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यूपी : वाराणसी में राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने सोमवार को न्याय शास्त्र के उद्भट विद्वान व संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व प्रति कुलपति प्रो. वशिष्ठ त्रिपाठी को पद्मभूषण पुरस्कार से किया सम्मानित।
वाराणसी। राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने सोमवार को न्याय शास्त्र के उद्भट विद्वान व संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व प्रति कुलपति प्रो. वशिष्ठ त्रिपाठी को पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया। पद्मभूषण पुरस्कार मिलने से प्रो. वशिष्ठ ही नहीं काशी के संस्कृत के विद्वान भी गदगद हैं।
वहीं मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा कि संस्कृत सिर्फ भाषा ही नहीं राष्ट्र का गौरव भी है। न्याय दर्शन से ही देश पुन : विश्व गुरु बन सकता है। ऐसे में संस्कृत भाषा को प्रारंभिक कक्षाओं से अनिवार्य करने की जरूरत है। साथ ही इसे रोजगारपरक भी बनाना होगा ताकि संस्कृत भाषा के प्रति लोगों का रूझान बढ़ सके। उन्होंने कहा कि संस्कृत विद्यालयों व महाविद्यालयों में वर्षों से शिक्षकों के पद रिक्त हैं। इसका असर छात्रों की संख्या पर पड़ रहा है। उन्होंने सरकार से शिक्षकों के रिक्त पदों पर नियुक्त करने का भी अनुरोध किया है।
वहीं देवरिया जिले के निवासी राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित प्रो. वशिष्ठ त्रिपाठी की शिक्षा-दीक्षा बनारस में हुई। वर्ष 1961 में संस्कृत विश्वविद्यालय से आचार्य की उपाधि हासिल की। विश्वविद्यालय से उस समय न्याय विद्या से आचार्य करने वाले एकमात्र छात्र प्रो. वशिष्ठ त्रिपाठी ही थे।
वहीं न्याय व वैशेषिक विभाग से वर्ष 2001 में रिटायर प्रो. त्रिपाठी 81 वर्ष की आयु में अब भी छह-सात घंटे रोज पढ़ाते हैं। विभिन्न विवि व कालेजों के अध्यापक उनके पास सीखने-समझने के लिए आते रहते हैं। उनके पढ़ाए छात्र बीएचयू सहित प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों में कार्यरत हैं।
वहीं पढनने के दौरान उन्हें महसूस हुआ कि न्याय पढऩे वाले छात्रों की संख्या नगण्य है। ऐसे में यह विद्या लुप्त हो सकती है। इसके बाद वह बच्चों को निशुल्क न्याय वैशेषिक पढ़ाने लगे। सेवानिवृत्ति के बाद भी क्रम बना रहा। कबीरनगर स्थित कार्ष्णी विद्या भवन में सुबह साढ़े सात से दस बजे तक वह बच्चों को मुफ्त पढ़ाते हैं।
वहीं काशी विद्वत परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष प्रो. त्रिपाठी का नगवां स्थित घर भी शास्त्रों की पाठशाला है। दोपहर तीन से सात बजे तक छात्रों का आना लगा रहता है। जिस न्याय विद्या ने प्रो. त्रिपाठी को मान, सम्मान और पहचान दी, वे उसे सहेजने में योगदान दे रहे हैं। उनके चेहरे पर दिखती छात्रों को न्याय विद्या में पारंगत करने की खुशी ही शायद उनके ज्ञान-दान का असल मोल है।