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यूपी : वाराणसी में स्वामी भारती शंकर तीर्थ ने कहा कि सनातन के लिए संक्रमण काल, वहीं सन्यासी दें दुष्प्रचार का जवाब।
वाराणसी। सनातन धर्म के लिए यह संक्रमण काल चल रहा है। हर ओर से इस पर आक्रमण हो रहे हैं जो सदियों से जारी हैं। एक हजार वर्ष पूर्व भारत-भू पर अवतरित आदि शंकराचार्य के प्रयत्नों से सनातन हिदू धर्म आज भी अक्षुण्ण है। इसलिए धर्म की रक्षा के लिए शंकराचार्य प्रणीत संन्यासी परंपरा का निर्वहन एवं धर्म जागरण संन्यासियों का मूल कर्तव्य है।
वहीं योग्य संन्यासियों ही सनातन धर्म के विरुद्ध चल रहे दुष्प्रचार का जवाब दे सकते हैं। सनातन धर्म की व्याख्या कर समाज में व्याप्त भ्रांतियों को तोड़ सकते हैं। यह कहना है श्रृंगेरी पीठ शंकराचार्य के प्रतिनिधि आचार्य शंकर भारती तीर्थ जी महाराज का। वह रविवार को संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के क्रीड़ा मैदान में श्री शंकराचार्य वांग्मयसेवा परिषद के तत्वावधान में आयोजित यति समागम में अध्यक्षीय उद्बोधन कर रहे थे।
वहीं समागम में शामिल देश-विदेश से सनातन धर्म के सभी मतों-पंथों, अखाड़ों के शैव, वैष्णव संन्यासियों, कबीरपंथी, दंडी स्वामी, संत-महंत आदि ने शंकराचार्य के दर्शन के विस्तार का संकल्प लिया। लखनऊ से आए महामंडलेश्वर स्वामी अभयानंद ने कहा कि प्रत्येक संकट काल में समाज संतों की ओर आशा भरी दृष्टि से देखता है। हम सभी को मिलकर सनातन को संगठित करना होगा।
वहीं यूरोपीय मूल के जयपुर से आए महामंडलेश्वर स्वामी ज्ञानेश्वरपुरी ने कहा कि सिर्फ भारत ही है जो कहता है 'वसुधैव कुटुंबकम'। भारत विश्वगुरु था, आज भी है और रहेगा। महामंडलेश्वर स्वामी निर्भयानंद ने विज्ञान और अध्यात्म की तुलनात्मक व्याख्या प्रस्तुत की। गोवा से आए पद्मश्री रमेशानंद जी ने कहा कि आज हिदू धर्म के सही स्वरूप को लोगों तक पहुंचाने की आवश्यकता है। भिमंडी से आए स्वामी श्याम चैतन्य पुंज ने विधर्मियों के षड्यंत्रों से आगाह करते हुए कहा कि मिशनरी के लोग भी भगवा पहनकर अपने मत का प्रचार कर रहे हैं। महामंडलेश्वर स्वामी विभूषितानंद अयोध्या ने कहा कि आद्य शंकराचार्य के विचारों के प्रचार की आवश्यकता है।
वहीं दूसरी तरफ़ हमारा सनातन सदैव रहा है, सदैव रहेगा। महामंडलेश्वर देवेंद्र महाराज, राम जन्मभूमि न्यास के स्वामी गोविद गिरी, महामंडलेश्वर आशुतोषानंद गिरि, आर्षविद्यापीठ तेलंगाना के स्वामी परिपूर्णानंद सरस्वती, पंचायती अखाड़ा के स्वामी आत्मानंद, दक्षिणामूर्ति पीठाधीश्वर स्वामी पुण्यानंद आदि ने भी विचार व्यक्त किए। स्वागत डा. राधेश्याम द्विवेदी व संचालन महामंडलेश्वर चिदंबरानंद सरस्वती ने किया।
वही वैष्णव संत समाज के कोतवाल मोहनदास, राजेश द्विवेदी, डा. शैलेन्द्र दीक्षित, डा. अनिल किजवेड़ेकर, डा. माधवी तिवारी, सीमा शुक्ला, राजेश त्रिवेदी, यज्ञनारायण, डा. दिग्विजय त्रिपाठी, अजय, जय प्रकाश, आशीष, आशुतोष, रजनीश, रश्मि शुक्ला, सत्यप्रकाश श्रीवास्तव आदि संयोजन में लगे रहे।