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यूपी : वाराणसी के जतनवर स्थित संत चैतन्य महाप्रभु जन्मोत्सव पर निकली शोभायात्रा।

यूपी : वाराणसी के जतनवर स्थित संत चैतन्य महाप्रभु जन्मोत्सव पर निकली शोभायात्रा।

                          Vinit Jaishwal City Reporter

वाराणसी। कृष्णभक्ति योग के परम प्रचारक एवं गौड़ीय संप्रदाय के संस्थापक महान संत चैतन्य महाप्रभु के जन्मोत्सव के अवसर पर गुरुवार को दुर्गाकुंड स्थित इस्कॉन मंदिर से एक शोभायात्रा निकाली गई जिसमें मंदिर के अध्यक्ष अच्युत मोहनदास, साक्षी मुरारी प्रभु एवं मुरारी गुप्त दास के संयोजन में सभी श्रद्धालु महिला पुरुष भक्त पुष्प वर्षा के बीच वाद यंत्रों के धुन पर नाचते गाते झूमते संकीर्तन करते हुए चल रहे थे । लोगों के हाथों में महाप्रभु की तस्वीरें भी थी।

वहीं बीच में छत्र चंवर में फूलों से सुसज्जित गौर निताई की पालकी थी। शोभा यात्रा सोनारपुरा गोदौलिया काशी विश्वनाथ मंदिर मैदागिन विश्वेश्वर गंज होते हुए जतनवर दूध मंडी चैतन्यवट स्थल तक गई। इस अवसर पर इस्कॉन मंदिर के अध्यक्ष अच्युत मोहनदास ने कहा कि चैतन्य महाप्रभु ने कृष्णभक्ति के माध्यम से मध्यकालीन भारत में शोषितों,पीड़ितों को कृष्णभक्ति की प्रेमराह दिखाकर दुखों से छुटकारा दिलाया। 

वहीं वे जतनवर में (चैतन्य वटस्थल) पर काशीवास किए और उस समय 60 हजार वैष्णव भक्त बनाये थे। इस अवसर पर मुरारी दास गुप्त, आनन्द दास, रजनीश प्रभु, सत्य संकर्षण दास सहित अनेकों महिला पुरुष भक्त उपस्थित रहे। भक्तों ने प्रसाद ग्रहण किए। नाचते-गाते, झांझ-मंजीरा बजाते हुए भी प्रभु की भक्ति की जा सकती है। प्रभु भक्ति के इस स्वरूप को चैतन्य महाप्रभु ने स्वयं अपनाया और सामान्य जनों को भी इसे अपनाने के लिए प्रेरित किया। 

वहीं भक्तिकाल के प्रमुख संतों में से एक हैं चैतन्य महाप्रभु। वैष्णवों के गौड़ीय संप्रदाय की आधारशिला उन्होंने ही रखी। उन्होंने भजन गायकी की एक नई शैली को जन्म दिया। राजनीतिक अस्थिरता के दिनों में उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता की सद्भावना पर बल दिया। उन्होंने भक्तों को जात-पात, ऊंच-नीच की भावना से दूर रहने की शिक्षा दी।

वहीं माना जाता है कि चैतन्य महाप्रभु का जन्म 1486 में पश्चिम बंगाल के नवद्वीप गांव में हुआ, जिसे अब मायापुर कहा जाता है। बचपन में सभी इन्हें निमाई पुकारा करते थे। गौरवर्ण का होने के कारण लोग इन्हें गौरांग, गौर हरि, गौर सुंदर भी कहा करते थे। 

वहीं चैतन्य महाप्रभु द्वारा प्रारंभ किए गए नाम संकीर्तन का अत्यंत व्यापक व सकारात्मक प्रभाव आज देश-विदेश में देखा जा सकता है। इनके पिता का नाम जगन्नाथ मिश्र व मां का नाम शचि देवी था। चैतन्य को उनके अनुयायी कृष्ण का अवतार भी मानते रहे हैं।

वहीं 1509 में जब ये अपने पिता का श्राद्ध करने बिहार के गया नगर गए, तब वहां इनकी मुलाकात ईश्वरपुरी नामक संत से हुई। उन्होंने निमाई से कृष्ण-कृष्ण रटने को कहा। तभी से इनका सारा जीवन बदल गया और ये हर समय भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन रहने लगे। 

वहीं भगवान श्रीकृष्ण के प्रति इनकी अनन्य निष्ठा व विश्र्वास के कारण इनके असंख्य अनुयायी हो गए। चैतन्य ने अपने इन दोनों शिष्यों के सहयोग से ढोलक, मृदंग, झांझ, मंजीरे आदि वाद्य यंत्र बजाकर व उच्च स्वर में नाच-गाकर हरि नाम संकीर्तन करना प्रारंभ किया।