व स्कंदमाता।
6. सात अप्रैल - ललिता गौरी, कत्यायनी।
7. आठ अप्रैल - भवानी गौरी, कालरात्रि।
8. नौ अप्रैल - मंगला गौरी, महागौरी।
9. दस अप्रैल- महालक्ष्मी गौरी, सिद्धिदात्री।