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गर्भवती होने पर मैके में रही पत्नी तो पति ने लिया तलाक- फ़ैमिली कोर्ट ने क्रूरता मान दी मंज़ूरी, सुप्रीम कोर्ट बोला- यह क्रूरता नहीं
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने तलाक की अपील के मामले में महत्वपूर्ण फैसला देते हुए कहा कि, गर्भावस्था के दौरान एक महिला अपने माता-पिता के साथ रहने लिए पति का घर छोड़ती है और एक निश्चित समय तक वापस नहीं आती तो यह पति के साथ क्रूरता नहीं होगा। साथ ही इस आधार पर पति तलाक नहीं मांग सकता। वहीं सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच जस्टिस केएम जोसेफ ओर हृषिकेश रॉय ने इस पूरे मामले में कहा कि, एक महिला के लिए गर्भावस्था के दौरान अपने माता-पिता के साथ रहना बहुत स्वाभावित बात है और इस अवधि के दौरान अपने ससुराल में आने से इनकार करने को पति और ससुराल वालों द्वारा क्रूरता नहीं कहा जा सकता।
पूरे मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहां पत्नी का आचारण दोषरहित था, लेकिन पति-पत्नी बीते 22 सालों से अलग रह रहे है और पति ने निचिली अदालत से तलाक प्राप्त करने के तुरंत बाद पुनर्विवाह कर लिया। इस आधार पर विवाह को रद्द करने का आदेश दिया है। आपको बता दें इससे पहले ये पूरा मामला फैमली कोर्ट में विचाराधीन था। जहां क्रूरता के आधार पर कोर्ट ने दोनों को तलाका का आदेश दिया। लेकिन जब इस माामले की मद्रास उच्च न्यायालय में सुनवाई हुई तो हाईकोर्ट ने फैमली कोर्ट के आदेश को पलट दिया। लेकिन अब सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाते हुए इसे क्रूरता मानने से मना कर दिया और दोनों के विवाह को बीते 22 साल से अलग रहने के कारण रद्द कर दिया।
इस मामले में दोनों लोगों ने 1999 में शादी की थी और गर्भवती होने के बाद पत्नी जनवरी में अपने ससुराल चली गई और वहां 2000 में बच्चे को जन्म दिया। इस दौरान पिता की बीमारी की वजह से पत्नी अपने मायके में ही रूकी रही और उनकी बीमारी के चलते फरवरी 2001 में मौत हो गई। जिसके बाद मार्च 2001 में पति ने तलाक की अर्जी लगाई। जिसमें फैमली कोर्ट ने याचिका को स्वीकार करते हुए 2004 में दोनों को तलाक दे दिया।
जिसके बाद पत्नी ने हाईकोर्ट में अपील दायार की, लेकिन इससे पहले ही पति ने अक्टूबर 2001 में याचिका पर सुनवाई होते हुए दोबारा शादी कर ली। हाईकोर्ट ने इस माामले में पत्नी के पक्ष में फैसला सुनाया और जिसके बाद पति ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने दोनों के पक्ष को सुनने के बाद मद्रास हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा, जिसमें कहा गया था कि, कोई क्रूरता नहीं हुई और पति ने अपने बच्चे को जन्म देने के बाद पत्नी से तलाक लेने के लिए इसे आधार बनाया। लेकिन ये भूलना भी गलत होगा कि, पत्नी गर्भवती होने पर अपने मायके गई थी।
अगर पत्नी ने बच्चे के जन्म के बाद अपने माता-पिता के घर में कुछ और रहने का फैसला किया, तो यह हमारी समझ से परे है कि इस तरह का मामला अदालत के सामने कैसे लाया जा सकता है, और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि बिना उचित समय की प्रतीक्षा किए। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने आगे कहा कि अपीलकर्ता (पति), इस तथ्य से बेखबर कि उसने एक बच्चे को जन्म दिया था, अदालत में गया और तलाक के लिए एक याचिका दायर की। “हम प्रतिवादी के पिता की मृत्यु से बेखबर नहीं हो सकते। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, हम अपीलकर्ता के निष्कर्षों को चुनौती देने के लिए कोई आधार नहीं देखते हैं कि प्रतिवादी की ओर से कोई क्रूरता नहीं है।”
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में आगे कहा कि, ये मामला पति की दूसरी शादी करने के बाद काफी जटिल हो गया है, जिसमें सभी पक्षों का बेहतर हित ये होगा कि, पति-पत्नी बीते 22 साल से अलग रह रहे हैं। जिसके चलते इनके विवाह को रद्द कर दिया जाता है और पति को आदेश दिया जाता है कि, वह पूर्व पत्नी और बच्चे के जीवन यापन के लिए 20 लाख रुपये दें।