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यूपी : अलीगढ़ में कोरोना में हौसला और हिम्मत से जीत मुश्किल जिंदगी का रहा इम्तिहान।
अलीगढ़। जिंदगी के किसी भी दिन को कोसना नहीं चाहिए। अच्छा दिन खुशियां लाता है और बुरा दिन अनुभव। सीखते हुए एक सफल जिंदगी के लिए, दोनों जरूरी होते हैं । कई तारीखें तो अच्छी हो या बुरी, अमर हो जाती हैं। अलीगढ़ में 22 मार्च 2020 की तारीख भी ऐसी ही थी। इसी दिन देशव्यापी जनता कर्फ्यू लागू हुआ। ऐसा लगा कि युद्ध का बिगुल फुंक गया हो।
वहीं लोग घरों में कैद हो गए। पूरे दिन सन्नाटा छाया रहा। सड़कें सुनसान थीं। जो जहां था, वहीं ठहर गया। ट्रेन, बस, आटो तक के पहिये जाम हो गए। शाम को अदृश्य कोरोना से लड़ने वाले डाक्टरों, नर्सिंग स्टाफ व अन्य फ्रंटलाइन वर्कर्स का थाली बजाकर मनोबल बढ़ाया गया। लाकडाउन से अनलाक तक, सभी ने अपने हौसले से मुश्किल जिंदगी का इम्तिहान जीता।
वहीं कारोबार, बाजार, कल-कारखाने आदि पटरी पर लौट चुके हैं। बच्चों की पढ़ाई भी शुरू हो चुकी है, कहीं-कहीं पर परीक्षाएं चल रही हैं। आना-जाना सब सामान्य हुआ है। 10 मार्च 2022 के बाद से कोई नया मरीज नहीं, मगर खतरा अभी टला नहीं है।
वहीं जनता कर्फ्यू से अनलाक होने तक की प्रक्रिया में लोगों ने कई उतार-चढ़ाव देखे। पहली, दूसरी और फिर तीसरी लहर आई। लोगों ने हर बार साहस, समझदारी और अनुशासन का परिचय दिया। 25 हजार से अधिक लोग संक्रमित हुए। आंकड़ों में 108 से अधिक लोगों की मृत्यु तो सिर्फ कोरोना संक्रमण से मानी गईं।
वहीं लेकिन वास्तविक संख्या इससे चार गुना अधिक रही। फिर भी, जानलेवा संक्रमण से जूझते हुए ताला और तालीम का यह शहर आगे बढ़ता रहा। दूसरी लहर में कोरोना का खूब कहर बरपा। स्वास्थ्य सेवाएं चरमा गईं। मरीजों को उपचार तो दूर अस्पतालों में बेड, आक्सीजन व वैंटीलेटर तक नहीं मिल पाया। शहर की कई नामचीन हस्तियां कोरोना की भेंट चढ़ गईं। ऐसे हालात में लोग एक-दूसरे की मदद को आगे आए।
वहीं कोरोना जैसी अदृश्य महामारी आएगी, यह किसी ने सोचा नहीं था। सरकार ने स्क्रीनिंग व जांच के लिए युद्धस्तर पर काम शुरू कराया। एक दिन में सात हजार से अधिक तक सैंपलिंग हुई। पहले मेडिकल कालेज में ही आरटीपीसीआर जांच की सुविधा थी।
वहीं सरकार ने दीनदयाल अस्पताल में आरटीपीसीआर लैब स्थापित कराई। इस लैब ने तो जांच में प्रदेश में नंबर वन स्थान हासिल किया। इस बीच टीकाकरण शुरू हो गया। कोरोना की कोई निश्चित दवा नहीं थी, इसलिए बचाव के लिए टीकाकरण व उपचार के लिए दूसरी दवाओं पर निर्भरता रही। तीसरी लहर में पुराना अनुभव खूब काम आया।
वहीं दूसरी लहर में आक्सीजन व वैंटीलेटर न मिलने से काफी रोगियों की जानें गईं। इसलिए तीसरी लहर आने से पूर्व ही जिले के विभिन्न सरकारी अस्पतालों में करीब 12 नए आक्सीजन प्लांट स्थापित करा दिए गए। अस्पतालों की क्षमता का विस्तार हुआ।
वहीं 200 बेड के दीनदयाल अस्पताल को 360 बेड की क्षमता से संचालित किया गया। करीब 50 बेड के आइसीयू बनाएं गए। जिला अस्पताल में 50 बेड का कोविड केयर सेंटर बना। 200 बेड के पीकू (पीडियाट्रिक आइसीयू) वार्ड तैयार किए गए। स्टाफ का नियमित रूप से संवर्धन किया गया। वर्तमान में कोई ऐसा स्टाफ नहीं, जो कोरोना जैसी महामारी आई तो उसके लिए तैयार नहीं।
वहीं जिले में तीसरी लहर समाप्ति की ओर है। इसके लिए कोरोना योद्धाअों-डाक्टर, मेडिकल स्टाफ, पुलिस कर्मियों, नगर निगम कर्मियों व सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ताअों के साहस को नमन करना होगा। जिस समय ऐसी सूचनाएं आ रही थीं कि कोरोना के लक्षण देखते ही लोग परिवार के सदस्यों से दूरियां बना रहे हैं, तब कोरोना योद्धाओ ने आगे बढ़कर सहयोग किया। वर्तमान में कोई सक्रिय रोगी नहीं।
बता दें कि वहीं आलोक पाराशर, प्रतिभा कालोनी ने बताया कि मैं एलआइसी एजेंट हूं। शहर का वातावरण बिल्कुल कर्फ्यू जैसा था। मैंने भी पूरा दिन अपने परिवार के साथ घर पर ही बिताया। 24 मार्च से लाकडाउन शुरू हो गया। काफी काम बाधित हुआ। इसमें कोई कुछ नहीं कर सकता था। मैंने अब तक चेहरे से मास्क नहीं उतारा है। कुछ माह से कार्य में सुधार भी होने लगा है।
वहीं दूसरी तरफ़ कोरोना संक्रमण फैलने की खबरों से हर कोई चिंतित था। मन में एक ही सवाल था कि बचाव कैसे होगा। फिर सरकार ने जनता कर्प्यू लगाया। सबकुछ बंद हो गया। स्कूल-कालेज भी। मैंने ही नहीं, पूरे देश ने सरकार और कोविड गाइडलाइन का पालन किया। संक्रमण खत्म होने के बाद सब सामान्य हो रहा है।