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यूपी : मीरजापुर में बीएचयू का राजीव गांधी दक्षिणी परिसर पानी के मामले में बना आत्मनिर्भर।

यूपी : मीरजापुर में बीएचयू का राजीव गांधी दक्षिणी परिसर पानी के मामले में बना आत्मनिर्भर।


मीरजापुर। बरकछा स्थित राजीव गांधी दक्षिणी परिसर पानी के मामले में आत्मनिर्भर बन गया है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के दक्षिणी परिसर ने समस्या के निजात के लिए ख़ुद की जल प्रबंधन व आपूर्ति व्यवस्था विकसित की। बरकछा स्थित दक्षिणी परिसर पेयजल के मामले में मिसाल बन रहा है। देश में इस तरह की व्यवस्था करने वाला पहला कैंपस है।

वहीं जल एक बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन है। जिले में अनेक प्राकृतिक जल भंडार हैं, देश के सभी भाग जल प्रचुरता के मामले में उतने संपन्न नहीं हैं। जनपद राज्य के ऐसे ही भागों में से है, जिसे सात सर्वाधिक सूखाग्रस्त क्षेत्रों में गिना जाता है। कृषि पारिस्थितिकीय रूप से यहां दो प्रमुख स्थितियां हैं सिंधु-गंगा का मैदान (30-40 फीसद) और विंध्य क्षेत्र (शेष क्षेत्र)। 

वहीं विंध्य क्षेत्र में जल संसाधन बहुत दक्षिणी परिसर में वर्षा के पानी को संग्रह करने के लिए कुल 9 चेक डैम, 2 अपवाह जल संग्रहण तालाब और 03 कुएं हैं। प्रत्येक चेक डैम में 2 लाख लीटर तक पानी जमा हो सकता है।

वहीं चेक डैम के पानी का उपयोग दक्षिणी परिसर के कृषि क्षेत्रों में सिंचाई के लिए किया जाता है। वर्तमान में लगभग 40 हेक्टेयर भूमि पर चेक डैम में एकत्रित पानी का उपयोग करके खेती की जा रही है। दक्षिणी परिसर के कृषि फार्म में खरीफ के दौरान विभिन्न फसल जैसे धान, तिल, बाजरा, मक्का, अरहर, मूंग और उड़द की फसलें उगाई जाती हैं, जबकि रबी के मौसम में गेहूं, जौ, मसूर, चना, सरसों मुख्य फसलें होती हैं।

वहीं दूसरी तरफ़ चेक डैम का उपयोग मत्स्य पालन के लिए भी किया जा रहा है। इनके अलावा एक बड़ा तालाब है जिसमें पानी का भंडारण क्षेत्र 100 मीटर 3 100 मीटर है जिसकी औसत गहराई 3-4 मीटर और दो अपवाह जल संग्रह बांध है। ये बांध और तालाब सिंचाई के लिए जुलाई से दिसंबर तक अल्पावधि के लिए पानी जमा करते हैं। विभिन्न कुओं के पानी का उपयोग परिसर क्षेत्र में बागवानी और पौधारोपण के विकास के लिए किया जाता है।

बता दें कि वहीं बरकछा स्थित राजीव गांधी दक्षिणी परिसर में पीने के पानी की आवश्यकता की पूर्ति के लिए निचले खजूरी बांध के जल को पंप किया जाता है। ये बांध दक्षिणी परिसर से तकरीबन 2.5 किलोमीटर दूरी पर स्थित है, जहां विश्वविद्यालय ने पंपिंग इकाई निर्मित कराई है। इस पंपिंग इकाई से विश्वविद्यालय में बनाई गई फिल्टरेशन इकाई में पानी लाया जाता है।

वहीं इस पूरी प्रक्रिया के तहत करीब 12-13 लाख लीटर पानी पंप कर यहां लाया जाता है, जिसका शोधन कर गुणवत्तायुक्त बनाकर पीने के लिए आपूर्ति की जाती है। साफ किए हुए पानी के भंडारण के लिए 5 लाख लीटर की क्षमता वाले दो जल संग्रहण टैंक स्थापित किए गए हैं। वाटर फिल्टर यूनिट से पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान संकाय परिसर तक प्राकृतिक पानी की पाइपलाइन स्थापित की गई है। अशोधित प्राकृतिक जल का उपयोग मवेशियों और अन्य पशुशालाओं के रखरखाव के लिए किया जाता है।

वहीं पेयजल के साथ ही बेल, कस्टर्ड सेब, करोंदा और अमरूद के बागों को प्राकृतिक जल उपलब्ध कराया जाता है जिससे कृषि फार्म को अतिरिक्त आय होती है। लगभग 04 हेक्टेयर क्षेत्र में औषधीय फसल लेमन ग्रास की खेती की गई है जिसे पंपिंग हाउस के प्राकृतिक जल से भी सिंचित किया जाता है। फिल्टर करने के बाद बचे हुए जल को कृषि विज्ञान केंद्र, बरकछा के हाल में निर्मित बंधी के चेक डैम में स्थानांतरित कर दिया जाता है।

चेक डैम 1 : 2017-18 के दौरान निर्मित, जुलाई से अक्टूबर महीने तक पानी।

चेक डैम 2 : 2020-21 में निर्मित, 2 लाख लीटर क्षमता। जुलाई से मई महीने तक पानी।

चेक डैम 3 : 2014 में निर्मित, जुलाई से मई महीने तक पानी।

चेक डैम 4 : जुलाई से मई महीने तक पानी।

चैक डैम 5 व 06 : जुलाई से मई तक पानी।