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भुनेश्वर : जगन्नाथ पुरी मंदिर में हैं 240 चूल्हे पर 500 रसोइए के साथ दिन में तीन बार बनती महाप्रसादी।

भुनेश्वर : जगन्नाथ पुरी मंदिर में हैं 240 चूल्हे पर 500 रसोइए के साथ दिन में तीन बार बनती महाप्रसादी।


भुवनेश्वर। पुरी के जगन्नाथ मंदिर की तरह ही यहां के रसोईघर में बनने वाली महाप्रसादी पर भी लोगों की अटूट आस्था है। यह विश्व का सबसे बड़ा रसोईघर माना जाता है। कैसा है 240 चूल्हों का यह रसोई? कैसे बनती है महाप्रसादी? क्या-क्या भोग चढ़ाए जाते हैं? 

वहीं जगन्नाथ प्रभु की रसोईघर में सिर्फ मिट्टी के बर्तनों में ही भोजन बनता है और रोजाना नए बर्तन तैयार होते हैं। ओड़िया भाषा में इन्हें अटिका कहा जाता है। तैयार नए मिट्टी के बर्तनों में ही महाप्रसादी तैयार होती है। दिन में तीन बार रसोई तैयार होती है। खाना बनाने के लिए लकड़ी का उपयोग होता है। रसोई शाला में किसी तरह के बिजली के उपकरण का उपयोग नहीं है।

वहीं महाप्रसादी बनाने के लिए एक साथ 500 से ज्यादा रसोइए और 300 सहायक जुटे रहते हैं। सिर्फ इन्हें ही रसोईशाला में जाने की अनुमति होती है। इसके अलावा कोई भी प्रवेश नहीं कर सकता है। जगन्नाथ महाप्रभु को 56 तरह के भोग परोसे जाते हैं। इसमें दाल, चावल, कई तरह की सब्जियां, खिचड़ी, मीठी पूड़ी, चिवड़ा, बूंदी, चटनी व मिठाइयां होती हैं। इसमें आलू, गोभी व टमाटर, उपयोग नहीं किया जाता है। प्याज लहसुन का भी इस्तेमाल नहीं होता है।

वहीं मंदिर में लगभग 30 दुकानदार पंजीकृत हैं, जो महाप्रसादी की बिक्री कर सकते हैं। एक दुकानदार लगभग 2000 भक्तों का प्रसाद बनवाता है। आम दिनों में 20 से 30 हजार लोगों के लिए महाप्रसादी बनती है। वहीं कार्तिक महीने में एक दिन में 70-80 हजार लोगों का भी प्रसाद बनता है।

वहीं 12वीं शताब्दी के इस जगन्नाथ पुरी मंदिर के रसोईशाला में कुल 240 चूल्हे पंजीकृत हैं। रसोईशाला में तीन बार रसोई बनती है। कोठभोग से रसोई कार्य आरंभ होता है। चूल्हे के गठन शैली पर नजर डालें तो यह एक कमल के फूल की तरह है। महाप्रसादी में सिर्फ पारंपरिक खड़े मसाले का ही उपयोग होता है जैसे काली मिर्च, लाल मिर्च, धनिया, ढेला नमक आदि का उपयोग होता है। शकर की जगह गुड़ का उपयोग किया जाता है। वहीं महाप्रसादी में एक बार में लगभग 10 तरह की मिठाइयां बनाई जाती हैं। भक्तों के लिए आठ लाख लड्डू एक साथ बनाने का विश्व रिकार्ड भी इस रसोईशाला के नाम दर्ज है।

वहीं भोग बनाने वाले वरिष्ठ सेवक काशीनाथ सामंतरा बताते हैं एक चूल्हे में एक बार में 10 किलो चावल, पांच किलो दाल, आठ किलो सब्जी पक जाती है। इसमें बेसर (सभी सब्जियों का मिश्रण), शाग, महूर (कंद मूल मिलाकर तैयार किया जाने वाले व्यंजन) होता है। इसे लगभग 100 लोग खा सकते हैं। इसे बनाने में 70-80 किलो लकड़ी का उपयोग होता है।

वहीं जगन्नाथ पुरी की रसोईशाला की एक विशेषता यह है कि यहां एक के ऊपर एक सात हांडी रखकर खाना पकाया जाता है। चूल्हे की बनावट और ताप संतुलन से सबसे ऊपर रखी हांडी में सबसे पहले और सबसे नीचे वाली हांडी में सबसे बाद में खाना पकता है।

वहीं सूत्रों ने यह भी बताया है कि पिछले दिनों यहां महाप्रसाद बेचे जाने में गड़बड़ी का मामला सामने आने के बाद विवाद शुरू हुआ। आवश्यकता से अधिक महाप्रसाद तैयार किया गया था, जिसे बाजार में बेचा जाता है। इसकी जानकारी मिलने के बाद श्रीमंदिर के कमांडर ने इस प्रसाद को जब्त कर लिया था।

वहीं सूत्रों ने बताया कि घटना दो गुटों के बीच रंजिश का परिणाम है। शनिवार को मंदिर में देवताओं के बड़ा सिंघारा वेश एक तरह का अनुष्ठान के बाद आनंद बाजार में दो गुटों में झड़प हुई थी। इसके कुछ घंटे के बाद यह अप्रिय घटना हुई और चूल्हे क्षतिग्रस्त पाए गए। यह भी कहा जा रहा है कि मंदिर में रसोद्वारी और रसोपाइक (रसोई घर के सेवक) का भुगतान नहीं करने पर विवाद है। कुछ लोगों कहा कहना है कि इनका भुगतान नहीं किए जाने के कारण ऐसा हो सकता है। सीसीटीवी कैमरे के फुटेज की जांच की मांग की है।

वहीं रसोईघर में दो कुएं हैं। इन्हें गंगा-यमुना कहा जाता है। महाप्रसादी बनाने में इन्हीं कुओं के पानी का उपयोग होता है। हर चूल्हे में लकड़ी लगाने के छह द्वार होते हैं। इसमें आवश्यकता के अनुसार मध्यम या तेज आंच के लिए लकड़ी डाली जाती है।