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यूपी : वाराणसी में विधानसभा चुनाव क्षेत्रों में आसान सीट पर कठिन जीत के कारण नीलकंठ तिवारी के हाथ से छिटका योगी सरकार का मंत्री पद। .
वाराणसी। योगी सरकार के पहले कार्यकाल की उपलब्धियों में बड़े और ऐतिहासिक कार्य में श्रीकाशी विश्वनाथ धाम का नव्य-भव्य स्वरूप सबसे खास रहा। खिड़किया समेत गंगा के घाट संवरे तो वार्डों की तस्वीर भी बदली। यह सब उपलब्धियां देश-प्रदेश के लिए तो थी हीं भाजपा का गढ़ कहे जाने वाले शहर दक्षिणी विधानसभा क्षेत्र के लिए सौगातों का पिटारा भी।
वहीं इसके बाद भी इस सीट पर धर्मार्थ कार्य मंत्री डा. नीलकंठ को विधानसभा चुनाव जीतने में नाको चने चबाने पड़े। चुनाव के दौरान इस क्षेत्र की दीवारों पर योगी-मोदी से बैर नहीं, नीलकंठ तुम्हारी खैर नहीं जैसे पोस्टर चिपके तो संघर्ष भी कांटे का रहा। मतगणना के अंतिम चार चरणों में किसी तरह प्रतिष्ठा बची।
वहीं वास्तव में शहर दक्षिणी सीट 1989 से ही भाजपा के पास थी। वर्ष 2017 में इस सीट पर सात बार से विधायक रहे श्याम देव राय चौधरी दादा का टिकट काट कर छात्र राजनीति से निकले अधिवक्ता डा. नीलकंठ को टिकट दिया गया। गंगा व मंदिरों की बहुतायत वाली इस सीट से वह चुनाव जीते और धर्मार्थ कार्य, संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री भी बने।
वहीं इस क्षेत्र को लोगों को उम्मीद थी कि दादा की विरासत संभाल रहे नए विधायक उनकी परंपरा को आगे बढ़ाएंगे। शुरूआती दौर में कुछ ऐसा नजर भी आया। इससे जनउम्मीदों को बौर भी लगी लेकिन जैसा कि चुनाव के दौरान क्षेत्र में चर्चा रही कि धीरे-धीरे उनकी जनता ही नहीं पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ताओं से भी दूरी बढ़ती गई। विधानसभा चुनाव 2022 की घोषणा के बाद भाजपा में टिकट वितरण में देरी पर चर्चा तो यहां तक रही कि डा. नीलकंठ का टिकट कट रहा है।
बता दें कि हालांकि बाद में टिकट तो जरूर मिला लेकिन इसे भाजपा का खुद की साख और क्षेत्र में काशी विश्वनाथ धाम विस्तार व सुंदरीकरण समेत कार्यों पर विश्वास बताया गया। क्षेत्र में स्थानीय विधायक की कमियों पर नजर गड़ाते हुए सपा ने इसे भुनाने का भरपूर प्रयास किया और उनके सामने क्षेत्र के प्रतिष्ठित देवालय महामृत्युंजय महादेव मंदिर के महंत किशन दीक्षित को मैदान में उतार दिया।
वही इससे काशी विश्वनाथ धाम के कारण देश-प्रदेश भर में चर्चा में रही सीट कांटे के संघर्ष को लेकर भी चर्चा में आ गई। चुनाव के दौरान पार्टी को पूरी ताकत भी लगानी पड़ी। इसके बाद भी जब मतगणना हुई तो शुरुआती दौर में सपा लगातार आगे बढ़ती नजर आई। यह बात और है कि अंतिम चक्रों में विजय हाथ आ पाई। तमाम कार्यों के बाद भी पिछली बार से भी जीत का अंतर काफी कम रहा।
वहीं दूसरी तरफ़ ऐसे में उन्हें मंत्री पद को लेकर संशय के बादल छाए रहे। हुआ भी ऐसा ही, लेकिन उनके बजाय इस क्षेत्र में लंबे समय से प्रयासरत डा. दयाशंकर मिश्रा दयालु को मंत्री पद दिए जाने ने चौंका दिया। दयालु इस सीट पर दादा के सामने 2007 व 2012 में मैदान में थे और 2014 में भाजपा में आए। बेशक, हर एक को टिकट की चाह होती है लेकिन न तो 2017 और न ही 2022 में उन्हें टिकट मिला लेकिन निष्ठा में कोई कमी नहीं आई।
वहीं उनका संपर्क व जुड़ाव भी जनता से लगातार बना रहा। माना जा रहा है कि यही उन्हें मंत्री पद दिए जाने का कारण बना और पार्टी उनके जरिए अपने किले को मजबूत बनाने के जतन कर रही है। इसके जरिए अन्य को संदेश भी देने का प्रयास दिख रहा है।