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यूपी : वाराणसी बीएचयू के लिए मां का कंगन बेचकर विश्वविद्यालय को पांच लाख रुपये दान कर बने नजीर।

यूपी : वाराणसी बीएचयू के लिए मां का कंगन बेचकर विश्वविद्यालय को पांच लाख रुपये दान कर बने नजीर।


वाराणसी। संघर्ष और दृढ़ इच्छाशक्ति के जीवंत उदाहरण हैं 81 वर्षीय चंद्रकेश सिंह। कभी मां का अंतिम गहना बेचकर बीएचयू में दाखिला लिया था, अब दिन बहुरे तो विश्वविद्यालय को पांच लाख का दानकर नजीर बने।

वहीं मूलरूप से जौनपुर के मडिय़ाहूं तहसील स्थित सुरेरी थानांतर्गत हरिहरपुर गांव के निवासी हैं चंद्रकेश। जब वह कक्षा छह के छात्र थे, पिता का निधन हो गया। 11 वर्षीय बालक के कंधों पर खेती-बाड़ी, मवेशी और पूरे परिवार को पालने की जिम्मेदारी आ गई। गांव से पढऩे के बाद नौवीं में प्रवेश लिया। 

वहीं 16 किमी रोज दो नदियां पारकर सेवापुरी आना और जाना, नंगे पैर बिना जूता-चप्पल के। हिम्मत नहीं हारी। वर्ष 1958 में बोर्ड की परीक्षा दी, उम्मीद थी प्रथम श्रेणी में पास होंगे, मगर प्रदेश की मेरिट में उन्हें छठां स्थान मिला। 16 रुपये वजीफा मिला तो हिम्मत बढ़ी, इंटरमीडिएट करने आ गए वाराणसी के उदय प्रताप कालेज में। फिर प्रदेश के टाप टेन में स्थान बनाया।

वहीं 1962 में बीएचयू की प्रवेश परीक्षा दी, मेरिट में सबसे आगे नाम, मगर प्रवेश शुल्क देने के लिए पैसे नहीं थे। मां के एक हाथ का कंगन 60 रुपये में बेचा गया तो बीएचयू में दाखिला मिला। तब 40 रुपये तोला था सोना का भाव। किसी तरह बीएससी (कृषि) उत्तीर्ण किया। फिर कमाने आगरा चले गए। घर की स्थिति ऐसी नहीं थी कि आगे पढ़ाई हो सके। 

वहीं बीएचयू के प्रोफेसर्स ने इस मेधावी पर आगे पढऩे का बहुत दबाव बनाया, लेकिन तब गुरुओं से झूठ बोलना पड़ा कि आगरा में प्रवेश ले लिया हूं। बाद में परीक्षा दी और जिला उद्यान अधिकारी बने। अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं। तीन बेटों में सबसे बड़े सुशील कुमार सिंह भारतीय रेलवे सेवा में रेलवे बोर्ड के सदस्य हैं। दूसरे इलाहाबाद हाईकोर्ट में अधिवक्ता और तीसरे रियल स्टेट कारोबारी।

वहीं चंद्रकेश सिंह बुधवार को बीएचयू पहुंच कुलपति सुधीर कुमार जैन को पांच लाख रुपये का चेक दिए। बोले, पांच लाख देने में संकोच हो रहा था, सोचा था 20 लाख दूंगा, लेकिन पेंशन से उसे इकट्ठा होने में चार-पांच वर्ष लग जाते।